साल 2020 की शुरुआत होते ही सबसे पहला चंद्र ग्रहण लग गया है। ग्रहण के दौरान किसी भी तरह के कार्य को करना अशुभ माना जाता है। इस साल का पहला चंद्र ग्रहण कुछ खास होने वाला है। वैसे तो ग्रहण के समय अक्सर सूतक काल के बारे में चर्चा होती है मगर इस साल ये सूतक काल लग ही नहीं रहा है।
आज यानी 10 जनवरी को लगने वाले चंद्र ग्रहण में सूतक नहीं लगेगा। इसके मायने ये हुए इस दौरान न तो मंदिरों के कपाट बंद होंगे और न ही किसी धार्मिक कार्य या मूर्ति आदि को छूने की मनाही होगी। साथ ही चंद्र ग्रहण में आप सामान्य दिनों की तरह काम भी कर सकेंगे। आपको बताते हैं क्या है इसके पीछे का कारण और क्या है चंद्र ग्रहण का काल।
Lunar Eclipse 2020: चंद्र ग्रहण कितने बजे से है
इस उपछाया चंद्र ग्रहण प्रारंभ 10 जनवरी की रात को 10.39 बजे से हो रहा है। यह करीब चार घंटे का रहेगा और रात 2.42 बजे खत्म हो जाएगा। इस ग्रहण को भारत समेत यूरोप, अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया में देखा जा सकेगा। इस ग्रहण के दौरान ही पंचाग के अनुसार हिंदी माह माघ की भी शुरुआत होगी।
2020 में लगेंगे कुल 4 चंद्र ग्रहण
इस साल 2020 में कुल 4 चंद्र ग्रहण लगने वाले हैं, जिसमें पहला चंद्र ग्रहण शुक्रवार को लगेगा। इसके अलावा इस वर्ष दो सूर्य ग्रहण लगेंगे।
वर्ष 2020 में लगने वाले चंद्र ग्रहण
पहला चंद्र ग्रहण: 10-11 जनवरी
दूसरा चंद्र ग्रहण: 5-6 जून
तीसरा चंद्र ग्रहण: 4-5 जुलाई
चौथा चंद्र ग्रहण: 29-30 नवंबर
Lunar Eclipse 2020: नहीं लगेगा सूतक
धार्मिक विषयों से जुड़े जानकारों के अनुसार इस साल का पहला ग्रहण, उपछाया चंद्र ग्रहण है। जानकारों के अनुसार उपछाया चंद्र ग्रहण को शास्त्रों में ग्रहण की श्रेणी में नहीं रखा गया है। इसी के कारण है कि इस ग्रहण के दौरान सूतक नहीं लगेगा। आमतौर पर चंद्र ग्रहण का सूतक 9 घंटे पहले और सूर्य ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले से शुरू हो जाता है। चूकी शास्त्रों के अनुसार ये ग्रहण नहीं है, इसलिए इसका खास प्रभाव भी नहीं पड़ेगा।
Lunar Eclipse 2020: क्या होता है उपछाया चंद्र ग्रहण
साइंस के अनुसार चंद्र ग्रहण तभी लगता है जब एक समय पृथ्वी दरअसल चंद्रमा और सूर्य के बीच आ जाता है। इस वजह से चंद्रमा पर सीधे तौर पर सूर्य की रोशनी नहीं जाती और वह पूरी तरह पृथ्वी की छाया में आ जाता है। उपछाया चंद्र ग्रहण में ऐसा नहीं होता। असल में किसी भी चंद्र ग्रहण से पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया में प्रवेश करता है। इसके बाद पृथ्वी की वास्तविक छाया वहां प्रवेश करती है।
हालांकि, कई बार ऐसी परिस्थिति बनती है जब केवल पृथ्वी की उपछाया ही चंद्रमा पर कुछ समय के लिए पड़ती है और फिर वह पृथ्वी की ओट से बाहर आ जाता है। ऐसा अक्सर तब होता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा पूरी तरह से एक सीध में नहीं आ पाते। ऐसे में चंद्रमा का बिंब केवल धुंघला रह जाता है। इस स्थिति में चंद्रमा को साफ तौर पर देखा भी नहीं जा सकता, इसलिए इसे उपछाया चंद्र ग्रहण ही कहते हैं।