इस मंदिर में है भगवान शिव के अंगूठे का निशान, दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

By धीरज पाल | Published: April 3, 2018 03:26 PM2018-04-03T15:26:20+5:302018-04-03T15:26:20+5:30

पौराणिक कथा के मुताबिक अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन हिलने लगा तो हिमालय में तपस्या कर रहे भगवान शंकर की तपस्या भंग हुई।

Lord shiva temple in Mount Abu Achalgarh Temple mythology story in hindi | इस मंदिर में है भगवान शिव के अंगूठे का निशान, दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

इस मंदिर में है भगवान शिव के अंगूठे का निशान, दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

देवों के देव महादेव यानी भगवान शिव की पूजा देश के हर कोने-कोने में होती है। दिन रात मंदिरों में भीड़ उनके प्रति आस्था की गवाही देता है। देश में भगवान शिव के कई अद्भुत मंदिर है जो अपने रहस्यमयी के लिए जाने जाते हैं। ऐसा ही भगवान शिव का एक मंदिर है जहां उनके शिवलिंग की नहीं बल्कि उनके अंगूठे का प्रचार होता है। पूरे देशभर में यह इकलौता मंदिर है जहां उनके अंगूठे की पूजा की जाती है। हालांकि मंदिर में शिवलिंग भी है लेकिन उनके अंगूठे की पूजा की मान्यता अत्यधिक है। मंदिर कई रहस्योंसे भरा है, पौराणिक कथा से पहले हम मंदिर के बारे में जान लेते है। 

माउंटआबू में स्थित है यह मंदिर

यह मंदिर माउंटआबू में अचलगढ़ में स्थित है। मंदिर की अनोखी विशेषता है कि यहां भगवान शंकर के अंगूठे की पूजा होती है। भगवान शिव के अंगूठे के निशान मंदिर में आज भी देखे जा सकते हैं। इसमें चढ़ाया जानेवाला पानी कहा जाता है यह आज भी एक रहस्य है। माउंटआबू को अर्धकाशी भी कहा गया है और माना जाता है कि यहां भगवान शिव के छोटे-बड़े 108 मंदिर है।

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इस मंदिर की काफी मान्यता है और माना जाता है कि इस मंदिर में महाशिवरात्रि,सोमवार के दिन,सावन महीने में जो भी भगवान शिव के दरबार में आता है। भगवान शंकर उसकी मुराद पूरी कर देते हैं।

जुड़ी है ये पौराणिक कथा 

इस मंदिर की पौराणिक कहानी है कि जब अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन  हिलने लगा तो हिमालय में तपस्या कर रहे भगवान शंकर की तपस्या भंग हुई। क्योंकि इसी पर्वत पर भगवान शिव की प्यारी गाय नंदी भी थी। लिहाजा पर्वत के साथ नंदी गाय को भी बचाना था। भगवान शंकर ने हिमालय से ही अंगूठा फैलाया और अर्बुद पर्वत को स्थिर कर दिया। नंदी गाय बच गई और अर्बुद पर्वत भी स्थिर हो गया।

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बताया जाता है कि पहाड़ी के तल पर 15वीं शताब्दी में बने अचलेश्वर मंदिर में भगवान शिव के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं। मेवाड़ के राजा राणा कुंभ ने अचलगढ़ किला एक पहाड़ी के ऊपर बनवाया था। किले के पास ही अचलेश्वर मंदिर है। भगवान शिव के इस अद्भूत चमत्कार को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

पानी से नहीं भरता खड्ढा 

मंदिर के बाहर वाराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। यहां पर भगवान के अंगूठे के नीचे एक प्राकृतिक खड्ढा बना हुआ है। इस खड्ढे में कितना भी पानी डाला जाएं लेकिन यह कभी भरता नहीं है इसमें चढ़ाया जाने वाला पानी कहां जाता है यह आज भी एक रहस्य है। अचलेश्वर महादेव मंदिर परिसर के चौक में चंपा का विशाल पेड़ है मंदिर में बाएं ओर दो कलात्मक खंभों पर धर्मकांटा बना हुआ है।

अगर आप भी इस भगवान शिव के भक्त हैं या इस अद्भूत नजारे को देखना चाहते हैं तो यहां आपको जरूर जाना चाहिए। 

Web Title: Lord shiva temple in Mount Abu Achalgarh Temple mythology story in hindi

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