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Lord Shiva: भोलेनाथ के अचूक 'शिव महिम्न: स्तोत्र' के पाठ से होती है सुखों की प्राप्ति, जानिए इस पाठ की महिमा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: April 29, 2024 06:29 IST

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार शिवभक्त गन्धर्वराज पुष्पदंत द्वारा रचित शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ शिव आराधना में विशिष्ट स्थान रखता है।

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ठळक मुद्देहिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ शिव आराधना में विशिष्ट स्थान रखता हैशिवभक्त गन्धर्वराज पुष्पदंत द्वारा रचित शिव महिम्न स्तोत्र के पाठ से भक्तों का कल्याण होता हैपुष्पदंत ने विवश होकर भगवान शिव की आराधना की और शिव महिम्न: स्तोत्र की रचना की

Lord Shiva: हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार शिवभक्त गन्धर्वराज पुष्पदंत द्वारा रचित शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ शिव आराधना में विशिष्ट स्थान रखता है। गन्धर्वराज पुष्पदन्त प्रतिदिन कैलाश पर जाकर भगवान शिव की सुन्दर पुष्पों से पूजा करते थे। वह एक राजा के उद्यान से प्रात:काल ही सुन्दर और सुगन्धित पुष्प तोड़ लेते थे।

राजा पुष्पों को न पाकर मालियों को दण्ड दिया करते थे। मालियों ने फूल ले जाने वाले का पता लगाने का बहुत प्रयास किया और अंत में उन्होंने पाया कि फूल ले जाने वाला उद्यान में आते ही किसी विशेष शक्ति से अदृश्य हो जाता है।

राजा के मंत्रियों ने उपाय बतलाया कि उपवन के चारों ओर शिवलिंग पर चढ़े फूल व बेलपत्र आदि फैला दिया जाए। शिव निर्माल्य को लांघते ही चोर की अदृश्य होने की शक्ति नष्ट हो जाएगी। गन्धर्वराज पुष्पदन्त को पृथ्वी पर घटित इस घटना का कुछ पता नहीं था। पुष्पदन्त ने जैसे ही शिव-निर्माल्य का उल्लंघन किया, उसकी अदृश्य होने की शक्ति समाप्त हो गयी और मालियों ने उन्हें देख लिया। राज कर्मचारियों ने उन्हें बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया।

पुष्पदंत को जब यह पता चला कि मैंने शिव-निर्माल्य को लांघकर महान अपराध किया है, तब कारागार में भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने अत्यन्त दीन-हीन की तरह पूरी तरह विवश होकर भगवान आशुतोष को पुकारा और उनकी प्रसन्नता के लिए शिव महिम्न: स्तोत्र की रचना की।

पुष्पदंत ने भगवान शिव की चरणधूलि मस्तक पर चढ़ाकर कहा, "भगवन्! आपकी महिमा का पार न जानने से मेरा आपकी स्तुति करना अनुचित है, ब्रह्मा आदि की वाणी भी आपके यशोगान करने में थक चुकी है क्योंकि आपकी महिमा का अंत कोई जान ही नहीं सकता। अनन्त का अंत कैसे जाना जाए? इसलिए स्तुति करने वाले पर कोई दोष नहीं लगता है।"

भगवान शिव ने कहा, "अपने आराध्य की स्तुति अपने श्रम से प्राप्त पदार्थ से करनी चाहिए। चोरी के पुष्पों से की गयी मेरी अर्चना मुझे पसन्द नहीं आती है। तुम्हारे द्वारा की गयी यह स्तुति सिद्धस्तुति हो गई है। इससे जो मेरा स्तवन करेगा, वह मुझे प्रिय होगा।"

भगवान शिव ने पुष्पदंत की आराधना से प्रसन्न होकर वात्सल्यवश उसे अपनी गोद में बिठा लिया और उन्हें शिवगणों का अधिपति बना दिया। पुष्पदंत को खोयी हुई सिद्धि पुन: प्राप्त हो गयी। 

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