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Lord Ganesh: गणपति क्यों करते हैं मूसक की सवारी, क्या है भगवान गणेश के दिव्य वाहन की कथा, जानिए यहां

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: April 24, 2024 06:39 IST

भगवान गणेश अपने भक्तों के सभी कष्‍टों को हरने वाले हैं। भगवान लंबोदर की सवारी चूहा है, जो इस बात का परिचायक है कि प्रभु एकदंत इंसान और जानवरों में कोई भेदभाव नहीं करते हैं।

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ठळक मुद्देभगवान गणेश अपने भक्तों के सभी कष्‍टों को हरने वाले हैंप्रभु एकदंत इंसान और जानवरों में कोई भेदभाव नहीं करते हैं, इस कारण से मूसक उनका वाहन हैगणेश पुराण के अनुसार भगवान गणेश का चूहा अपने पूर्व जन्‍म में एक अर्द्ध-भगवान था

Lord Ganesh: भगवान गणेश समभाव से अपने भक्तों के सभी कष्‍टों और संकटों को हरने वाले हैं। भगवान लंबोदर की सवारी चूहा है, जो इस बात का परिचायक है कि प्रभु एकदंत इंसान और जानवरों में कोई भेदभाव नहीं करते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि भगवान गणेश की सवारी चूहा क्‍यों हैं तो आइए जानते हैं इसके बारे में।

कोंच्र की कहानी

गणेश पुराण के अनुसार भगवान गणेश का चूहा अपने पूर्व जन्‍म में एक अर्द्ध-भगवान था और उसका नाम उस समय क्रोंच था। भगवान इंद्र की सभा में क्रोंच का पैर धोखे से एक मुनि वामादेव के पैरों पर रख गया, जो एक महान संत थे। मुनि वामादेव को लगा कि क्रोंच ने यह जानबूझकर किया है और उन्‍होने क्रोंच को चूहा बनने का शाप दे दिया। क्रोंच भयभीत हो गया और वह ऋषि के चरणों पर गिर पड़ा और शाप का निवारण करने के लिए कहने लगा।

उसके बाद ऋषि का गुस्‍सा ठंडा पड़ा लेकिन उनका दिया हुआ शाप बेकार नहीं जा सकता था, इसलिये उन्‍होने कहा कि जाओ तुम भगवान गणेश के वाहन बनोगे और उनकी सेवा करोगे। उसके बाद, क्रोंच, ऋषि के चरणों में ही चुका बन गया और महर्षि पराशर के आश्रम में जा गिरा।

क्रोंच का आतंक

क्रोंच, कोई साधारण चूहा नहीं था। वास्‍तव में, वह इतना बड़ा था जैसे पर्वत हों और सभी को अपने में समा लेता। वह बड़ा भयावह था। वह अपने रास्‍ते में आने वाली सभी चीजों को नष्‍ट कर देता था। धरती पर उसे आंतक का दूसरा नाम माना जाता था।

गणेश पर्वत

उसी समय भगवान गणेश को महर्षि परमार के आश्रम में आमंत्रित किया गया और उनकी सेवा में महर्षि और उनकी पत्‍नी वत्‍सला लगी हुई थी। इस चुहे के आंतक को सुनकर भगवान गणेश ने इसे पकड़ने का फैसला किया। भगवान ने एक फंदा बनाया और उसे हवा में चूहे को फसाने के लिए फेंका। इस फंदे से पूरे संसार में रोशनी हो गई और इस चूहे का पीछा करना शुरू कर दिया। पीछा करते हुए इस चूहे को भगवान गणेश ने पकड़ लिया।

इस प्रकार क्रोंच ने क्षमा मांगी और भगवान ने उसे क्षमा कर दिया और अपना वाहन बना लिया। लेकिन क्यों?

दरअसल प्राचीन काल में गजमुख नाम का एक महाभयंकर असुर हुआ करता था। वह पूरी धरती के साथ पाताल और स्वर्ग पर भी अधिकार करना चाहता था। अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए उसने भगवान शिव को प्रसन्न कर वरदान लेने की योजना बनाई।

गजमुख घने जंगल में जाकर शिव की तपस्या में लीन हो गया। कई वर्ष बीत गए और वह बिना कुछ खाए-पीए, एक पैर पर खड़ा होकर भगवान शिव के नाम का जाप करता रहा।

अंततः भगवान शिव प्रकट हुए और गजमुख से वरदान मांगने को कहा। गजमुख ने कहा कि हे भगवन्! मुझे ब्रह्मांड का कोई अस्त्र ना मार सके, ऐसा वरदान दीजिए। शिव जी ने तथास्तु कहकर वरदान स्वीकृत कर दिया।

गजमुख अपना मनचाहा वरदान पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और तुरंत ही अपनी इच्छा पूरी करने में जुट गया। बहुत ही शीघ्र उसने पृथ्वी और पाताल को अपने अधीन कर लिया और फिर स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। शिव जी के वरदान के अनुसार कोई भी अस्त्र-शस्त्र गजमुख का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता था, इसलिए उसके सामने देवताओं के दिव्यास्त्र भी टिक ना सके।

देखते ही देखते उसने देवलोक से देवताओं को खदेड़ दिया। सारे देवता घबराकर त्रिशक्ति ब्रह्मा, विष्णु, महेश की शरण में पहुंचे। देवों की समस्या को देखकर शिवजी ने अपने पुत्र गणेश को गजमुख से युद्ध करने भेजा। इसके बाद भगवान गणेश और गजमुख में भयंकर युद्ध हुआ। भगवान शिव के वरदान के कारण गजमुख पर कोई अस्त्र प्रभाव ही नहीं कर रहा था, सो गणपति के भी सारे अस्त्र-शस्त्र समाप्त और प्रभावहीन हो गए।

इसी बीच एक क्षण निहत्थे हो जाने पर गणपति ने अपना एक दांत तोड़कर गजमुख को दे मारा। दांत वास्तव में एक अस्त्र नहीं था, इसीलिए वह अचूक प्रमाणित हुआ और गजमुख गंभीर रूप से घायल हो गया। इसके बावजूद गजमुख ने हार नहीं मानी। उसने अपनी माया से विशाल चूहे का रूप धरा और पूरे वेग से गणपति की तरफ दौड़ने लगा। जब गणपति ने उसे अपनी तरफ आते देखा, तो वे भी पूरी गति से गजमुख की तरफ दौड़ने लगे और उसके समीप आते ही कूदकर उसकी पीठ पर जा बैठे।

गजमुख ने अपनी पूरी ताकत लगाकर गणपति को पटकना चाहा और गणेश भी पूरी ताकत से उसकी गर्दन पर सवार रहे। आखिरकार लंबे संघर्ष के बाद गजमुख ने हार मान ली। इसके बाद भी गणेश जी ने उसे नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा कि तुम स्वभाव से ही उत्पाती हो। इसीलिए यह अधिक उत्तम होगा कि तुम हमेशा इसी रूप में मेरा वाहन बनकर रहो, ताकि मैं हमेशा तुम्हारी सवारी कर तुम्हारी कुबुद्धि को नियंत्रित रखूंगा। गजमुख ने उनका आदेश स्वीकार किया और भगवान का वाहन बन गया।

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