जीवित्पुत्रिका व्रत: कब है जिउतिया? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और इस व्रत का महत्व

By गुणातीत ओझा | Published: September 9, 2020 09:53 AM2020-09-09T09:53:14+5:302020-09-09T09:53:14+5:30

कभी कोई व्रत पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है, तो कभी कोई संतान की लंबी उम्र के लिए। संतान की लंबी उम्र के लिए रखे जाने वाले व्रतों में सबसे विशेष जीवित्पुत्रिका का व्रत होता है। इस व्रत को जिउतिया व्रत भी कहते हैं।

jivitputrika vrat 2020: when is jiutia Learn auspicious time worship method story and importance of this fast | जीवित्पुत्रिका व्रत: कब है जिउतिया? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और इस व्रत का महत्व

जानें जीवित्पुत्रिका व्रत के बारे में सबकुछ।

Highlightsसंतान की लंबी उम्र के लिए रखे जाने वाले व्रतों में सबसे विशेष जीवित्पुत्रिका का व्रत होता है।इस व्रत को जिउतिया व्रत भी कहते हैं।

jivitputrika vrat 2020: हिन्दू धर्म का आध्यात्म से गहरा नाता है। साल का ऐसा कोई भी दिन नहीं होता जो ईश्वर को समर्पित नहीं होता। हिन्दू धर्म में महिलाएं और पुरुष जीवन की खुशहाली, लंबी उम्र और मोक्ष के लिए कई व्रत रखते हैं। कभी कोई व्रत पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है, तो कभी कोई संतान की लंबी उम्र के लिए। संतान की लंबी उम्र के लिए रखे जाने वाले व्रतों में सबसे विशेष जीवित्पुत्रिका का व्रत होता है। इस व्रत को जिउतिया व्रत भी कहते हैं। संतान की लंबी उम्र की कामना के साथ रखे जाने वाले इस व्रत में मां बिना जल ग्रहण किए इस व्रत को संपन्न करती है। 

जीवित्पुत्रिका व्रत- तिथि और शुभ मुहूर्त (jeevitputrika vrat- tithi shubh muhoort)

आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है। इस साल 10 सितंबर 2020 यानी कल गुरुवार के दिन जीवित्पुत्रिका व्रत/जिउतिया व्रत रखा जाएगा। जीवित्पुत्रिका व्रत बिहार, मध्य प्रदेश और पूर्वी उत्तर प्रदेश में असीम आस्था के साथ मनाया जाता है। 

अष्टमी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 10, 2020 को 02:05 बजे (सुबह)

अष्टमी तिथि समाप्त – सितम्बर 11, 2020 को 03:34 बजे (सुबह)

पारण का समय (Paran Ka Samay)

जीवित्पुत्रिका व्रत रखने वाली स्त्रियों को 11 सितंबर शुक्रवार की सुबह सूर्योदय के बाद से दोपहर 12 बजे तक पारण कर लेना है। दोपहर से पहले पारण कर लेने की मान्यता बताई गयी है।

जानें कैसे हुई जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरुआत (Jeevitputrika Vrat Ki Shuruat) 

महाभारत के युद्ध के समय अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा बेहद नाराज हुए। इसी गुस्से में वह पांडवों के शिविर में घुस गए। शिविर के अंदर उस वक्त 5 लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा को लगा कि, वो लोग पांडव हैं और अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उन्होंने उन पांचों को मार डाला।

हालांकि असल में वह द्रौपदी की पांच संताने थी। इस बात की खबर जब अर्जुन को मिली तो उन्होंने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उनकी दिव्यमणि छीन ली। अब अश्वत्थामा के गुस्से की आग और बढ़ चली और उन्होंने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को उसके गर्भ में ही नष्ट कर दिया। 

लेकिन भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की उस अजन्मी संतान को देकर उसे फिर से जीवित कर दिया। मर कर पुनः जीवित होने की वजह से उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। उसी समय से बच्चों की लंबी उम्र के लिए और मंगल कामना करते हुए जितिया का व्रत रखे जाने की परंपरा की शुरुआत हुई। 

जीवित्पुत्रिका व्रत पूजन विधि (Jeevitputrika Vrat Pooja Vidhi)

जिउतिया व्रत के पहले दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। उसके बाद पूजा करें। 

इसके बाद महिलाएं भोजन ग्रहण करती हैं और उसके बाद पूरे दिन तक वो कुछ भी नहीं खाती। 

दूसरे दिन सुबह स्नान के बाद महिलाएं पहले पूजा पाठ करती हैं और फिर पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं। 

इस व्रत का पारण छठ व्रत की तरह तीसरे दिन किया जाता है। 

पारण से पहले महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देती हैं, जिसके बाद ही वह कुछ खाना खा सकती हैं। 

इस व्रत/त्यौहार के तीसरे दिन झोर भात, मरुआ की रोटी और नोनी का साग खाया जाता है।

अष्टमी के दिन प्रदोष काल में महिलाएं जीमूत वाहन की पूजा करती है। जीमूत वाहन को धूप-दीप, अक्षत, फल-फूल आदि चढ़ाया जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। 

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व (Jeevitputrika Vrat Significance)

जीवित्पुत्रिका या जिउतिया का व्रत हिंदू धर्म में संतान की लंबी उम्र और उसकी मंगल कामना के लिए किया जाता है। माना जाता है कि, इस व्रत को जो भी माँ करती है उनकी संतान को लंबी उम्र और जीवन भर किसी भी दुःख और तकलीफ से सुरक्षा मिलती है। जो कोई भी महिला इस व्रत की कथा सुनती है उसे कभी भी अपनी संतान के वियोग का सामना नहीं करना पड़ता है। इसके अलावा घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है। 

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा (Jeevitputrika Vrat Katha)

इस व्रत से जुड़ी कथा के अनुसार, गंधर्व के राजकुमार जीमूत वाहन थे। वृद्धावस्था में जीमूत वाहन के पिता वानप्रस्थ आश्रम जाते समय उन्हें अपना राजपाठ सौंप कर जाते हैं। लेकिन जीमूत का राजा बनकर मन नहीं लगता। ऐसे में वह अपने साम्राज्य को अपने भाइयों के भरोसे छोड़कर अपने पिता की सेवा करने जंगल चले जाते हैं।

जंगल जा कर के वह मलयवती नाम की एक राज कन्या से विवाह कर लेते हैं। एक दिन जंगल में जीमूतवाहन को एक बूढ़ी औरत रोती हुई नजर आती है। जब जीमूतवाहन ने उनसे रोने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि, मैं नागवंश की स्त्री हूं और मेरा एक ही बेटा है। पक्षियों के राजा गरुण के सामने नागों ने उन्हें रोज खाने के लिए नाग सौंपने की प्रतिज्ञा की है। बली के क्रम में आज मेरे बेटे शंखचूड़ की बलि दी जाने वाली है।

तब जीमूत वाहन ने बुजुर्ग महिला से कहा कि आप घबराइए मत आपके बेटे की रक्षा में करूंगा। आज उसकी जगह पर मैं खुद बलि देने जाऊंगा। वृद्ध महिला से ऐसा वादा करके जीमूत वाहन ने शंख चूड़ से लाल कपड़ा लिया और उसे लपेटकर गरुड़ को बलि देने के लिए शीला पर लेट गए।

इसके बाद गरुण आए और लाल ढके कपड़े में जीमूत वाहन को दबाकर पहाड़ की ऊंचाई पर लेकर चले गए। चोंच में दबे जीव को रोता देखकर गरुण बेहद हैरान परेशान हुए तब उन्होंने जीमूत वाहन से पूछा कि आप कौन हैं? तब जीमूतवाहन ने उनको सारी बात कह सुनाई। गरुड़ जीमूत की बहादुरी और हिम्मत से बेहद प्रभावित हुए और तब उन्हें जीवनदान देकर आगे से नागों की बलि ना लेने का भी वरदान दिया। इसी समय से बेटे की रक्षा के लिए जीमूत वाहन की पूजा की शुरुआत हुई।

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