श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। ऐसे में हर साल भाद्र महीने की अष्टमी को जन्माष्टमी मनाई जाती है। कहते हैं कि भगवान विष्णु के अवतार रहे श्रीकृष्ण का जन्म आधी रात को करीब 5000 साल पहले हुआ था। यही कारण है कि जन्माष्टमी के मौके पर आधी रात को भगवान कृष्ण की पूजा होती है।
Janmashtami: श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी
स्कंद पुराण के अनुसार द्वापरयुग में मथुरा में महाराजा उग्रसेन राज करते थे। हालांकि, उनके क्रूर बेटे कंस ने अपने पिता को सिंहासन से हटा दिया और खुद राजा बन गया। कंस का अत्याचार बढ़ता जा रहा है। कंस की एक बहन देवकी थी जिसका विवाह वासुदेव से हुआ। कंस अपनी बहन से बहुत प्रेम करता था। विवाह के बाद वह खुद ही देवकी को उसके ससुराल छोड़ने जाने लगा।
इसी समय रास्ते में आकाशवाणी हुई, 'हे कंस जिस देवकी को तू इतने प्रेम से विदा कर रहा है उसका ही आठवां पुत्र तेरा काल होगा।' यह सुनते ही कंस क्रोधित हो गया और उसने देवकी और वासुदेव को बंधक बना लिया।
कंस ने सोचा कि अगर वह देवकी के हर पुत्र को मारता गया तो वह अपने काल को हराने में कामयाब होगा। उसने यही शुरू किया। देवकी का जैसे ही कोई संतान पैदा होती, कंस उसे पटककर मार देता।
कारागार में कृष्ण का जन्म
सात संतानों के मारे जाने के बाद देवकी के 8वें पुत्र के जन्म की बारी आई। कंस इस बात को जानता था और इसलिए उसने सुरक्षा और कड़ी कर दी। हालांकि, इस बार कंस की सारी योजनाएं धरी की धरी रह गईं। अष्टमी की रात रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जैसे ही जन्म हुआ पूरे कमरे में उजाला हो गया। उसी समय संयोग से नंदगांव में यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ।
इधर मथुरा में कृष्ण का जन्म होते ही वासुदेव के हाथ-पैरों में बंधी सारी बेड़िया अपने आप खुल गईं। कारागार के दरवाजे खुल गये और सभी पहरेदारों को नींद आ गई। इसके बाद वासुदेव ने एक टोकरी में नवजात शिशु को रखा और नंद गांव की ओर चल पड़े।
वासुदेव जब यमुना किनारे पहुंचे तो नदी ने भी उन्हें रास्ता दे दिया। पूरे मथुरा में इस समय तेज बारिश हो रही थी ऐसे में शेषनाग स्वयं शिशु के लिए छतरी बनकर वासुदेव के पीछे-पीछे चलने लगे।
नंदगांव में कृष्ण को छोड़ आये वासुदेव
वासुदेव यमुना पार कर नंदगांव पहुंचे और यशोदा के साथ कृष्ण को सुला दिया और स्वयं कन्या को लेकर मथुरा गये। यह कन्या दरअसल माया का एक रूप थी। वासुदेव जैसे ही कारागार पहुंचे, सबकुछ सामान्य और पहले की तरह हो गया। कंस को आठवें संतान के जन्म की खबर पहरेदारों से मिली तो वह उसे मारने वहां आ पहुंचा।
कंस ने कन्या को अपने गोद में लिया और एक पत्थर पर पटकने की कोशिश की। हालांकि, इससे पहले ही वह कन्या आकाश में उड़ गई और माया का रूप ले लिया। साथ ही उसने कहा, 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारने वाला तो पहले ही कहीं और सुरक्षित पहुंच चुका है।'
यह सुनकर कंस बेहद क्रोधित हुआ और कृष्ण की खोज शुरू कर दी। कंस को जब कृष्ण के नंदगांव में होने की बात पता चली तो उसने कई बार उन्हें मारने का प्रयास किया लेकिन असफल रहा। आखिर में श्रीकृष्ण ने युवावस्था मथुरा आकर कंस का वध किया और राजा उग्रसेन समेत अपने माता-पिता को कारागार से बाहर निकाला।