जैन मुनि तरुण सागर का निधन: कौन होते हैं जैन मुनि, जीवनभर क्यों करते हैं कठोर नियमों का पालन?

By गुलनीत कौर | Published: September 1, 2018 11:02 AM2018-09-01T11:02:16+5:302018-09-01T11:02:16+5:30

जैन मुनि तरुण सागर जी महाराज बीते 20 दिन से पीलिया रोग की चपेट में थे। लगातार उनका इलाज चल रहा था लेकिन अंतिम दिनों में उन्होंने खुद अपना इलाज बंद करा दिया था। 

Jain Muni Tarun Sagar Ji Maharaj died, know everything about jain muni and their life | जैन मुनि तरुण सागर का निधन: कौन होते हैं जैन मुनि, जीवनभर क्यों करते हैं कठोर नियमों का पालन?

जैन मुनि तरुण सागर का निधन: कौन होते हैं जैन मुनि, जीवनभर क्यों करते हैं कठोर नियमों का पालन?

जैन तपस्वी, संत, दार्शनिक तरुण सागर का 51 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। बीते कुछ दिनों से बीमार चल रहे जैन मुनि ने आज सुबह आखिरी सांस ली है। दोपहर 3 बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। बताया जा रहा है कि बीमारी के चलते उन्हें जिस कमरे में रखा गया था, वहां किसी भी बाहरी को जाने की अनुमति नहीं थी। केवल जैन मुनियों और शिष्यों को ही अन्दर जाने की आज्ञा प्राप्त थी। अपने आखिरी क्षणों में तरुण सागर दिल्ली में अपने चातुर्मास स्थल पर थे।

जैन मुनि तरुण सागर जी महाराज बीते 20 दिन से पीलिया रोग की चपेट में थे। लगातार उनका इलाज चल रहा था और वे डॉक्टरों की निगरानी में थे। लेकिन इसके बावजूद भी उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। खबर के मुताबिक तरूग सागर जी ने स्वयं ही अंतिम दिनों में अपना इलाज बंद करा दिया था और चातुर्मास स्थल पर जाने का निर्णय लिया था।

जैन मुनि तरुण सागर जी महाराज के अनगिनत भक्त थे। उन्हें मानने वाले सामान्य व्यक्ति से लेकर बड़े-बड़े राजनेता और फ़िल्मी जगत के सितारे भी थे। अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक उन्होंने जैन धर्म के हर नियम का पालन किया और आखिरकार मोक्ष की प्राप्ति की। आइए आपको बताते हैं कि कौन होते हैं जैन मुनि, वे किन नियमों का पालन करते हैं। 

जैन मुनि जैन धर्म में वे संत होते हैं जो सन्यासी कहलाती है। ताउम्र ये लोग एक सन्यासी का जीवन बिताते हैं। इनके लिए निर्ग्रन्थ शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। यदि सन्यासी पुरुष है तो वे 'जैन मुनि' कहलाते हैं और यदि वे स्त्री हैं तो इन सन्यासियों को 'आर्यिका' कहकर संबोधित किया जाता है।

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यदि आप किसी जैन धार्मिक स्थल पर जाएं तो आप इन सन्यासियों को 'श्रमण' के नाम से भी जानेंगे। यह एक धार्मिक शब्द है जो जैन मुनियों द्वारा सामान्य प्रयोग में लाया जाता है।

दिगम्बर जैन मुनि

जैन धर्म में एक होते हैं दिगम्बर जैन मुनि। दिगम्बर यानी वे सन्यासी जिनके लिए दिशाएं ही उनका अम्बर (वस्त्र) हों। दिगम्बर मुनि केवल कमंडल, पिच्छी और शास्त्र ही रख सकते हैं। जैन इतिहास के अनुसार आचार्य कुन्दकुन्द इस काल के प्रमुख दिगम्बर आचार्य थे। जैन धर्म के नियमानुसार प्रत्येक दिगम्बर मुनि को 28 मूल-गुणों का पालन करना अनिवार्य होता है। 

जैन मुनि के लिए नियम

जैन धर्म में 22 'परिषह' का वर्णन मिलता है। परिषह का अर्थ होता है ऐसी चीजें जो जैन धर्म का पालन करने में बाधा बनती हैं। इन चीजों को पार करते हुए यदि सन्यासी जीवन का पालन किया जाए तो जैन मुनि मृत्यु उपरान्त मोक्ष को प्राप्त करता है। ये बाईस परिषह इस प्रकार हैं:

1. भूख,
2. प्यास,
3. सर्दी,
4. गर्मी,
5. दशंमशक,
6. किसी अनिष्ट वस्तु से अरुचि,
7. नग्नता,
8. भोगों का आभाव,
9. स्त्री,
10. चर्या,
11. अलाभ,
12. रोग,
13. याचना,
14. आक्रोश,
15. वध,
16. मल,
17. सत्कारपुरस्कार,
18. जमीन पर सोना,
19. प्रज्ञा,
20. अज्ञान,
21. अदर्शन
22. बैठने की स्थिति

Web Title: Jain Muni Tarun Sagar Ji Maharaj died, know everything about jain muni and their life

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