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Jagannath Rath Yatra 2022: आज से शुरू हुई जगन्नाथ रथ यात्रा, देश-दुनिया से पुरी आए श्रद्धालु

By मनाली रस्तोगी | Updated: July 1, 2022 09:42 IST

ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ रथयात्रा के लिए 'पहंडी' अनुष्ठान शुरू हो गया है। कोरोना वायरस महामारी के बाद दो साल के अंतराल के बाद इस बार रथ यात्रा में भक्तों की भागीदारी की अनुमति दी गई है।

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ठळक मुद्देकोरोना वायरस महामारी के कारण भक्तों को 2020 और 2021 में त्योहार के दौरान पवित्र शहर में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था।हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है।

पुरी: दो साल के अंतराल के बाद शुक्रवार को भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ की नौ दिवसीय रथ यात्रा पूरी जनभागीदारी के साथ शुरू हुई। भगवान जगन्नाथ की बहुप्रतीक्षित रथ यात्रा में भाग लेने के लिए देश भर से हजारों भक्त ओडिशा के पुरी में आए हैं। कोरोना वायरस महामारी के कारण भक्तों को 2020 और 2021 में त्योहार के दौरान पवित्र शहर में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था।

हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है। देश-दुनिया से श्रद्धालू इस भव्‍य यात्रा में हिस्‍सा लेने के लिए ओडिशा के पुरी आते हैं। 1 जुलाई से शुरू हुई उए रथ यात्रा 12 जुलाई तक चलेगी। जगन्नाथ रथ यात्रा हिंदू धर्म का विश्व प्रसिद्ध त्योहार है जिसे काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ को समर्पित मानी जाती है, जो भगवान विष्णु जी के अवतार हैं। धार्मिक मान्यता है कि जो व्यक्ति इस रथ यात्रा में भाग लेता है वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। 

क्यों निकाली जाती है यात्रा?

पौराणिक मान्यता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जगत के नाथ श्री जगन्नाथ पुरी का जन्मदिन होता है। उस दिन प्रभु जगन्नाथ को बड़े भाई बलराम जी और बहन सुभद्रा के साथ रत्नसिंहासन से उतार कर मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है। 108 कलशों से उनका शाही स्नान होता है। इस स्नान से प्रभु बीमार हो जाते हैं उन्हें ज्वर आ जाता है। तब 15 दिन तक प्रभु जी को एक विशेष कक्ष में रखा जाता है। जिसे ओसर घर कहते हैं। इस 15 दिनों की अवधि में महाप्रभु को मंदिर के प्रमुख सेवकों और वैद्यों के अलावा कोई और नहीं देख सकता। 

इस दौरान मंदिर में महाप्रभु के प्रतिनिधि अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थपित की जाती हैं तथा उनकी पूजा अर्चना की जाती है। 15 दिन बाद भगवान स्वस्थ होकर कक्ष से बाहर निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं। जिसे नव यौवन नैत्र उत्सव भी कहते हैं। इसके बाद द्वितीया के दिन महाप्रभु श्री कृष्ण और बड़े भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ बाहर राजमार्ग पर आते हैं और रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व

धार्मिक रूप से यात्रा का बड़ा महत्व है। पुरी हिंदू धर्म के चार सबसे पवित्र धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं। मान्यता है कि जो कोई भक्त इस इनकी इस यात्रा में शामिल होता है भगवान जगन्नाथ उनके समस्त दुखों को हर लेते हैं। साथ ही उन्हें 100 यज्ञों के समान मिलने वाला पुण्य लाभ प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से भी मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।

टॅग्स :जगन्नाथ पुरी रथ यात्राओड़िसाPuri Jagannath
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