Hartalika Teej Vrat Katha: आज हरतालिका तीज पर पढ़ें यह व्रत कथा

By गुणातीत ओझा | Published: August 21, 2020 04:08 PM2020-08-21T16:08:54+5:302020-08-21T16:08:54+5:30

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है। हरितालिका तीज का अर्थ है-‘हरत’ अर्थात हरण करना, ‘आलिका’ अर्थात् सहेली या सखी।

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Highlightsभाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है।हरितालिका तीज का अर्थ है-‘हरत’ अर्थात हरण करना, ‘आलिका’ अर्थात् सहेली या सखी।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है। हरितालिका तीज का अर्थ है-‘हरत’ अर्थात हरण करना, ‘आलिका’ अर्थात् सहेली या सखी। इस व्रत को हरितालिका इसलिए कहा जाता है कि पार्वती की सखी उसे पिता के घर से हर कर घने जंगल में ले गई थी।

इस दिन महिलाएं पूरे दिन निराहार रहकर अपने परिवार की सुख-शांति तथा अखंड सौभाग्य के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं वहीं कुंवारी लड़कियां अच्छे पति की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। इस व्रत में शिव-पार्वती एवं भगवान गणेश का पूजन किया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस व्रत की कथा भगवान शंकर ने पार्वती को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के लिए कही थी। इस व्रत से जुड़ी एक कथा भी है जो इस प्रकार है।

हरतालिका तीज व्रत कथा (Hartalika Teej Vrat Katha In Hindi)

पार्वती अपने पूर्व जन्म में राजा दक्ष की पुत्र सती थी। इस जन्म में भी वे भगवान शंकर की प्रिय पत्नी थीं। एक बार सती के पिता दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उसमें द्वेषतावश भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। जब यह बात सती को पता चली तो उन्होंने भगवान शंकर से यज्ञ में चलने को कहा लेकिन आमंत्रित किए बिना भगवान शंकर ने जाने से इंकार कर दिया। तब सती स्वयं यज्ञ में शामिल होने चली गईं। वहां उन्होंने अपने पति शिव का अपमान होने के कारण यज्ञ की अग्नि में देह त्याग दी।

अगले जन्म में सती का जन्म हिमालय राजा और उनकी पत्नी मैना के यहां हुआ। बाल्यावस्था में ही पार्वती भगवान शंकर की आराधना करने लगी और उन्हें पति रूप में पाने के लिए घोर तप करने लगीं। यह देखकर उनके पिता हिमालय बहुत दु:खी हुए। हिमालय ने पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करना चाहा लेकिन पार्वती भगवान शंकर से विवाह करना चाहती थी। पार्वती ने यह बात अपनी सखी को बताई। वह सखी पार्वती को एक घने जंगल में ले गई।

पार्वती ने जंगल में मिट्टी का शिवलिंग बनाकर कठोर तप किया जिससे भगवान शंकर प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रकट होकर पार्वती से वरदान मांगने को कहा। पार्वती ने भगवान शंकर से अपनी धर्मपत्नी बनाने का वरदान मांगा जिसे भगवान शंकर ने स्वीकार किया। इस तरह माता पार्वती को भगवान शंकर पति के रूप में प्राप्त हुए।

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