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हरियाली तीज: शाम को पूजा करते वक्त इन चीजों का रखें ख्याल, जान लें ये जरूरी बातें

By गुणातीत ओझा | Updated: July 23, 2020 17:33 IST

हर साल हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास में 'हरियाली तीज' का त्योहार मनाया जाता है। यह दिन सुहागन महिलाओं के लिए खास होता है। इसके अलावा कुंवारी कन्याओं पर भी इसदिन भगवान शिव तथा देवी पार्वती की कृपा रहती है।

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ठळक मुद्देहरियाली तीज का उत्सव भारत के अनेक भागों में मनाया जाता है।राजस्थान में विशेषकर जयपुर में इसका विशेष महत्त्व है।

Hariyali Teej 2020 Puja Vidhi, Vrat Katha, Shubh Muhurat, Samagri, Mantra:हरियाली तीज हर साल सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। जो इस बार 23 जुलाई को है। इस दिन सुहागिन महिलाएं श्रृंगार कर माता पार्वती और शिव भगवान की पूजा करती हैं। अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ये व्रत रखा जाता है। कई जगह महिलाएं इस दिन एक जगह एकत्र होकर मेहंदी लगाती हैं, लोक गीत गाती हैं और झूला भी झूलती हैं। शाम के समय महिलाएं 16 श्रृंगार करके पूजा कर व्रत कथा सुनती हैं। 

शाम के वक्त सुहागिन सुनती हैं कथा

हरियाली तीज के दिन महिलाएं हरे रंग का प्रयोग प्रमुखता से करती हैं। इस दिन मायके से बेटी के लिए साड़ी, श्रृंगार सामग्री, फल इत्यादि आते हैं। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। शाम के समय महिलाएं श्रृंगार कर व्रत कथा सुनती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस व्रत में सोना नहीं चाहिए। माता पार्वती के गाने और कहानियां सुननी चाहिए। हरियाली तीज भगवान शिव और मां पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। अच्छे वर की मनोकामना के लिए इस दिन कुंवारी कन्याएं भी व्रत रखती हैं। 

हरियाली तीज मुहूर्त

तृतीया तिथि की शुरुआत 22 जुलाई को शाम 07:21 बजे से हो जाएगी और इसकी समाप्ति 23 जुलाई को 05:02 बजे पर होगी।

हरियाली तीज का पर्व 23 जुलाई को है इसलिए इस दिन सुबह और शाम में किसी भी समय पूजा की जा सकती है। 

हरियाली तीज व्रत का पूजन रातभर चलता है। इस दौरान महिलाएं जागरण और कीर्तन भी करती हैं। फिर थाली में सुहाग की सामग्रियों को सजा कर माता पार्वती को अर्पित करें। ऐसा करने के बाद भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाएं। अंत में हरियाली तीज की कथा सुनकर आरती उतारकर पूजा संपन्न करें।

हरियाली तीज का महत्व

मान्यता है कि हरियाली तीज के ही दिन भगवान शिव पृथ्वी पर अपने ससुराल आते हैं, जहां उनका और मां पार्वती का सुंदर मिलन होता है। इसलिए इस तीज के दिन, महिलाएं सच्चे मन से मां पार्वती की पूजा-आराधना करते हुए उनसे आशीर्वाद के रूप में अपने खुशहाल और समृद्ध दांपत्य जीवन की कामना करती हैं। इस पर्व में हरे रंग का भी अपना एक अलग महत्व होता है। विवाहित महिलाएं इस दिन अपने पीहर जाती हैं, जहां वो हरे रंग के ही वस्त्र जैसे साड़ी या सूट पहनती हैं।

सुहाग की सामग्री के रूप में इस दिन हरी चूड़ियां ही पहने जाने का विधान है। साथ ही महिलाएं इस पर्व पर खास झूला डालने की परंपरा भी निभाती हैं। यही कारण है कि इस दिन विवाहित और कुंवारी महिलाओं को भी पूर्ण श्रृंगार करके झूला झूलते देखा जाता है। विवाहित महिलाओं के ससुराल पक्ष द्वारा इस दौरान सिंधारा देने की परंपरा है जो एक सास अपनी बहू को उसके मायके जाकर देती हैं। सिंधारे के रूप में महिला को मेहंदी, हरी चूड़ियां, हरी साड़ी, घर के बने स्वादिष्ट पकवान और मिठाइयां जैसे गुजिया, मठरी, घेवर, फैनी दी जाती हैं। सिंधारा देने के कारण ही, इस तीज को सिंधारा तीज भी कहा जाता है। सिंधारा सास और बहु के आपसी प्रेम और स्नेह का प्रतिनिधित्व करता है।

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