Ganesh Chaturthi 2025:भगवान गणेश के जन्म का भव्य उत्सव गणेश चतुर्थी के त्योहार की रौनक इस समय पूरे देश में है। खासकर मुंबई में गणेश चतुर्थी उत्सव का नजारा ही कुछ अलग है। जश्न और हर्षोल्लास के साथ विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा की जाती है। गणेश चतुर्थी के दौरान गणेश भगवान को दूर्वा घास और मोदक सबसे ज्यादा चढ़ाए जाते हैं क्योंकि यह उन्हें अति प्रिय है। इस परंपरा के पीछे एक गहरा पौराणिक इतिहास है। भगवान गणेश को दूर्वा घास और मोदक चढ़ाने के पीछे धार्मिक और पौराणिक कथाएं हैं। इन दोनों चीजों को गणपति की पूजा में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
भगवान गणेश को दूर्वा घास क्यों चढ़ाई जाती है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार अनलासुर नामक एक राक्षस था जो अपनी शक्तियों से पृथ्वी और स्वर्ग दोनों जगह आतंक मचा रहा था। वह ऋषि-मुनियों और आम लोगों को भी निगल जाता था। देवताओं ने उससे परेशान होकर भगवान गणेश से मदद मांगी।
जब भगवान गणेश ने अनलासुर को निगल लिया, तो उनके पेट में भयंकर जलन होने लगी। कई उपायों के बाद भी जब यह पीड़ा कम नहीं हुई, तब ऋषि कश्यप ने उन्हें 21 गांठों वाली दूर्वा घास खाने को दी। जैसे ही गणेश जी ने दूर्वा खाई, उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से दूर्वा गणेश जी को बहुत प्रिय हो गई और उनकी पूजा में इसे चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
दूर्वा को शीतलता, पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, और इसे चढ़ाने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और भक्तों के जीवन से बाधाएं दूर करते हैं।
भगवान गणेश को मोदक क्यों पसंद है?
एक बार देवताओं ने देवी पार्वती को अमृत से बना एक मोदक भेंट किया। यह मोदक इतना स्वादिष्ट था कि माता पार्वती के दोनों पुत्र, गणेश और कार्तिकेय, उसे खाने की जिद करने लगे। माता ने कहा कि यह मोदक उसे मिलेगा जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा।
कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर तुरंत परिक्रमा के लिए निकल पड़े। गणेश जी ने चतुराई से अपने माता-पिता के चारों ओर सात बार परिक्रमा की और कहा कि 'पूरी दुनिया मेरे माता-पिता में समाई हुई है'। उनकी इस बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर माता पार्वती ने उन्हें वह मोदक दिया। मोदक खाकर गणेश जी को बहुत आनंद हुआ, और तभी से मोदक उनका प्रिय भोग बन गया।
इसके अलावा, मोदक का अर्थ 'आनंद देने वाला' भी होता है। मोदक का बाहरी आवरण सादगी और दृढ़ता का प्रतीक है, जबकि अंदर की मिठास (गुड़ और नारियल) ज्ञान और आनंद का प्रतीक है। यह जीवन के इस दर्शन को दर्शाता है कि ज्ञान और सुख अंदर से आते हैं।
ये प्रसाद हमें दिखाते हैं कि ज्ञान सरल और मधुर दोनों है। अनुष्ठान में हम जो बाहर अर्पित करते हैं, वही हमें अपने भीतर भी विकसित करना चाहिए, दूर्वा की तरह लचीलापन और मोदक के सार जैसा आनंद।
(आर्टिकल में मौजूद जानकारी सामान्य ज्ञान पर आधारित है। लोकमत हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है।)