आज पुत्रदा एकादशी, व्रत से होती है संतान और धन की प्राप्ति, जानें व्रत कथा और विधि

By मेघना वर्मा | Published: August 22, 2018 09:22 AM2018-08-22T09:22:01+5:302018-08-22T09:22:29+5:30

पुत्रदा एकादशी व्रत में जो व्रत नहीं रखते उन्हें लहसुन और प्याज का सेवन करने से भी बचना चाहिए।

ekadashi 2018: putrada ekadashi vrat know its significance of vrat, pooja and vrat katha | आज पुत्रदा एकादशी, व्रत से होती है संतान और धन की प्राप्ति, जानें व्रत कथा और विधि

आज पुत्रदा एकादशी, व्रत से होती है संतान और धन की प्राप्ति, जानें व्रत कथा और विधि

हिन्दू धर्म में हर एक व्रत का अपना अलग महत्व होता है। इसी व्रत में एक है पुत्रदा एकादशी का व्रत। वैसे तो हर महीने दो एकादशी पड़ती है, सभी का अपना महत्व है, परंतु इस साल 22 अगस्त को पड़ने वाली इस पुत्रदा एकादशी को बेहद महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। यह व्रत गाय के महत्व को बताता है। हिन्दू धर्म में गाय को पूजनीय माना गया है। ऐसी मान्यता है कि गाय में सभी देवी-देवाताओं का वास होता है। पुत्रदा एकादशी पर गाय की पूजा करने की प्रथा है। पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से निःसंतानों को संतान और आर्थिक तंगी जूझ रहे लोगों को धन प्राप्त होता है। आगे जानिए व्रत की कथा, व्रत विधि एवं व्रत करने के सभी लाभ। 

भगवान शिव और मां लक्ष्मी होती हैं प्रसन्न

पुत्रदा एकादशी को 'पवित्रा एकादशी' और 'पापनाशिनी एकादशी' भी कहते हैं। संतानहीन लोगों को इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है। श्रावण मास में आने वाली इस एकादशी का व्रत करने से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं। इस अवसर पर भगवान शंकर का अभिषेक करने से भी लाभ होता है। ये व्रत पौष और श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी से मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। 

नहीं करना चाहिए लहसुन और प्याज का सेवन

पुत्रदा एकादशी व्रत में जो व्रत नहीं रखते, उन्हें भी लहसुन और प्याज का सेवन करने से बचना चाहिए। एकादशी के दिन सुबह जल्दी नहाकर भगवान  शंकर और लक्ष्मी की उपासना करनी चाहिए। भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा अवश्य करनी चाहिए। पूजा समपन्न करने के लिए द्वादशी के दिन भगवान विष्णु को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें। 

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

इस व्रत के बारे में एक कथा सबसे अधिक प्रचलित है जिसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी बारे में पूछने पर भगवान कृष्ण ने कहा कि द्वापर युग की शुरूआत में माहिष्मतीपुर में राजा महीजित राज करते थे। राजा का बहुत बड़ा शासन था परंतु उनकी कोई संतान नहीं थी। जिससे वह काफी दुखी रहा करते थे। एक दिन उन्होंने अपने दरबार में अपनी इस पीड़ा को बताया तो सभी नें राजा की इस समस्या का समाधान निकालने की ठान ली।

 एक साथ मिलकर सब जंगल में ऋषि लोमश की साधना करने लगे। लोमश ने उन्हें बताया कि पिछले जन्म में राजा ने भूखी-प्यासी गाय और उसके बछड़े को खाना-पानी पीने से रोका था। जिसके कारण यह सब हुआ है। ऋषि ने कहा अगर राजा इस वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पख की एकादशी तिथि को व्रत करें तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो सकती है। राजा ने ठीक वैसा ही किया और कुछ ही महीनों बाद उनको एक संतान की प्राप्ति हुई। इसी कथा को आधार मानकर पुत्रदा एकादशी का व्रत और पूजन किया जाता है। 

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