चैत्र नवरात्रि 2018: क्यों किया जाता है कलश स्थापित, जानें शास्त्रीय महत्व एवं लाभ
By धीरज पाल | Published: March 15, 2018 07:27 AM2018-03-15T07:27:50+5:302018-03-18T09:51:18+5:30
कलश स्थापना हिंदू समय के अनुसार प्रतिपदा के दिन के मध्य से पहले होनी चाहिए।
हिंदू धर्म में नवारत्रि का विशेष महत्व होता है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक नवरात्रि सालभर में चार बार मनाया जाता है जो पौष, चैत्र, आषाढ़ और अश्विन प्रतिपदा के वक्त पड़ता है। हर बार की नवरात्रि अपने आप में विशेष महत्व रखती हैं जिसके अलग-अलग मान्यताएं होती है। चैत्र और शरदीय नवरात्रि का पूरे पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। इस बार चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 18 मार्च से हो रही है।
इस नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापना या घटस्थापना के साथ होती है क्योंकि चैत्र नवरात्रि में कलश की अलग मान्यता रहती है जिसे पूरे नौ दिनों तक के लिए स्थापित किया जाता है। मान्यताओं के मुताबिक बिना कलश स्थापना के चैत्र नवरात्रि अधूरी मानी जाती है। कलश स्थापित होने के बाद पहले दिन देवी शक्ति की पूजा के साथ की जाती है। नवरात्रि के मौके पर आइए जानते हैं कि चैत्र नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व क्यों है और कलश स्थापित के शुभ मुहूर्त और विधि।
कलश स्थापना का महत्व
शास्त्रों के मुताबिक कलश को सुख- समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला और मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रुद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदादायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं तथा घर में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।
कलश स्थापना के नियम
1. कलश स्थापना का सबसे उत्तम समय दिन का पहला एक तिहाई हिस्सा है।
2. किसी दूसरी स्थिति में अभिजीत मुहूर्त सबसे उत्तम माना गया है।
3. किचित्रा नक्षत्र और वैधृति योग की अवधि में कलश स्थापना करने से बचना चाहिए, लेकिन यह समय पूरी तरह से वर्जित नहीं है।
4. किसी भी परिस्थिति में कलश स्थापना हिन्दू समय के अनुसार प्रतिपदा तिथि के दिन के मध्य से पहले होनी चाहिए।
5. चैत्र नवरात्रि में प्रतिपदा की सुबह द्वि-स्वभाव लग्न मीन होता है, इस अवधि में भी कलश स्थापना करना शुभ माना गया है।
6. कलश स्थापना के लिए शुभ नक्षत्र हैं: पुष्या, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्ता, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु।
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नोट: घटस्थापना हिन्दू समय के अनुसार प्रतिपदा के दिन के मध्य से पहले होनी चाहिए।
कलश स्थापना की विधि
1. पहले मिट्टी को चौड़े मुंह वाले बर्तन में रखें और उसमें सप्तधान्य (सात धान) बोएं।
2. अब उसके ऊपर कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग (गर्दन) में कलावा बांधें।
3. आम या अशोक के पल्लव को कलश के ऊपर रखें।
4. अब नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पल्लव के बीच में रखें।
5. नारियल में कलावा भी लपेटा होना चाहिए।
6. कलश स्थापना पूर्ण होने के बाद देवी का आह्वान करते हैं।
ध्यान दें- आवश्यकतानुसार सामग्री बढ़ा भी सकते हैं, जैसे - मिठाई, दूर्वा, सिंदूर इत्यादि।
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कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
1. चौड़े मुँह वाला मिट्टी का एक बर्तन
2. पवित्र स्थान की मिट्टी
3. सप्तधान्य (7 प्रकार के अनाज)
4. कलश
5. जल (संभव हो तो गंगाजल)
6. कलावा/मौली
7. सुपारी
8. आम या अशोक के पत्ते (पल्लव)
9. अक्षत (कच्चा साबुत चावल)
10. छिलके/जटा वाला नारियल
11. लाल कपड़ा
12. पुष्प और पुष्पमाला