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Bakrid 2020: बकरीद मनाने का क्या है रिवाज और किस तरह के बकरों की देनी चाहिए कुर्बानी?

By गुणातीत ओझा | Updated: August 1, 2020 12:34 IST

बकरीद के मौके पर कुर्बानी की देने की परंपरा पैगंबर हजरत इब्राहिम से शुरू हुई। कहते हैं कि एक दिन उनके ख्वाब में आकर अल्लाह ने उनसे उनकी सबसे पसंदीदा चीज की कुर्बानी मांगी। हजरत इब्राहिम ऐसे में अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए।

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ठळक मुद्देकुर्बानी का त्योहार बकरीद भारत में आज 1 अगस्त को मनाया जा रहा है।इस्लाम धर्म में इस त्योहार का बहुत महत्व है। इस त्योहार को ईद-उल-अजहा के नाम से भी जाता है।

Bakrid 2020: कुर्बानी का त्योहार बकरीद भारत में आज 1 अगस्त को मनाया जा रहा है। इस्लाम धर्म में इस त्योहार का बहुत महत्व है। इस त्योहार को ईद-उल-अजहा के नाम से भी जाता है। यह त्योहार हर साल इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार जु अल-हज्जा महीने के 10वें दिन मनाया जाता है। इसे मुसलमानों के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक माना जाता है। बकरीद के दिन जानवरों की कुर्बानी की परंपरा है। मुसलमान इस दिन अल सुबह की नमाज पढ़ते हैं और फिर खुदा की इबादत में चौपाया जानवरों की कुर्बानी देते हैं।

बकरीद के मौके पर कुर्बानी की देने की परंपरा पैगंबर हजरत इब्राहिम से शुरू हुई। कहते हैं कि एक दिन उनके ख्वाब में आकर अल्लाह ने उनसे उनकी सबसे पसंदीदा चीज की कुर्बानी मांगी। हजरत इब्राहिम ऐसे में अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए। इसके बाद इब्राहिम ने बेटे की कुर्बानी देने के समय अपने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि उन्हें दुख न हो। कुर्बानी के बाद जैसे ही उन्होंने अपनी पट्टी खोली, अपने बेटे को उन्होंने सही-सलामत सामने खड़ा पाया। दरअसल, अल्लाह ने चमत्कार किया था। 

कुर्बानी का समय जैसे ही आया तो अचानक किसी फरिश्ते ने छुरी के नीचे स्माइल को हटाकर दुंबे (भेड़) को आगे कर दिया। ऐसे में दुंबे की कुर्बानी हो गई और बेटे की जान बच गई। मान्यता है कि यही से इस्लाम में बकरीद के मौके पर कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई।

Bakrid 2020: बकरीद पर कैसे बकरों की दें कुर्बानी और क्या है रिवाज?

- बकरीद के मौके पर हमेशा वैसे जानवरों की कुर्बानी दी जानी चाहिए जो पूरी तरह स्वस्थ हो। किसी बीमार या कमजोर दिख रहे बकरे की कुर्बानी नहीं दी जानी चाहिए।

जिन घरों में बकरे का पालन होता है, वे अपने सबसे प्रिय बकरे की कुर्बानी देते हैं। यह अल्लाह के प्रति भरोसा और समर्पण दिखाने का एक तरीका है। वहीं, जिन घरों में बकरे या जानवर नहीं पाले जाते हैं, वहां उन्हें कुछ दिन पहले खरीद लिया जाता है। उसकी अच्छे से देखभाल की जाती है। इसके पीछे कारण है कि कुछ दिन साथ रहने से उसके साथ लगाव हो जाए और फिर उसकी कुर्बानी दी जाए। 

- बकरीद के दिन अल सुबह की नमाज के बाद बकरे की कुर्बानी दी जानी चाहिए।

- बकरे की कुर्बानी के बाद उसके गोस्त को तीन भागों में बाटने की परंपरा है। गोस्त का एक भाग गरीबों को दिया जाता है। दूसरा भाग रिश्तेदारों में बांटा जाना चाहिए जबकि तीसरे भाग को अपने परिवार के लिए रखा जाता है।

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