आरक्षण पर बिहार में सियासत तेज, SC के फैसले के खिलाफ दलित विधायक, एससी—एसटी के 41 MLA में से 22 एक मंच पर
By भाषा | Updated: May 9, 2020 14:33 IST2020-05-09T14:33:34+5:302020-05-09T14:33:34+5:30
विधानसभा लॉबी में बैठक के बाद विधायकों ने विधानसभा परिसर में प्रदर्शन किया और सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय के खिलाफ नारेबाजी भी की। इसके बाद श्याम रजक के अलावा पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, ललन पासवान और रामप्रीत पासवान समेत 22 विधायकों ने एससी एसटी आरक्षण को लेकर प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को पत्र भेजा।

विधानसभा के लॉन में एससी—एसटी विधायकों ने 23 अप्रैल के शीर्ष अदालत के आदेश के खिलाफ हाथों में तख्तियां लेकर नारे भी लगाए। (file photo)
पटना/नई दिल्लीः बिहार में अनुसूचित जाति एवं जनजाति (एससी—एसटी) समुदाय से आने वाले सभी दलों के विधायकों ने आरक्षण के प्रावधान को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की है।
बिहार विधानसभा की लाबी में सभी दलों के अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय से आने वाले विधायकों ने बैठक की और राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आरक्षण के प्रावधान को संविधान को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की।
बैठक के बाद विधानसभा के लॉन में एससी—एसटी विधायकों ने 23 अप्रैल के शीर्ष अदालत के आदेश के खिलाफ हाथों में तख्तियां लेकर नारे भी लगाए। बैठक की अध्यक्षता हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और बिहार के उद्योग मंत्री श्याम रजक ने की और कांग्रेस के राजेश कुमार, राजद के शिव चंद्र राम एवं राजेंद्र राम, भाकपा माले के सत्यदेव राम और जदयू के ललन पासवान सहित कुल 41 एससी और एसटी विधायकों में से 22 ने भाग लिया।
22 एससी—एसटी विधायकों द्वारा हस्ताक्षरित उक्त पत्र में उन्होंने उच्चतम न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्देशों को अनुसूचित जाति जनजाति को प्राप्त संवैधानिक संरक्षण एवं सामाजिक न्याय के अधिकारों के विरुद्ध बताते हुए उसे निरस्त किए जाने और आरक्षण के प्रावधान को संविधान को नौवीं अनुसूची में शामिल करने के की मांग की है।
उन्होंने बताया कि बाहर रहने के कारण कुछ विधायक बैठक में नहीं आए। उन सबने टेलीफोन पर अपनी सहमति दी। विधायकों ने लॉकडाउन के बाद प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति से मुलाकात का समय मांगा है। समय नहीं मिला तो हम सब बिहार के राज्यपाल से मुलाकात करेंगे। ज्ञापन देंगे। लड़ाई लंबी होगी। उन्होंने कहा कि जल्द ही विधिवत मोर्चा बनेगा। इसका अलग कार्यालय रहेगा।
वहीं विधायकों का कहना है कि हाल के वर्षों में आरक्षण में कटौती के कई प्रयास किए गए हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण भी इसी प्रयास का हिस्सा है। उत्तराखंड सरकार ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सेवकों को प्रोन्नति में मिलने वाले आरक्षण को रद्द कर दिया। दुर्भाग्य यह है कि सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कह दिया कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है।