राजस्थान चुनावः मर्यादा मुक्त प्रचार के लिए याद रहेगा यह विधान सभा चुनाव!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: December 6, 2018 01:36 PM2018-12-06T13:36:46+5:302018-12-06T13:36:46+5:30
इस बार के चुनाव प्रचार में बीसवीं सदी के सियासी संस्कारों की विदाई होती नजर आई!
राजस्थान में विस चुनाव प्रचार थम गया है और 11 दिसंबर 2018 की मतगणना के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी, लेकिन यह विधानसभा चुनाव बिगड़े बोलो के साथ मर्यादा मुक्त प्रचार के लिए याद किया जाएगा!
जहां विवादास्पद बयानों के मामले में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और पंजाब के मंत्री नवजोत सिद्धू में टक्कर रही, वहीं मूल मुद्दों की पटरी से उतर कर भाषण देने में पीएम नरेन्द्र मोदी अव्वल रहे.
जहां योगी के बजरंगबली पर व्यक्त विचारों के कारण भाजपा के लिए परेशानी खड़ी हो गई, वहीं चुनाव प्रचार के दौरान सिद्धू ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि- देश के चौकीदार का कुत्ता भी चोर है. इसके बाद कांग्रेस के लिए उनका नैतिक बचाव करना मुश्किल हो गया था.
पीएम मोदी अपने भाषणों में कांग्रेस का इतिहास बदलने की कोशिश तो करते ही रहे, राहुल गांधी को अज्ञानी साबित करने पर भी उनका जोर रहा. वे नामदार कह कर राहुल पर निशाना साधते रहे कि- वे सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए, उन्हें पता नहीं कि चने का पेड़ होता है या पौधा, लाल मिर्च और हरी मिर्च में उन्हें अंतर नहीं पता आदि-आदि.
परन्तु, इस बार ऐसे इमोशनल अटैक का कुछ खास असर इसलिए नहीं रहा कि सोशल मीडिया पर लंबे समय से ऐसे ही झूठे-सच्चे उदाहरणों के साथ राहुल गांधी पर हमले होते रहे हैं और इनकी अति हो जाने के बाद लोगों ने भी इन पर ध्यान देना बंद कर दिया है.
राहुल गांधी के भाषण वैसे तो मुद्दों के आसपास रहे, लेकिन वे भी चौकीदार चोर है, जैसे सियासी हमले करते रहे.
ब्राह्मणों के बारे में टिप्पणी करने के कारण कांग्रेस नेता सीपी जोशी, केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडे़कर आदि चर्चा में रहे तो भारत माता की जय का मुद्दा भी भाषणों का आधार बना. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पप्पू कहना गुजरात के भाजपा सांसद देवजी भाई को भारी पड़ा. कांग्रेसी नेता सीता डामोर ने उन्हें खुब खरी-खरी सुनाई और देवजी भाई को सभा छोड़ कर जाना पड़ा.
देश-प्रदेश की सत्ता में होने के बावजूद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भाजपा से किए गए सवालों का जवाब देने के बजाय राहुल बाबा से ही सवाल करते रहे. इस बार के चुनाव प्रचार में बीसवीं सदी के सियासी संस्कारों की विदाई होती नजर आई!