मध्य प्रदेश सियासी संकटः एमपी में वर्तमान की चिंता, राजस्थान में भविष्य की चर्चा?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: March 13, 2020 06:07 AM2020-03-13T06:07:21+5:302020-03-13T06:07:21+5:30
राजस्थान में गहलोत सरकार को सियासी संकट में डालने के लिए तीन दर्जन से ज्यादा विधायकों को विधानसभा से त्यागपत्र दिलाने होंगे. यही नहीं, त्यागपत्र दे कर फिर से चुनाव जीतना भी कर्नाटक जैसा आसान नहीं है.
मध्य प्रदेश में सियासी संकट के चलते जहां एमपी में वर्तमान में सरकार बचाने की चिंता है, वहीं राजस्थान में प्रदेश सरकार के भविष्य को लेकर चर्चाएं हैं. हालांकि, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने इस एक साल में अपना सियासी सुरक्षा घेरा इतना मजबूत कर लिया है कि एमपी जैसा राजनीतिक खेल यहां खेलना बीजेपी के लिए नामुकिन ना सही, बेहद मुश्किल जरूर है.
राजस्थान में गहलोत सरकार को सियासी संकट में डालने के लिए तीन दर्जन से ज्यादा विधायकों को विधानसभा से त्यागपत्र दिलाने होंगे. यही नहीं, त्यागपत्र दे कर फिर से चुनाव जीतना भी कर्नाटक जैसा आसान नहीं है.
राजस्थान की 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास, कांग्रेस में शामिल हुए बसपा के 6 विधायकों सहित, 107 एमएलए का स्पष्ट बहुमत है. इतना ही नहीं, 13 निर्दलीय विधायकों में से 12 कांग्रेस के साथ हैं, तो भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो विधायक भी कांग्रेस के समर्थन में हैं. माकपा के दो विधायकों का साथ तो बीजेपी को मिलेगा नहीं, इसलिए राजस्थान में कांग्रेस सरकार को अस्थिर करने के हिसाब से बीजेपी की राजनीतिक गणित बेहद कमजोर है.
एमपी के एमएलए इस वक्त राजस्थान के सुरक्षा घेरे में हैं, लेकिन एमपी के राजनीतिक घटनाक्रम पर कांग्रेस-बीजेपी के बीच बयानी जंग जारी है.
सीएम गहलोत ने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निशाना साधते हुए कहा- अवसरवादी लोग पहले ही चले जाते तो ठीक रहता. इनको कांग्रेस ने बहुत कुछ दिया, 17-18 साल में...विभिन्न पदों पर रखा, मेंबर ऑफ पार्लियामेंट बनाया, केंद्रीय मंत्री बनाया और मौका आने पर मौकापरस्ती दिखाई, इनको जनता माफ नहीं करेगी.
किस प्रकार हॉर्स ट्रेडिंग के प्रयास हो रहे हैं, किस प्रकार गुंडागर्दी हो रही है, किस प्रकार डराया धमकाया जा रहा है, कोई सोच नहीं सकता. ऐसा नंगा नाच कभी नहीं देखा गया है, जो देश की सत्ता में बैठे हुए लोग कर रहे हैं. हम सब मिलकर एकजुट हैं और उनको सबक सिखाएंगे, ये मैं कह सकता हूं.
इस पर पलटवार करते हुए बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां ने कहा कि- गहलोत ने स्वयं बसपा विधायकों को इसी के जरिए अपनी पार्टी में शामिल किया था. जब गहलोत खुद ऐसी गतिविधियों में लिप्त रहे हैं, तो उन्हें ऐसे बयान देने का कोई हक नहीं है.
इधर, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के कदम का स्वागत करते हुए कहा था कि- आज यदि राजमाता साहब हमारे बीच होतीं तो आपके इस निर्णय पर जरूर गर्व करती. ज्योतिरादित्य ने राजमाता द्वारा विरासत में मिले उच्च आदर्शों का अनुसरण करते हुए देशहित में यह फैसला लिया है, जिसका मैं व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों ही तौर पर स्वागत करती हूं.
तो उधर, राजस्थान कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट ट्वीट किया था जिसमें अप्रत्यक्षरूप से ज्योतिरादित्य का पक्ष लिया, उन्होंने कहा- ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस से जाना दुर्भाग्यपूर्ण है, मेरा मानना था कि पार्टी के भीतर ही इसका मिलकर समाधान निकाला जाता!