कौन हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया, जानें उनका और परिवार का राजनीतिक सफर

By गुणातीत ओझा | Published: March 11, 2020 05:41 PM2020-03-11T17:41:03+5:302020-03-11T17:41:03+5:30

ज्योतिरादित्य को राजनीति विरासत में मिली है। उनकी दादी विजयराजे सिंधिया की गिनती जहां भाजपा के शीर्ष नेताओं में होती थी, वहीं पिता माधवराव कांग्रेस के कोर मेंबर्स में से एक थे। आइए आपको ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में बताते हैं सबकुछ.. 

jyotiraditya scindia profile | कौन हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया, जानें उनका और परिवार का राजनीतिक सफर

मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है

Highlightsमध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण की हैसिंधिया ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा कि वह आहत थे क्योंकि वह अपने पूर्व संगठन (कांग्रेस) में लोगों की सेवा नहीं कर पा रहे थे

मध्य प्रदेश में पिछले कुछ दिनों जारी राजनीतिक उठापटक के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया बुधवार को भाजपा में शामिल हो गये। भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने पार्टी मुख्यालय में सिंधिया को पार्टी की सदस्यता दिलाई। सिंधिया ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा कि वह आहत थे क्योंकि वह अपने पूर्व संगठन (कांग्रेस) में लोगों की सेवा नहीं कर पा रहे थे। ज्योतिरादित्य को राजनीति विरासत में मिली है। उनकी दादी विजयराजे सिंधिया की गिनती जहां भाजपा के शीर्ष नेताओं में होती थी, वहीं पिता माधवराव कांग्रेस के कोर मेंबर्स में से एक थे। आइए आपको ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में बताते हैं सबकुछ.. 

ज्योतिरादित्य की दादी राजमाता विजयराजे सिंधिया

ज्योतिरादित्य की दादी और ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया ने राजनीति में कांग्रेस के जरिए कदम रखा था। 1957 में वह गुना से लोकसभा सीट जीतकर संसद पहुंची थीं। दस साल कांग्रेस में रहने के बाद 1967 में वो जनसंघ में चली गईं। विजयराजे की वजह से ही उनके क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ। 1971 में जब इंदिरा गांधी की पूरे देश में लहर थी तब भी जनसंघ यहां से तीन सीट जीतने में सफल रही थी। विजयराजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद बने थे।

पिता ने छोड़ा था जनसंघ का साथ

ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया सिर्फ 26 साल की उम्र में ही सांसद बन गए थे। वो भी जनसंघ में ही थे लेकिन 1977 में आपातकाल के बाद उनके रास्ते जनसंघ और अपनी मां विजयराजे सिंधिया से अलग हो गए। 1980 में ज्योतिरादित्य के पिता ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और वो केंद्रीय मंत्री भी बने। 2001 में एक विमान हादसे में उनकी मौत हो गई थी।

वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे की राजनीति में एंट्री

ज्योतिरादित्य की दोनों बुआ वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया ने मां के नक्शे कदम पर चलते हुए राजनीति में कमद रखा था। 1984 में वसुंधरा राजे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुईं। वह राजस्थान की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत भी भाजपा में ही हैं। वह राजस्थान की झालवाड़ सीट से सांसद हैं। वसुंधरा राजे की बहन यशोधरा 1977 में अमेरिका चली गई थीं। 1994 में यशोधरा भारत लौटीं तो उन्होंने मां के कहे अनुसार भाजपा में शामिल हुईं। 1998 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ीं। पांच बार विधायक रह चुकीं यशोधरा राजे शिवराज सिंह चौहान की सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं।

जनवरी 1971 में ज्योतिरादित्य का जन्म 

जनवरी 1971 को सिंधिया राजघराने में पैदा हुए ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक रहे हैं। अपनी स्‍कूली शिक्षा मुंबई से प्राप्‍त करने के बाद ज्‍योतिरादित्‍य अमेरिका चले गए। वहां की स्‍टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट में डिग्री लेने के बाद वे भारत लौटे। 2002 में पहली बार उन्होंने चुनाव लड़ा। लोकसभा चुनाव में उन्‍हें पहली बार गुना से सांसद चुना गया। 2004 में 14वीं लोकसभा में उन्‍हें दोबारा चुना गया। 6 अप्रैल 2008 को उन्‍हें संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के राज्‍यमंत्री का पद प्राप्‍त हुआ। 2009 लोकसभा में भी वह विजयी रहे और उन्‍हें वाणिज्‍य एवं उद्योग राज्‍यमंत्री का पद प्राप्‍त हुआ। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता गंवा दी, लेकिन ज्योतिरादित्य अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे। लेकिन 2019 की मोदी लहर में वे अपनी परंपरागत सीट नहीं बचा पाए और किसी समय अपने सहयोगी रहे केपी यादव से ही चुनाव हार गए।

कमलनाथ से ऐसे शुरू हुई तकरार

 कांग्रेस ने कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंप तो दोनों नेताओं के बीच टकराव शुरू हो गया। विधानसभा के छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में मिली हार सिंधिया के लिए दूसरा बड़ा झटका साबित हुई। लोकसभा चुनाव में हार के बाद से ही बार-बार मांग करने के बावजूद सिंधिया को मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष का पद नहीं मिला। उसके बाद राज्यसभा भेजे जाने को लेकर कमलनाथ और सिंधिया के बीच तकरार सामने आती रही। 

Web Title: jyotiraditya scindia profile

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