बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले से संबंधित मामले में दोषी करार दिए गए हैं। गुरुवार (4 जनवरी) को इस मामले में सीबीआई के विशेष जज शिवपाल सिंह सजा सुनाएंगे।देवघर के जिला कोषागार से 85 लाख के गबन का ये मामला लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक करियर पर बदनुमा दाग और आरजेडी के राजनीतिक भविष्य पर संकट है। इतना बड़ा सियासी भूचाल एक आईएएस अधिकारी की जांच से शुरू हुआ था जिनका नाम अमित खरे है। आईएएस अमित खरे ने ही इस मामले को उजागर किया था और प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश दिए थे। अमित खरे इस समय विकास आयुक्त और योजना व वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव हैं।
कहा जाता है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने एकबार अमित खरे से बदसलूकी की थी। उस वक्त अमित दक्षिणी बिहार में चाइबासा के जिला कमिश्नर थे। आईएएस लॉबी ने इस बात को गंभीरता से लिया और लालू प्रसाद यादव के लिए मुसीबतें खड़ी हो गई। हालांकि अमित खरे ने ऐसी किसी घटना से साफ तौर पर इनकार किया है। खरे का मानना है कि एक अधिकारी को कानून के मुताबिक अपने कर्तव्य का निर्वाह करना चाहिए। वो भी सिर्फ वही कर रहे थे। अमित खरे इस समय विकास आयुक्त और योजना व वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव हैं।
अमित खरे 1985 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। उन्होंने दिल्ली के जाने-माने सेंट स्टीफंस कॉलेज से स्नातक और आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए किया है। उन्हें बिहार कैडर में तैनाती मिली थी 2001 में झारखंड भेज दिया गया।
सरकारी खजाने से अवैध तरीके से करीब 950 करोड़ रुपये की निकासी की कहानी को 'चारा घाटोला' कहा गया।जिसमें राजनेता, बड़े नौकरशाह और फर्जी कंपनियों के आपूर्तिकर्ताओं को आरोपी बनाया गया। चारा घोटाले को सबसे पहले वर्ष 1993-94 में पश्चिम सिंहभूम जिले के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने चाईबासा कोषागार से 34 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी से जुड़े मामले को उजागर किया था और इसकी प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था।
सीबीआई की विशेष अदालत ने चारा घोटाले से संबंधित जिस मामले में शनिवार को लालू प्रसाद सहित 16 लोगों को दोषी पाया है, वह देवघर के जिला कोषागार से फर्जी तरीके से 84.5 लाख रुपये निकाले जाने से जुड़ा हुआ है। अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र और अन्य छह आरोपियों को इस मामले में बरी कर दिया। इस पूरे मामले में कुल 34 आरोपी थे, जिनमें से 11 की मौत हो चुकी है, जबकि एक आरोपी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और सीबीआई का गवाह बन गया।
चाईबासा (झारखंड) में फर्जी निकासी का भंडाफोड़ होने के बाद बिहार पुलिस (उन दिनों झारखंड एकीकृत बिहार का हिस्सा था) गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा के कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपये की अवैध निकासी के मामले दर्ज किए गए। कई आपूर्तिकर्ताओं और पशुपालन विभाग के अधिकारियों को हिरासत में लिया गया। राज्यभर में दर्जनों मुकदमे दर्ज किए गए।
इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के विधायक सुशील कुमार मोदी, सरयू राय, शिवानंद तिवारी (वर्तमान आरजेडी उपाध्यक्ष), राजीव रंजन सिह की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गई।
इधर, न्यायालय में लोकहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा गया कि तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने संचिका पर मामले की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा की है, लेकिन राज्य सरकार ऐसा नहीं कर पुलिस को मामला दर्ज करने का निर्देश दिया है। इसके बाद न्यायालय ने सारे तथ्यों के विश्लेषण के बाद पूरे मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाई कोर्ट को मॉनिटरिंग प्रारंभ करने का आदेश दिया।
इसके बाद चारा घोटाला वर्ष 1996 में पूरी तरह सबके सामने आ गया। इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था और जेल जाना पड़ा था। लालू ने उस समय अपनी पत्नी राबड़ी देवी को राज्य की कमान सौंप दी थी। चारा घोटाले के मामले में बिहार और झारखंड के अलग-अलग जिलों में कुल 53 मामले दर्ज कराए गए थे, इसमें राज्य के दिग्गज नेताओं अैर अधिकारियों सहित करीब 500 लोगों को आरोपी बनाया गया। इस मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र, लालू प्रसाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रदेव प्रसाद वर्मा, भोलाराम तूफानी, विद्यासागर निषाद सहित कई अन्य मंत्रियों पर मामले दर्ज हुए थे।
बता दें कि इससे पहले चाईबासा कोषागार से अवैध ढंग से निकासी करने के मामले में भी 3 अक्टूबर, 2013 को लालू सहित 22 लोगों को सजा सुनाई गई थी। इस सजा के बाद लालू को अदालत से जमानत मिली हुई थी।
*IANS से इनपुट लेकर