चारा घोटालाः फिर टला लालू पर फैसला, ऐसे चल रहा है 20 सालों से ये केस
By रंगनाथ | Updated: January 3, 2018 12:34 IST2018-01-03T00:32:56+5:302018-01-03T12:34:51+5:30
पूरे चारा कांड में 1404 लोगों को अब तक दोषी ठहराया जा चुका है जिसमें पशु विभाग के अधिकारी, वरिष्ठ अधिकारी, आपूर्तिकर्ता और कई नेता शामिल हैं।

चारा घोटालाः फिर टला लालू पर फैसला, ऐसे चल रहा है 20 सालों से ये केस
बिहार के चारा घोटाले से जुड़े देवघर ट्रेजरी मामले में दोषी पाए गए सभी 15 लोगों को सीबीआई की विशेष अदालत बुधवार (तीन जनवरी) को सजा सुनाएगी। दोषियों में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव भी हैं। मामले में सात अभियुक्तों को अदालत ने बरी कर दिया। बरी किए अभियुक्तों में बिहार के पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र भी थे। आइए एक नजर डालते हैं अब तक इस मामले में क्या हुआ है-
चारा घोटाले को लेकर पहली सुगबुगाहट 1985 में शुरू हुई जब तत्कालीन कैग टीएन चतुर्वेदी ने बिहार ट्रेजरी की मासिक रिपोर्ट में होने वाली देरी में कुछ काला होने की आशंका जाहिर की। बिहार पुलिस ने 1994 में राज्य के गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा जैसे कई कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपए की कथित अवैध निकासी के मामले दर्ज किए। 1996 में ये मामला बड़े स्तर पर तब सामने उठा जब बिहार के तत्कालीन वित्त सचिव वीएस दुबे ने सभी जिलों के संबंधित अधिकारियों को इस मामले की जांच के आदेश दिए। दुबे के आदेश पर पश्चिम सिंहभूम जिले के डिप्टी कमिश्नर अमित खरे ने चाईबासा पशुपालन विभाग में छापे मारे। छापे में बरामद दस्तावेज से बड़े घोटाले के सुराग मिले। मार्च 1996 में पटना हाई कोर्ट ने केस सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया।
27 अक्तूबर, 1997 को इन सभी के खिलाफ खिलाफ सीबीआई ने मुकदमा संख्या आरसी/64 ए/1996 दर्ज किया था। 1997 में रातों-रात सरकारी कोषागार और पशुपालन विभाग के कई सौ कर्मचारी गिरफ्तार कर लिए गए, कई ठेकेदारों और सप्लायरों को हिरासत में लिया गया और राज्य भर में दर्जन भर आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए। 23 जून 1997 के बाद लालू यादव को गिरफ्तार किया गया। 35 दिन न्यायिक हिरासत में रहने के बाद लालू यादव 12 दिसंबर 1997 को रिहा हुए। चारा घोटाले से जुड़े अलग-अलग मामलों में लालू यादव और जगन्नाथ मिश्रा से साल 2000 में पुलिस ने कई बार पूछताछ की। साल 2007 में 58 पूर्व अधिकारियों और सप्लायरों को दोषी ठहराया गया और 5-6 साल की सजा सुनाई गई। मामला हाथ में लेने के 16 साल बाद एक मार्च 2012 को सीबीआई ने पटना कोर्ट में लालू यादव, जगन्नाथ मिश्रा सहित 32 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।
साल 2013 में चारा घोटाले से जुड़े पहले मामले में अदालत ने सजा सुनाई। चाईबासा ट्रेजरी से गैर-कानूनी ढंग से करीब 37 करोड़ रुपये निकालने के मामले में बिहार के दो पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र और लालू प्रसाद यादव समेत 46 लोगों को सजा हुई। नवंबर 2014 में झारखंड हाइकोर्ट ने लालू प्रसाद को राहत देते हुए कहा था कि एक मामले में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति के खिलाफ इन्ही धाराओं के तहत मिलते-जुलते अन्य मुकदमों में सुनवाई नहीं हो सकती।
मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की अपील को मंजूर करने के साथ लालू प्रसाद के खिलाफ चारा घोटाले से संबंधित अलग-अलग मामलों में मुकदमा चलाने का आदेश दिया था, सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा था कि प्रत्येक अपराध के लिए पृथक सुनवाई होनी चाहिए। इस पूरे मामले के 54 केसों में से 47 केसों में फैसला सुनाया जा चुका है। पूरे चारा कांड में 1404 लोगों को अब तक दोषी ठहराया जा चुका है जिसमें पशु विभाग के अधिकारी, वरिष्ठ अधिकारी, आपूर्तिकर्ता और कई नेता शामिल हैं।
साल 1990 से 1994 के बीच देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हजार रुपये की फर्जीवाड़ा करके अवैध ढंग से पशु चारे के नाम पर निकासी के इस मामले में कुल 34 आरोपी थे जिनमें से 11 की मौत हो चुकी है। एक आरोपी सीबीआई का गवाह बन गया। मामले में कुल बचे 22 आरोपियों में से 15 को अदालत ने 23 दिसंबर को दोषी पाया। देवघर ट्रेजरी मामले में लालू प्रसाद यादव, पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा, बिहार के पूर्व मंत्री विद्यासागर निषाद, पीएसी के तत्कालीन अध्यक्ष जगदीश शर्मा एवं ध्रुव भगत, आर के राणा, तीन आईएएस अधिकारी फूलचंद सिंह, बेक जूलियस एवं महेश प्रसाद, कोषागार के अधिकारी एस के भट्टाचार्य, पशु चिकित्सक डा. केके प्रसाद और बाकी अन्य चारा आपूर्तिकर्ता आरोपी थे।