एमपी में उपचुनावः मध्य प्रदेश में रोजगार, जम्मू-कश्मीर की धारा 370 जैसी नीति के अर्थ-भावार्थ?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: August 19, 2020 04:30 PM2020-08-19T16:30:33+5:302020-08-19T16:30:33+5:30
यदि यह संभव हो पाया तो यह रोजगार की जम्मू-कश्मीर की धारा 370 जैसी होगी. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सीएम शिवराज का यह ऐलान विधानसभा उपचुनाव से पहले मतदाताओं को मनाने का एक सियासी दांव भर है, इसीलिए यह बयान तो आ गया, लेकिन यह भी कहा गया है कि इसके नियम-कायदे बनेंगे.
जयपुरः मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने सरकारी नौकरियों को लेकर बड़ा बयान दिया है कि- अब मध्य प्रदेश की सभी सरकारी नौकरियां सिर्फ राज्य के लोगों को ही मिलेंगी. इसके लिए जल्दी ही जरूरी कानूनी बदलाव पेश किए जाएंगे. यह बात अलग है कि कानूनन सीएम की यह मंशा शायद ही पूरी हो पाए.
यदि यह संभव हो पाया तो यह रोजगार की जम्मू-कश्मीर की धारा 370 जैसी होगी. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सीएम शिवराज का यह ऐलान विधानसभा उपचुनाव से पहले मतदाताओं को मनाने का एक सियासी दांव भर है, इसीलिए यह बयान तो आ गया, लेकिन यह भी कहा गया है कि इसके नियम-कायदे बनेंगे. यकीनन, हर राज्य में प्रदेश के निवासियों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता मिलनी चाहिए, लेकिन इसकी सीमा तय होना जरूरी है. यह शत-प्रतिशत नहीं हो सकती है.
सीएम शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट किया- मेरे प्यारे भांजे-भांजियों! आज से मध्य प्रदेश के संसाधनों पर पहला अधिकार मध्य प्रदेश के बच्चों का होगा. सभी शासकीय नौकरियां सिर्फ मध्य प्रदेश के बच्चों के लिए ही आरक्षित रहेंगी. हमारा लक्ष्य प्रदेश की प्रतिभाओं को प्रदेश के उत्थान में सम्मिलित करना है.
हालांकि, यह सियासी दांव विपक्ष को भी समझ में तो आ गया, परन्तु इसका विरोध करना राजनीतिक घाटे का सौदा होता, लिहाजा विपक्ष ने अपनी बात अलग तरीके से कही है. एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी इसके बाद ट्वीट किया कि- मैंने निजी नौकरियों में 70 फीसदी आरक्षण की बात कही थी. मैंने अपनी 15 माह की सरकार में प्रदेश के युवाओं को प्राथमिकता से रोजगार मिले, इसके लिए कई प्रावधान किए.
मैंने हमारी सरकार बनते ही उद्योग नीति में परिवर्तन कर 70 प्रतिशत प्रदेश के स्थानीय युवाओं को रोजगार देना अनिवार्य किया. हमने युवा स्वाभिमान योजना लागू कर युवाओं को रोजगार मिले, इसके लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय किए. यही नहीं, कमलनाथ ने शिवराज सरकार को आइना दिखाते हुए कहा कि- आपकी 15 साल की सरकार में प्रदेश में बेरोजगारी की क्या स्थिति रही, यह किसी से छिपी नहीं.
युवा हाथों में डिग्री लेकर नौकरी के लिए दर-दर भटकते रहे. क्लर्क व चपरासी की नौकरी तक के लिए हजारों डिग्रीधारी लाइनों में लगते रहे. मजदूरों व गरीबों के आंकड़े इसकी वास्तविकता स्वयं बयां कर रहे हैं. अपनी पिछली 15 वर्ष की सरकार में कितने युवाओं को आपकी सरकार ने रोजगार दिया, यह भी पहले आपको सामने लाना चाहिए.
आपने प्रदेश के युवाओं को प्राथमिकता से नौकरी देने के हमारे निर्णय के अनुरूप ही घोषणा की, लेकिन यह आपकी सरकार की पूर्व की तरह ही सिर्फ घोषणा बनकर ही न रह जाए. बगैर पक्की तैयारी के ऐसे ऐलान का मकसद साफ है- उपचुनाव में इसका सियासी लाभ, क्योंकि, उपचुनाव की घोषणा होते ही ऐसी किसी भी सरकारी घोषणा पर प्रतिबंध लग जाता, इसलिए इसे पहले ही जगजाहिर कर दिया गया है. उपचुनाव के बाद इसका हश्र क्या होगा, कोई नहीं जानता.
सियासी जोड़तोड़ के दम पर एमपी में बीजेपी की सरकार तो बन गई है, लेकिन इसे बचाए रखने के लिए उपचुनाव में जीत दर्ज करवाना बड़ी चुनौती है, इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि रोजगार की यह नई राजनीति जीत की राह आसान कर पाती है या नहीं?