बिहार का अररिया लोकसभा क्षेत्र राजनैतिक दृष्टिकोण से जितना अहम है, आर्थिक तौर पर उतना ही पिछड़ा हुआ है। इसे बिहार के अविकसित क्षेत्रों में गिना जाता है। इसे पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि कार्यक्रम के तहत अनुदान भी मिलता रहा है। करीब-करीब बराबरी की वोट शेयर करने के बाद भी 13 बार हो चुके लोकसभा चुनावों में कभी कोई महिला प्रत्याशी यहां से नहीं जीती।
जबकि एबीपी न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1 जनवरी 2018 के ताजे आंकड़ों में अरिरिया लोकसभा में 17 लाख 37 हजार 468 वोटर बताए गए हैं। चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक साल 2011 में यह जनसंख्या 9 लाख के करीब थी। महज सात साल में जनसंख्या करीब दोगुनी हो गई है। इनमें 9 लाख 19 हजार 115 पुरुष मतदाता हैं। जबकि 8 लाख 18 हजार 286 महिला मतदाता हैं। साथ ही 67 थर्ड जेंडर मतदाता भी सूची में शामिल हैं।
यह एक कृषि प्रधान क्षेत्र है। क्षेत्र में शिक्षा को लेकर और कारगर कदम उठाने की जरूरत है। फिर भी पिछले लोकसभा चुनाव में करीब 61.48 फीसदी वोट डालने के लिए लोग घरों से निकले थे।
अररिया लोकसभा क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे
- बच्चों व युवाओं की शिक्षा के लिए बेहतर और पर्याप्त शिक्षण संस्थान- युवाओं के रोजगार के लिए आवश्यक कदम- महिला उत्थान के लिए कारगर कदम- क्षेत्र में अनाज के खरीद व बेच के लिए स्थाई व्यवस्था- सड़कें व उद्योग विकसित करने की जरूरत
लेकिन इन मुद्दों पर लड़ा जा रहा है अररिया लोकसभा उपचुनाव
- लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के फैसले को साजिश साबित करने का मौका- लालू के जेल में होने पर भी प्रतिद्वंदी पार्टी को दिखाना कि वे कमजोर नहीं हुए हैं- जातिवाद- संप्रदायवाद- बीजेपी विरोध- हिन्दुत्व- सहानुभूति
अररिया एक ओबीसी बाहुल्य लोकसभा सीट मानी जाती है। ऐसे में सीटिंग पार्टी आरजेडी ने अपने दिवंगत सांसद तस्लीमुद्दीन के बेटे जेडीयू विधायक सरफराज आलम को तोड़कर लाई है।
जबकि बीजेपी ने अपने पुराने और एक बार चुनाव जीत चुके प्रवीण कुमार सिंह पर दांव खेला है। साल 2011 के आंकड़ों के अनुसार 28 लाख से ज्यादा की जनसंख्या वाला यह जिला बिहार की राजनैतिक दृष्टि से बेहद अहम है। लेकिन इस बार भी इस सीट पर केवल राजनैतिक फायदे उठाने के लिए ही पार्टियां लगी हुई हैं।