Joshimath Sinking: घरों और होटलों में पड़ी दरार, तस्वीरों में देखें भयावह मंजर

By संदीप दाहिमा | Published: January 10, 2023 02:58 PM2023-01-10T14:58:15+5:302023-01-10T15:11:15+5:30

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देहरादूनः उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धंसाव जारी है। दरार पड़ने वाले घरों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं। इस बीच प्रशासन द्वारा असुरक्षित जोन घोषित क्षेत्रों को खाली करा लिया गया है। जोशीमठ के जिन होटलों और मकानों में अधिक दरारें हैं, उन्हें गिराने का काम आज किया जाएगा। जोशीमठ में 19 होटलों, अतिथि गृहों और स्कूल भवनों को तथा शहर से बाहर पीपलकोटी में 20 ऐसे भवनों को प्रभावित लोगों के लिए चिह्नित किया गया है।

स्थानीय लोग इस भू-धंसाव के लिए राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी) की तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. दरअसल तपोवन-विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना की सुरंग जोशीमठ के ठीक नीचे स्थित है. इसके निर्माण के लिए बड़ी बोरिंग मशीनें लगाई गई थीं, जो पिछले दो दशक से इलाके में खुदाई कर रही हैं।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की अगस्त 2021 में आई एक रिपोर्ट में भी जोशीमठ के धंसने की आशंका जताई गई थी. नवंबर 2021 में ही जमीन धंसने की वजह से 14 परिवारों के घर रहने के लिए असुरक्षित हो गए थे, जिसके बाद लोगों ने 16 नवंबर 2021 को तहसील कार्यालय पर धरना देकर पुनर्वास की मांग की थी।

यहां तक कि एसडीएम ने खुद स्वीकार किया था कि तहसील कार्यालय परिसर में भी दरारें पड़ गई हैं, साफ है कि इसके बावजूद अगर काम जारी रखा गया तो यह बेहद गंभीर लापरवाही ही थी. भूविशेषज्ञ बहुत पहले से कहते रहे हैं कि जोशीमठ का पर्वत मलबे की मिट्टी पर बसा हुआ है और यहां किसी भी तरह का बड़ा निर्माण कार्य करना खतरे से खाली नहीं है।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि इसके बावजूद सुरंग के निर्माण के लिए रोजाना कई टन विस्फोटकों का इस्तेमाल हो रहा था. इसी का नतीजा है कि अब करीब 25 हजार की आबादी वाले जोशीमठ शहर के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. भू-धंसाव बढ़ने पर इन निवासियों का तो कहीं और पुनर्वास कर दिया जाएगा लेकिन इस ऐतिहासिक और पौराणिक सांस्कृतिक नगर का धार्मिक महत्व भी बहुत ज्यादा है।