एक अप्रैल से नया फाइनेंसियल ईयर शुरू होने के साथ ही कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को इनवेस्टमेंट डेक्लेरेशन फॉर्म भेजने शुरू कर दिए हैं। इसके द्वारा कंपनी अपने कर्मचारियों से पूछना चाहती है कि वे नए सिस्टम को अपनाना चाहते हैं या पुराने सिस्टम में रखना चाहते हैं। मालूम हो कि फरवरी में पेश हुए बजट में मोदी सरकार ने करदाताओं को इनकम टैक्स की नई व्यवस्था को चुनने का ऑप्शन दिया है। नए इनकम टैक्स में टैक्स की दरें कम हैं लेकिन उसे अपनाने के लिए टैक्स एग्जेम्पशन और डिडक्शन को छोड़ना पड़ेगा। ऐसे में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने सर्कुलर जारी कर कंपनियों को कर्मचारियों से उनकी इच्छा जानने के लिए कहा था। ऐसे में कर्मचारियों को अपने डेक्लेरेशन फॉर्म में इसके बारे में बताना है।
ऐसे में कोई कर्मचारी नई इनकम टैक्स व्यवस्था को चुनता है तो इसकी जानकारी कंपनी को डेक्लेरेशन फॉर्म के जरिए देनी होगी। इसके बाद कंपनी उसी के अनुसार सैलरी से टीडीसी काटेगा। लेकिन किसी भी नतीजे पर पहुँचने से पहले अच्छे से सोचने की जरूरत है। क्योंकि अगर आप एक बार एक बार नए सिस्टम का चयन करते हैं तो उस फाइनेंसियल ईयर में आप दूसरे विकल्प में स्विच नहीं कर सकते हैं। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि कुछ एग्जेम्पशन का क्लेम सिर्फ संस्थान के जरिए किया जा सकता है। इसलिए रिटर्न फाइल करते समय ये शायद उपलब्ध नहीं हों। अगर ज्यादा टैक्स का भुगतान किया गया है तो करदाता रिटर्न में रिफंड क्लेम कर सकते हैं।
नई इनकम टैक्स स्लैब की दरें-0-5 लाख तक की सालाना आय पर कोई टैक्स नहीं
2.5 – 5 लाख सालाना कमाई पर- 5%
5-7.5 लाख सालाना आय पर- 10%
7.5 – 10 लाख तक की सालाना आय पर- 15%
10 – 12.5 लाख की सालाना आय पर - 20%
इनकम टैक्स की नई व्यवस्था में कई स्लैब हैं। ऐसे में दोनों में से कौन-सी टैक्स व्यवस्था आपके लिए कितनी सही है इसका चुनाव आपको खुद ही करना होगा। लेकिन उदहारण के लिए बता दें की अगर कोई व्यक्ति अगर साल में 2.5 लाख रुपये से ज्यादा (50,000 रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन सहित) डिडक्शन क्लेम करता है तो उसे नए स्ट्रक्चर से फायदा नहीं होगा।
आपको बता दें कि पहले सरकार की तरफ से बीमा, निवेश, घर का रेंट, मेडिकल, बच्चों की स्कूल फीस जैसी कुल 100 रियायतें दी गई थीं जबकि अब नए टैक्स स्लैब में 70 रियायतों को खत्म कर दिया गया है। इस तरह से यदि आप पहले इन रियायतों का फायदा उटाते थे तो टैक्स स्लैब में बदलाव के बाद यदि आप टैक्स में बचाव करना चाहते हैं तो ये फायदे आपको छोड़ने होंगे। वहीं, नए टैक्स स्लैब में टैक्स पेयर्स को अलग-अलग फायदे के लिए अलग-अलग तरीके से चुन सकते हैं।
-डिपॉजिट पर होने वाली ब्याज आय -फिक्सड डिपॉजिट (FD)- नौकरी करने वालों का स्टैंडर्ड डिडक्शन (50 हजार रुपये)- लीव ट्रैवल अलाउंस (LTA)- हाउस रेंट अलाउंस (HRA)-मेडिकल और इंश्योरेंस के खर्च-दिव्यांगों के इलाज पर टैक्स छूट-दिव्यांगों के खर्चें पर टैक्स छूट- एजुकेशन लोन पर टैक्स छूट-इलेक्ट्रिक व्हीकल पर टैक्स छूट