जन्मदिन विशेषः राहत इंदौरी, जो रोज़ पत्थर की हिमायत में गजल लिखते हैं...

By आदित्य द्विवेदी | Updated: January 1, 2018 16:00 IST2018-01-01T15:04:39+5:302018-01-01T16:00:12+5:30

उर्दू के मशहूर गजलकार राहत इंदौरी का आज जन्मदिन है। उनके कुछ चुनिंदा शेर जो ज़िंदगी के हर पहलू से वाबस्ता हैं

Rahat Indori Birthday Special: top Sher who touches every aspects of life | जन्मदिन विशेषः राहत इंदौरी, जो रोज़ पत्थर की हिमायत में गजल लिखते हैं...

जन्मदिन विशेषः राहत इंदौरी, जो रोज़ पत्थर की हिमायत में गजल लिखते हैं...

नया साल एक बेहतरीन शायर के जन्मदिन से शुरू होता है। एक ऐसा शायर जिसने ज़िंदगी के हर पहलू पर पर शायरी की है। वो 'रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं, रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है'. राजनीति और इश्क़ पर कहा गया उनका एक शेर तो सारी कहानी कह देता है... 'आप हिंदू मैं मुसलमान ये सिख वो ईसाई, छोड़ो यार ये सियासत है! चलो इश्क़ करें'। राहत इंदौरी के लफ्जों से मोहब्बत को नए मायने मिलते हैं। इसका नमूना उनके इस शेर से मिल जाता है... 'मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया, मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रखा है'। धारदार कलम के मालिक मशहूर शायर राहत इंदौरी का आज जन्मदिन है।

राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी 1950 को हुआ था। बेहद साधारण परिवार में जन्में राहत इंदौरी के शायर बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है। शुरुआती दिनों में राहत साहब सड़कों पर साइन बोर्ड बनाने का काम किया करते थे। लेकिन मुशायरे की दुनिया में आए तो साइन बोर्ड की तरह ही छा गए। जन्मदिन के इस खास मौके पर ज़िंदगी के हर पहलू को छूते राहत साहब के कुछ ऐसे चुनिंदा शे'र लेकर आए हैं।

आप हिंदू मैं मुसलमान ये सिख वो ईसाई,
छोड़ो यार ये सियासत है! चलो इश्क़ करें

मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रखा है



रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है



आँखों में पानी रखो, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

राह के पत्थर से बढ़ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो



रात, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम  क्या-क्या है
मैं आ गया हूँ बता इंतज़ाम क्या-क्या है



सरहदों पर तनाव है क्या
ज़रा पता तो करो चुनाव हैं क्या



उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर-मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब

जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं
चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब



दिलों में आग, लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चेहरों पर, दोहरी नकाब रखते हैं



राज़ जो कुछ हो इशारों में बता देना
हाथ जब उससे मिलाओ दबा भी देना



अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब है
लोगों ने पूछ-पूछ के बीमार कर दिया


फूंक डालूंगा मैं किसी रोज़ दिल की दुनिया
ये तेरा खत तो नहीं है कि जला भी ना सकूं

राहत इंदौरी साहब आज 68 बरस के हो गए। लोकमत न्यूज की तरफ से उनके जन्मदिन और नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं...

*Graphics- Harshvardhan Mishra

Web Title: Rahat Indori Birthday Special: top Sher who touches every aspects of life

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