गूगल ने महाश्वेता देवी पर बनाया डूडल, जानिए कौन हैं वो

By खबरीलाल जनार्दन | Updated: January 14, 2018 04:23 IST2018-01-14T04:22:18+5:302018-01-14T04:23:05+5:30

महाश्वेता देवी अपने पैशन के लिए अपनी यूनिवर्सिटी में लेक्चरर पद की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था।

Google doodle on Mahashweta Devi, Know who is she | गूगल ने महाश्वेता देवी पर बनाया डूडल, जानिए कौन हैं वो

गूगल ने महाश्वेता देवी पर बनाया डूडल, जानिए कौन हैं वो

महाश्वेता देवी साल 1996 का ज्ञानपीठ जीतने वाली लेखिका हैं। उनके पिता मनीष घटक कवि व उपन्यासकार थे। जबकि मां धारीत्री देवी लेख‌िका और एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। बेटी महाश्वेता पर इसका पूरा प्रभाव रहा। लेखन के अलावा उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक कार्यों को समर्पित कर दिया था। 

महाश्वेता ने नौकरी छोड़कर शुरू किया लेखन 

अविभाजित भारत के ढाका में महाश्वेता का जन्म 14 जनवरी 1926 को हुआ था। गूगल ने उनकी 92वीं जयंती पर डूडल से उन्हें श्रद्धांजलि दी है। महाश्वेता का परिवार विभाजन के बाद पश्चिम बंगाल आ गया था। यहीं से शिक्षा-दीक्षा पूरा कर उन्होंने साहित्य की सेवा शुरू की। शुरुआती दिनों में उन्हों कुछ दिन पत्रकारिता और अंग्रेजी के लेक्चरर पद पर भी काम किया। लेकिन साल 1984 में सेवानिवृत्त लेकर पूरी तरह से लेखन में उतर गईं।

उनका कथन, "इसको लिखने के बाद मैं समझ पाई कि मैं एक कथाकार बनूंगी।" बेहद मशहूर है। उन्होंने छोटी उम्र ही ‘झांसी की रानी’ पर किताब लिख दी। तभी से उनके में मन में साहित्कार बनने की महत्वकांक्षा जगी थी। इसकी खास बात यह है कि कलकत्ता में बैठकर उन्होंने अपनी रचना में झांसी, ग्वालियर, सागर, जबलपुर, पुणे, इंदौर, ललितपुर के जंगलों को पूरी तरह से उतार दिया है।

महाश्वेता के साहित्य पर बनी फिल्में, '1084 की मां' बड़ा नाम

आज भी जब कभी अभिनय से फिल्मों के नाम समझाने वाले खेल होते हैं तो कोई ना कोई '1084 की मां' समझाने का प्रयास करते ‌मिलता है। असल अपने नाम मात्र से यह प्रभाव छोड़ जाती है। वैसे तो महाश्वेता के ही उपन्यास रुदाली पर गोविंद निहलानी ने रुदाली भी बनाई थी। लेकिन हजार चौरासी की मां फिल्म बेहद मशहूर रही।

इसके अलावा महाश्वेता की अनमोल निधियों में 'नटी', 'मातृछवि ', 'अग्निगर्भ' 'जंगल के दावेदार' माहेश्वर, ग्राम बांग्ला जैसे नाम समाए हुए हैं। अब तक उनकी छोटी कहानियों के 20 संग्रह आ चुके हैं। और उपन्यासों की संख्या शतक पार पहुंच गई है।

बांग्ला से हिन्दी हुई किताबें, 'अक्लांत कौरव, अग्निगर्भ, अमृत संचय, आदिवासी कथा, ईंट के ऊपर ईंट, उन्तीसवीं धारा का आरोपी, उम्रकैद, कृष्ण द्वादशी, ग्राम बांग्ला, घहराती घटाएं, चोट्टि मुंडा और उसका तीर, जंगल के दावेदार, जकड़न, जली थी अग्निशिखा, झाँसी की रानी, टेरोडैक्टिल, दौलति, नटी, बनिया बहू, मर्डरर की मां, मातृछवि, मास्टर साब, मीलू के लिए, रिपोर्टर, रिपोर्टर, श्री श्री गणेश महिमा, स्त्री पर्व, स्वाहा और हीरो-एक ब्लू प्रिंट जहां मिल जाएं पढ़ डालिए।

महाश्वेता को मिल चुका है पद्मश्री

महाश्वेता देवी को उनके साहित्य‌िक योगदान की राष्ट्रीय पहचान 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलने के बाद हुई। साल 1986 में पद्मश्री मिलने के बाद राष्ट्रीय स्तर बेहद मशहूर हुईं। इनकी रचनाएं बाहर थीं, लेकिन इन पुरस्कारों ने पहचान और बढ़ाई। फिर साल 1997 में साहित्य का सबसे बड़ा अवार्ड ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के बाद जैसे उनके सपने सच हो गए। सोने पर सुहागा ये कि यह पुरस्कार उन्हें नेलसन मंडेला के हाथों मिला। हालांकि इस पुरस्कार के साथ मिले 5 लाख रुपये इन्होंने बंगाल के पुरुलिया आदिवासी समिति को दे दिया था। 28 जुलाई 2016 को कलकत्ता में उनका देहावसान हो गया।

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