नई संसद की छत पर स्थित चतुर्मुखी सिंह पर क्यों छिड़ा है विवाद, जानिए भारत के प्रतीक चिह्न के बारे में सब कुछ
By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: July 12, 2022 17:20 IST2022-07-12T17:02:58+5:302022-07-12T17:20:14+5:30
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजकीय चिन्ह के अनावरण के बाद से यह विवाद उठने लगा कि भारत सरकार अब तब जिस राजकीय प्रतीक का प्रयोग किया करती थी। उसे इस नये डिजाइन में विरूपित करने की कोशिश की गई है।

नई संसद की छत पर स्थित चतुर्मुखी सिंह पर क्यों छिड़ा है विवाद, जानिए भारत के प्रतीक चिह्न के बारे में सब कुछ
दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते सोमवार को नई संसद की छत पर लगाये गये चार मुख वाले सिंह के राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण किया। इस राजकीय चिन्ह के अनावरण के बाद से यह विवाद उठने लगा कि भारत सरकार अब तब जिस राजकीय चिन्ह का प्रयोग किया करती थी। उसे इस नये डिजाइन में विरूपित करने की कोशिश की गई है।
इस मामले में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस, राजद और सपा समेत कई दलों ने विरोध जताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा गया कि प्रधानमंत्री द्वारा अनावृत किये अशोक चिह्न का 'सिंह' काफी उग्र रूप में है, जो कि पहले की आकृति में शांत या सौम्य दिखाई देता था।
भारत का राजकीय प्रतीक
भारत सरकार के राजकीय चिन्ह पर उपजे विवाद के विवाद के बीच आइये जानते हैं कि इस प्रतीक का हमारे जीवन में क्या महत्व है। भारत के राजकीय प्रतीक को वाराणसी के सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ से लिया गया है।
इस 26 जनवरी 1950 को भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है। भारत का राजचिह्न आज भी वाराणसी के सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित है। मूल स्तंभ में अशोक लॉट के शीर्ष पर चार सिंह हैं, जो एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं।
स्तंभ के नीचे घंटे के आकार के पदम के ऊपर एक चित्र वल्लरी में एक हाथी, चौकड़ी भरता हुआ एक घोड़ा, एक सांड तथा एक सिंह की उभरी हुई मूर्तियां हैं, इसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं। एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए, इस सिंह स्तंभ के ऊपर 'धर्मचक्र' रखा हुआ है।
सामने से देखने पर केवल तीन सिंह दिखाई देते हैं, जबकि चौथा सिंह पीछे होने के कारण दिखाई नहीं देता है। फलक के नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र 'सत्यमेव जयते' देवनागरी लिपि में अंकित है, जिसका अर्थ है- 'सत्य की ही विजय होती है'। भारत के राजचिन्ह का उपयोग भारत के राजकीय ( अनुचित उपयोग निषेध ) अधिनियम - 2005 के तहत नियंत्रित होता है।
कौन थे अशोक महान
अपने समय के सबसे शक्त्ति शाली और हिन्दू राजाओं में अशोक मौर्य वंश के तीसरे राजा थे। उन्होंने 273 ई.पू. से 232 ईसा पूर्व तक भारत पर शासन किया। युवा अवस्था में सम्राट अशोक ने मौर्य साम्राज्य के विस्तार के अनेक युद्ध किये। इस बात का प्रमाण बौद्ध साहित्य में मिलता है।
अशोक ने तलवार के बल पर अपने साम्राज्य को दक्षिण में मैसूर, असम, पूर्व में बंगाल, दक्षिण एशिया, पश्चिम में फारस के कुछ हिस्सों और अफगानिस्तान के साथ पूरे भारत में फैलाया था। लेकिन कलिंग युद्ध के बाद अशोक का युद्ध और रक्तपात से मोहभंग हो गया और उन्होंने बुद्ध धर्म अपना लिया। इसके बाद अशोक ने न केवल भारत बल्कि अपने पूरे साम्राज्य में जगह-जगह बौद्ध स्तंभों और स्तूपों का निर्मणा करवाया था।
इतना ही नहीं सम्राट अशोक ने बौद्ध दर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को समर्पित कर दिया। अशोक ने पटना से अपने बेटे महेंद्र को जलमार्ग से श्रीलंका भेजा ताकि वो बौद्ध धर्म का प्रचार कर सकें।
कलिंग युद्ध के बाद तलवार की जगह 'बुद्धं शरणं गच्छामि' के पथ पर चलने वाले अशोक ने तक़रीबन चौरासी हजार स्तूपों का निर्माण करवाया। अशोक के यह स्तंभ और स्तूप आज भी अपनी विशिष्ट मूर्तिकला के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं।
पीएम मोदी द्वारा अनावरण किये गये राजकीय प्रतीक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों के अनावृत हुआ राजकीय चिन्ह कांस्य से बना हुआ है और इस प्रतीक का कुल वजन 9,500 किलोग्राम है। इसकी प्रतीक की ऊंचाई 6.5 मीटर है। राष्ट्रीय प्रतीक को सपोर्ट करने के लिए लगभग 6,500 किलोग्राम वजन वाले स्टील की सपोर्ट कास्ट का भी निर्माण किया गया है।
पीएम मोदी ने राष्ट्रीय प्रतीक के उद्घाटन के बाद नई संसद के निर्माण में लगे मजदूरों से भी बातचीत की थी और उनसे पीएम मोदी ने कहा था कि आप लोग इस देश में किसी साधारण भवन का नहीं बल्कि एक इतिहास का निर्माण कर रहे हैं।