सरकार आखिरी मिनटों में क्यों नहीं हुई RCEP समझौते में शामिल, विपक्ष और किसानों का विरोध, संघ का दबाव है वजह!
By अभिषेक पाण्डेय | Updated: November 5, 2019 10:54 IST2019-11-05T10:54:04+5:302019-11-05T10:54:04+5:30
India and RCEP: भारत ने आखिरी मिनटों में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला किया

भारत ने किया आरसीआईपी समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला
सरकार के आखिरी मिनटों में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते में शामिल नहीं होने के पीछे न सिर्फ व्यापस संबंधी चिताएं हैं, बल्कि माना जा रहा है कि इसके पीछे विपक्ष का भारी विरोध, महाराष्ट्र, हरियाणा चुनाव नतीजे, संघ की नाराजगी और छोटे और मध्यम दुग्ध उत्पादकों और किसानों के भी दबाव ने अहम भूमिका निभाई।
इस समझौते में शामिल होने की अन्य बाधाओं में RCEP का उपयोग चीन के लिए बाजार खोलना भी था है, जिसके साथ भारत का एक बड़ा व्यापार घाटा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समझौते में शामिल न होने की घोषणा करते हुए कहा, 'जब मैं सभी भारतीयों के हितों के संबंध में आरसीईपी समझौते को मापता हूं, तो मुझे सकारात्मक जवाब नहीं मिलता है। इसलिए, न तो गांधीजी के विचार, और न ही मेरी अंतरात्मा ने मुझे आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति दी।'
आरसीईपी में शामिल हैं कौन-कौन से देश
आरसीईपी दस आसियान देशों और उनके छह मुक्त व्यापार भागीदारों चीन, भारत, जापान, दक्षिण, कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच एक प्रस्तावित मेगा मुक्त व्यापार है। RCEP के सदस्य कुल वैश्विक व्यापार में 30 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं, लेकिन भारत के इस समझौते से बाहर होने से अब ये कम आकर्षक रह गया है। भारत को छोड़कर इसके अन्य सभी 15 देश इस समझौते को अंतिम रूप देने को राजी थे।
अगर आरसीईपी समझौता हो जाता तो यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र होता। इसमें शामिल 16 देशों में दुनिया की कुल आबादी में से 3.6 अरब लोग रहते हैं। यह जनसंख्या दुनिया की कुल आबादी का करीब आधा है।
भारत को आरसीआईपी समझौते के किन मुद्दों पर है आपत्ति
भारत इस व्यापार समझौते पर लंबे समय से चिंता जताता रहा है क्योंकि उसका कम से कम 11 आरसीईपी सदस्यों के साथ व्यापार घाटा है। नई दिल्ली के लिए एक विशेष चिंता चीन के साथ व्यापार घाटा (2019 में 53 अरब डॉलर) है।
भारत को आरसीआईपी समझौते के कई बिंदुओं को लेकर आपत्ति है और उसने कहा कि वह इनके समाधान के बिन इस समझौते में शामिल नहीं होगा। इस समझौते में शामिल होने के लिए चीन के भारी दबाव के बावजूद भारत अपने घरेलू बाजार को बचाने के लिये कुछ वस्तुओं की संरक्षित सूची को लेकर भी मजबूत रुख अपनाए हुए था।
ये समझौता होने के बाद भारत को अपना बाजार इस समझौते में शामिल देशों के लिए खोलना पड़ता, और माना जा रहा है कि तब उसे सबसे ज्यादा नुकसान चीन से होता, क्योंकि सस्ते चीनी औद्योगिक सामानों और कृषि उत्पादों के भारतीय बाजारों में पट जाने से घरेलू उद्योगों को भारी नुकसान पहुंचता। इस समझौते में सदस्य देशों के बीच एकदूसरे के लिए माल और सेवाओं का शुल्क मुक्त आयात-निर्यात करने का प्रस्ताव है।
कांग्रेस ने किया था आरसीआईपी समझौते का विरोध
कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष ने अर्थव्यवस्था में सुस्ती को देखते हुए RCEP में शामिल होने का विरोध किया था। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने इस आरसीआईपी को लेकर किसानों, छोटे व्यापरियों और दुकानदारों की कठिनाइयों को ओर इशारा करते हुए कहा, 'हम इसे वहन नहीं कर सकते, जिससे हम अन्य देशों के सामानों और कृषि उत्पादों के डपिंग ग्राउंड बन जाएंगे।'
ने केवल विपक्ष बल्कि आरएसएस ने भी इस व्यापार सौदे को लेकर आगाह किया था, वास्तव में विशेष रूप से घरेलू उद्योग भारतीय वार्ताकारों के लिए एक बाधा बन गया था।
न सिर्फ विपक्ष बल्कि इस समझौते को लेकर आरएसएस के आलोचनात्मक रवैये ने भी सरकार के पीछे हटने में अहम भूमिका निभाई। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपनी दशहरा रैली में ऐसे किसी भी समझौते से दूर रहने की सलाह दी थी।
महज 48 घंटे पहले RCEP के विरोध को लेकर सोनिया पर भड़के थे पीयूष गोयल
इस समझौते से पीछे हटने से महज 48 घंटे पहले वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने आरसीआईपी में शामिल होने का विरोध करने को लेकर सोनिया गांधी को निशाना बनाया था। कांग्रेस ये कहते हुए सरकार को निशाना बना रही थी कि आरसीईपी समझौते का मतलब चीन को फायदा पहुंचाना होगा।
गोयल ने सोनियां गांधी की आलोचना के जवाब में तीखा हमला बोलते हुए कहा था, 'श्रीमती सोनिया गांधी जी अचानक आरसीईपी और मुक्त व्यापार समझौते (एफीटीए) को लेकर लिए जाग गई हैं। वह तब कहां थीं ब उनकी सरकार ने आसियान देशों के लिए अपने बाजार का 74% हिस्सा खोल दिया था लेकिन इंडोनेशिया जैसे अमीर देशों ने भारत के लिए केवल 50% हिस्सा ही खोला? वह अमीर देशों को बड़ी रियायतें देने के खिलाफ क्यों नहीं बोलीं। सोनिया जी तब कहा थीं जब 2007 में उनकी सरकार ने भारत-चीन मुक्त व्यापार का पता लगाने के लिए सहमति व्यक्त की थी? मुझे उम्मीद है कि पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह इस अपमान के खिलाफ बोलेंगे।'