कौन हैं जैस्मीन लंबोरिया?, विश्व खिताब जीतने वाली केवल तीसरी भारतीय मुक्केबाज

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 14, 2025 21:25 IST2025-09-14T21:24:07+5:302025-09-14T21:25:47+5:30

2016 के रियो ओलंपिक में पहलवान साक्षी मलिक के कांस्य पदक ने युवा जैस्मीन को खेलों को गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित किया। उस समय वह दसवीं कक्षा में पढ़ती थी।

Who is Jaismine Lamboria only third Indian boxer win world title great MC Mary Kom and Nikhat Zareen Gold World Boxing Championships 2025 | कौन हैं जैस्मीन लंबोरिया?, विश्व खिताब जीतने वाली केवल तीसरी भारतीय मुक्केबाज

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Highlightsकिस्मत ने भले ही उन्हें एक विरासत सौंपी हो। मुक्के मारे और अपनी जगह बनाने के लिए डटी रही।मुझे और आक्रामक होने की जरूरत है।

नई दिल्लीः महान एमसी मैरीकॉम और निकहत जरीन के बाद देश के बाहर विश्व खिताब जीतने वाली केवल तीसरी भारतीय मुक्केबाज जैस्मीन लंबोरिया 2022 विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने से चूक गई थीं लेकिन काफी संघर्षों के बाद उनकी मेहनत रंग लाई जिससे वह लिवरपूल में अपना नाम इतिहास में लिखवाने में कामयाब रहीं। मुक्केबाजी जैस्मीन की रगों में बसती है। फिर भी यह पारिवारिक विरासत नहीं थी बल्कि 2016 के रियो ओलंपिक में पहलवान साक्षी मलिक के कांस्य पदक ने युवा जैस्मीन को खेलों को गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित किया। उस समय वह दसवीं कक्षा में पढ़ती थी।

किस्मत ने भले ही उन्हें एक विरासत सौंपी हो। लेकिन जैस्मीन ने संघर्ष किया, मुक्के मारे और अपनी जगह बनाने के लिए डटी रही। उनके चाचा संदीप और परविंदर पूर्व राष्ट्रीय चैंपियन और अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज हैं। महान मुक्केबाज हवा सिंह उनके दूर के रिश्तेदार हैं। भिवानी की इस मुक्केबाज ने याद करते हुए कहा, ‘‘मेरे चाचाओं ने मुझसे कहा कि लड़कियां अच्छा कर रही हैं, तुम्हें खेलों में आकर कोशिश करनी है? ’’ जैस्मीन ने 2022 विश्व चैंपियनशिप में पदक चूकने के बाद कहा था, ‘‘मुझे और आक्रामक होने की जरूरत है। ’’

अगले साल वह फिर लड़खड़ा गईं, विश्व चैंपियनशिप और एशियाई खेलों दोनों के क्वार्टर फाइनल में हार गईं। हर हार ने उनके दर्द को और बढ़ा दिया, लेकिन जैस्मीन ने उन्हें सीख के रूप में लिया। एशियाई खेलों की हार विशेष रूप से मुश्किल रही थी। शुरुआती राउंड में दबदबा बनाने के बाद रेफरी के स्टैंडिंग काउंट में जैस्मीन अचानक बिखर गईं।

उन्होंने बाद में स्वीकार किया था, ‘‘अपने जीवन में मुझे पहली बार काउंट मिला और मेरा दिमाग शून्य हो गया। ’’ पेरिस ओलंपिक नजदीक आते ही उन्हें अहसास हुआ कि कौशल और सहनशक्ति ही काफी नहीं हैं, उन्हें खेलते हुए चतुराई दिखानी होगी। फेदरवेट में नयी विश्व चैंपियन बनी जैस्मीन ने लिवरपूल से कहा, ‘‘मैंने मनोवैज्ञानिक और ‘मोटिवेटर’ विक्रांत महाजन से सलाह ली और खेल के मानसिक पहलू पर काम किया। ’’ फिर भी नियति ने उसके संकल्प की परीक्षा ली। 60 किग्रा वर्ग में उन्हें एक रिजर्व के रूप में नामित किया गया लेकिन परवीन हुड्डा के निलंबन के कारण फेदरवेट वर्ग में एक स्थान खाली हुआ।

उन्हें मौका मिला। जैस्मीन ने इसे भुनाया और पेरिस के लिए क्वालीफाई किया। लेकिन वह पहले ही दौर में वह बाहर हो गई। ओलंपिक में हार के बाद निराश तो हुईं लेकिन टूटी नहीं। जैस्मीन थोड़े समय के ब्रेक के बाद पुणे स्थित आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट (एएसआई) लौट आईं। उन्होंने 57 किग्रा वर्ग में ही रहने का मन बना लिया था जो उनके लंबे कद और स्वाभाविक गति के अनुकूल था।

उन्होंने कहा, ‘‘60 किग्रा में आपको ज्यादा ताकत और दबदबे की जरूरत होती है। लेकिन मेरी लंबाई के कारण 57 किग्रा मेरे लिए कारगर रहा। लंबी दूरी और गति मदद करती है और मैं आसानी से वजन कम कर सकती हूं। ’’ एएसआई में उनके कोच मोहम्मद ऐतसाम उद्दीन और छोटे लाल यादव ने उन्हें निराश नहीं होने दिया। ऐतसाम राष्ट्रीय शिविर का हिस्सा हैं।

उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘ओलंपिक के बाद वह बहुत निराश थी। वह टूर्नामेंट नहीं खेलना चाहती थी, बस अपनी कमियों पर काम करना चाहती थी। लेकिन हमने उसकी प्रगति का आकलन करने के लिए उसे राष्ट्रीय खेलों और चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए मजबूर किया। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘वह स्वभाव से नरम है इसलिए हमने उसे रिंग में गुस्सा दिलाने के लिए अलग-अलग तरीके आजमाए।

छोटे लाल ने आगे कहा, ‘‘आक्रामकता बहुत जरूरी है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप बिना किसी योजना के वार करते रहें। हमने उसे दबाव डालना, हमला करना और फिर पलटवार करना सिखाया। ’’ जल्द ही नतीजे सामने आने लगे। इस साल उन्होंने राष्ट्रीय खेलों, राष्ट्रीय चैंपियनशिप और अस्ताना में हुए विश्व मुक्केबाजी कप सहित हर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता है।

जैस्मीन ने स्वीकार किया, ‘‘अब किसी तरह आक्रामकता आ जाती है, पहले ऐसा नहीं होता था, लेकिन अब मैं रिंग में आक्रामक होकर आक्रमण कर सकती हूं। ’’ आखिरकार वह वही मुक्केबाज है जो कभी एशियाई खेलों के एक बेहद कड़े मुकाबले में हार गई थी, लेकिन विश्व चैंपियन बनकर उभरी। कहते हैं आप अपनी किस्मत खुद बनाते हैं।

विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में जैसमीन और मीनाक्षी को खिताब, भारत को चार पदक

भारतीय मुक्केबाजों जैसमीन लंबोरिया (57 किग्रा) और मीनाक्षी हुड्डा (48 किग्रा) ने अपना नाम इतिहास में दर्ज कराते हुए यहां विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में कड़े मुकाबलों में अपने-अपने वर्ग में खिताब जीते जबकि भारत ने विदेशी सरजमीं पर महिला वर्ग में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए चार पदक अपने नाम किए।

जैसमीन ने पेरिस ओलंपिक की रजत पदक विजेता पोलैंड की जूलिया जेरेमेटा को हराकर फीदरवेट वर्ग में चैम्पियन बन गई। पूरे टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन करने वाली जैसमीन ने 57 किग्रा के फाइनल में शनिवार को देर रात 4 . 1 (30-27, 29-28, 30-27, 28-29, 29-28) से जीत दर्ज की । जैसमीन ने कहा, ‘‘मैं जो महसूस कर रही हूं उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती।

मैं पिछली दो विश्व चैंपियनशिप में क्वार्टर फाइनल में हार गई थी लेकिन विश्व कप जीत से मेरा हौसला बढ़ा और मैंने तय किया कि मुझे एकतरफा मैच जीतने हैं। मैंने बस अपनी रणनीति और खेल पर ध्यान केंद्रित किया।’’ पदार्पण कर रही मीनाक्षी ने रविवार को जैसमीन की उपलब्धि को दोहराते हुए पेरिस ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता कजाखस्तान की नाजिम काइजेबे को 48 किग्रा वर्ग के फाइनल में 4-1 से हराकर जुलाई में विश्व कप में मिली हार का बदला चुकता किया। नुपूर शेरोन (80 प्लस किलो) और पूजा रानी (80 किलो) को गैर ओलंपिक भारवर्ग में क्रमश: रजत और कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा ।

भारत ने प्रतियोगिता में चार पदक जीते जो विदेशी सरजमीं पर उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। इस जीत के साथ जैसमीन और मीनाक्षी विश्व चैम्पियन बनने वाली भारतीय मुक्केबाजों की सूची में शामिल हो गई हैं। इससे पहले छह बार की चैम्पियन एम सी मेरीकोम (2002, 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018), दो बार की विजेता निकहत जरीन (2022 और 2023), सरिता देवी (2006), जेनी आरएल (2006), लेखा केसी (2006), नीतू गंघास (2023), लवलीना बोरगोहेन (2023) और स्वीटी बूरा (2023) यह खिताब जीत चुकी हैं।

तीसरी बार विश्व चैंपियनशिप में भाग ले रही 24 वर्षीय जैसमीन ने मुकाबले में लगातार अच्छा प्रदर्शन किया। शुरू में दोनों मुक्केबाज़ एक-दूसरे को परख रही थीं लेकिन रेफरी के उकसावे पर जेरेमेटा ने पहला वार किया। ओलंपिक फ़ाइनल में लिन यू-टिंग से हारने वाली पोलैंड की यह मुक्केबाज़ तेज़ और सटीक थी और रक्षात्मक रणनीति का इस्तेमाल करते हुए तेज़ी से अंदर-बाहर हो रही थी।

उन्होंने पहला राउंड 3-2 से जीत लिया। लेकिन दूसरे राउंड में भारतीय खिलाड़ी ने जोरदार वापसी की। जैसमीन ने मुकाबले पर नियंत्रण बनाया तथा आक्रमण और रक्षण के बीच शानदार समन्वय स्थापित किया जिससे सभी जज उनके पक्ष में हो गए। जब अंतिम फैसला सुनाया गया, तो आमतौर पर शांत रहने वाली जैसमीन ने हल्की सी चीख़ मारी और फिर हाथ उठाकर अपनी निराश प्रतिद्वंद्वी को शालीनता से गले लगा लिया। पदक समारोह में, जब पूरे स्टेडियम में भारतीय राष्ट्रगान गूंज रहा था, तो उनकी आंखें चमक उठीं।

उनका यह पदक भारत को ओलंपिक भार वर्ग में मिला एकमात्र पदक है। फाइनल में मीनाक्षी ने अपनी शारीरिक क्षमता का पूरा फायदा उठाया। उन्होंने अपनी लंबी पहुंच का इस्तेमाल करते हुए काइजेबे पर तीखे प्रहार किए और विश्व चैंपियनशिप में कई पदक जीतने वाली इस मुक्केबाज को लगातार दबाव में रखा। चौबीस साल की मीनाक्षी बैकफुट पर सहज दिखीं और उन्होंने सीधे मुक्के जड़े जबकि कजाखस्तान की 31 वर्षीय अनुभवी मुक्केबाज पूरी आक्रामकता के साथ आगे बढ़ रही थीं। पहला राउंड गंवाने के बाद काइजेबे ने दूसरे राउंड में आक्रामक रुख अपनाया।

उन्होंने भारतीय मुक्केबाज के शरीर पर वार किए और 3-2 से राउंड जीत लिया। मीनाक्षी ने तुरंत पलटवार किया। मौके की जरूरत को देखते हुए उन्होंने तीसरे राउंड में अधिक आक्रामकता दिखाई और पूरे दबदबे के साथ विरोधी मुक्केबाज पर मुक्के बरसाए और जीत दर्ज की।

एक अन्य फाइनल में नुपूर को पोलैंड की तकनीकी रूप से कुशल अगाता काज्मार्स्का से 2-3 से हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उन्हें रजत पदक मिला। नुपूर अपने लंबे कद के बावजूद मुकाबले में खुद को हावी नहीं कर पाईं। उन्होंने शानदार शुरुआत की और मुक्कों की झड़ी लगा दी, लेकिन काज़्मार्स्का ने लगातार आक्रामकता से जवाब दिया और ऐसे वार किए कि भारतीय खिलाड़ी निढाल हो गई।

जैसे-जैसे मुकाबला आगे बढ़ा, नुपूर मुक्के मारने में हिचकिचाने लगीं, जबकि पोलैंड की खिलाड़ी लगातार आक्रमण करती रही। निर्णायक क्षण अंतिम राउंड में आया जब अगाता ने एक ज़बरदस्त अपरकट लगाया जो मुकाबला 3-2 से उनके पक्ष में करने और उनके पहले विश्व ख़िताब को सुनिश्चित करने के लिए काफ़ी था।

इससे पहले सेमीफाइनल में पूजा को स्थानीय खिलाड़ी एमिली एस्क्विथ के हाथों 1-4 के विभाजित फैसले से हारकर कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा था। पूजा ने राउंड के बाद अपने नपे-तुले खेल से बढ़त बना ली। लेकिन एस्क्विथ ने तेज़ी से अपने खेल की रणनीति में बदलाव करते हुए 34 वर्षीय पूजा की लय को बेअसर कर दिया।

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