क्या है अनुच्छेद 142?, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट से पूछ डाले कई सवाल, देखें वीडियो
By सतीश कुमार सिंह | Updated: April 17, 2025 20:24 IST2025-04-17T20:23:35+5:302025-04-17T20:24:47+5:30
संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को अपने समक्ष किसी भी मामले में ‘‘पूर्ण न्याय’’ सुनिश्चित करने हेतु आदेश जारी करने की शक्ति देता है।

photo-ani
नई दिल्लीः राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों को मंजूरी देने की समयसीमा तय करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के कुछ दिनों बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। उपराष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय को पूर्ण शक्तियां प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 142 को ‘‘न्यायपालिका को चौबीसों घंटे उपलब्ध लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल’’ करार दिया। उन्होंने कहा, ‘‘अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है और (जो) न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध है।’’ संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को अपने समक्ष किसी भी मामले में ‘‘पूर्ण न्याय’’ सुनिश्चित करने हेतु आदेश जारी करने की शक्ति देता है।
इस शक्ति को उच्चतम न्यायालय की ‘‘पूर्ण शक्ति’’ के रूप में भी जाना जाता है। उपराष्ट्रपति ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के बारे में बात की। 14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में एक न्यायाधीश के निवास पर एक घटना घटी। सात दिनों तक किसी को इसके बारे में पता ही नहीं चला। हमें खुद से सवाल पूछने होंगे। क्या देरी को समझा जा सकता है?
#WATCH | Delhi | Former Delhi High Court judge Justice Yashwant Varma row | Vice President Jagdeep Dhankhar says, "Let me take incidents that are most recent. They are dominating our minds. An event happened on the night of the 14th and 15th of March in New Delhi, at the… pic.twitter.com/U0Q0HuU6w8
— ANI (@ANI) April 17, 2025
क्या यह क्षमा योग्य है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? 21 मार्च को एक समाचार पत्र द्वारा खुलासा किए जाने पर देश के लोगों को पहले कभी नहीं देखा गया इतना बड़ा झटका लगा। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बृहस्पतिवार को न्यायपालिका द्वारा राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने और ‘सुपर संसद’ के रूप में कार्य करने को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय लोकतांत्रिक ताकतों पर ‘परमाणु मिसाइल’ नहीं दाग सकता। धनखड़ ने न्यायपालिका के प्रति यह कड़ी टिप्पणी राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए की।
कुछ दिन पहले ही उच्चतम न्यायालय ने राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ रखे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए समयसीमा तय की थी। उन्होंने ने कहा,‘‘इसलिए, हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यपालिका के कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।’’
#WATCH | Delhi | Former Delhi High Court judge Justice Yashwant Varma row | Vice President Jagdeep Dhankhar says, "Not for a moment will I ever say that we must not give premium to innocence. Democracy is nurtured, its core values blossom, and human rights are taken at a high… pic.twitter.com/gt0U8XgCs0
— ANI (@ANI) April 17, 2025
धनखड़ ने कहा, ‘‘हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम किस दिशा में जा रहे हैं?’’ उन्होंने कहा, ‘‘देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना चाहिए। यह सवाल नहीं है कि कोई पुनर्विचार याचिका दायर करता है या नहीं। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र की कभी उम्मीद नहीं की थी।
राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जाता है और यदि ऐसा नहीं होता है, तो यह कानून बन जाता है।’’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनकी चिंताएं ‘‘बहुत उच्च स्तर’’ पर थीं और उन्होंने ‘‘अपने जीवन में’’ कभी नहीं सोचा था कि उन्हें ऐसा देखने को मिलेगा। धनखड़ ने कार्यक्रम में मौजूद लोगों को याद दिलाया कि भारत के राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है।
#WATCH | Delhi | Vice-President Jagdeep Dhankhar says, "...We cannot have a situation where you direct the President of India and on what basis? The only right you have under the Constitution is to interpret the Constitution under Article 145(3). There, it has to be five judges… pic.twitter.com/U7N9Ve3FZx
— ANI (@ANI) April 17, 2025
उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रपति संविधान के संरक्षण, सुरक्षा और बचाव की शपथ लेते हैं। मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसद और न्यायाधीश सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं।’’ उप राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर?
संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीश होने चाहिए...।’’ उन्होंने शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को रेखांकित करते हुए कहा कि जब सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है, तो सरकार संसद के प्रति तथा चुनावों में जनता के प्रति जवाबदेह होती है। धनखड़ ने कहा, ‘‘जवाबदेही का एक सिद्धांत काम कर रहा है। संसद में आप सवाल पूछ सकते हैं... लेकिन अगर यह कार्यपालिका शासन न्यायपालिका द्वारा संचालित है, तो आप सवाल कैसे पूछ सकते हैं?
चुनावों में आप किसे जवाबदेह ठहराते हैं?’’ उन्होंने कहा, ‘‘समय आ गया है जब हमारी तीन संस्थाएं - विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका -फूलें-फलें... किसी एक द्वारा दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप चुनौती पैदा करता है, जो अच्छी बात नहीं है...।’’ धनखड़ ने राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लिये जाने के वास्ते समयसीमा निर्धारित करने संबंधी उच्चतम न्यायालय के हाल के फैसले पर शुक्रवार को चिंता जताई और कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम स्वयं संभालेंगे और एक ‘‘सुपर संसद’’ के रूप में कार्य करेंगे।
पिछले सप्ताह उच्चतम न्यायालय ने पहली बार यह निर्धारित किया था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचारार्थ सुरक्षित रखे गए विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन माह के भीतर निर्णय लेना चाहिए। धनखड़ ने यहां कहा, ‘‘हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना होगा।
यह कोई समीक्षा दायर करने या न करने का सवाल नहीं है। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र का सौदा नहीं किया था। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से फैसला करने के लिए कहा जा रहा है और यदि ऐसा नहीं होता है, तो संबंधित विधेयक कानून बन जाता है।’’ राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यपालिका का कार्य स्वयं संभालेंगे, जो ‘सुपर संसद’ के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता।’’
धनखड़ ने कहा कि उनकी चिंताएं ‘‘बहुत उच्च स्तर’’ पर हैं और उन्होंने ‘‘अपने जीवन में’’ कभी नहीं सोचा था कि उन्हें यह सब देखने का अवसर मिलेगा। उन्होंने उपस्थित लोगों से कहा कि भारत में राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है और राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण एवं बचाव की शपथ लेते हैं, जबकि मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसदों और न्यायाधीशों सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है...।’’
(इनपुट एजेंसी)