'EC जो कर रहा है वह संविधान के तहत अनिवार्य': बिहार मतदाता सूची संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट
By रुस्तम राणा | Updated: July 10, 2025 12:26 IST2025-07-10T12:26:21+5:302025-07-10T12:26:27+5:30
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि चुनाव आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत अनिवार्य है और पिछली बार ऐसा 2003 में किया गया था।

'EC जो कर रहा है वह संविधान के तहत अनिवार्य': बिहार मतदाता सूची संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को बिहार में चुनावी सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि चुनाव आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत अनिवार्य है और पिछली बार ऐसा 2003 में किया गया था।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की एक आंशिक कार्य दिवस (पीडब्ल्यूडी) पीठ को चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बताया कि उन्हें याचिकाओं पर प्रारंभिक आपत्तियाँ हैं। सर्वोच्च न्यायालय में 10 से अधिक याचिकाएँ दायर की गई हैं, जिनमें से एक मुख्य याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' द्वारा दायर की गई है।
राजद सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, राकांपा (सपा) नेता सुप्रिया सुले, भाकपा नेता डी राजा, समाजवादी पार्टी के हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (यूबीटी) नेता अरविंद सावंत, झामुमो के सरफराज अहमद और भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य ने भी चुनाव आयोग के आदेश को रद्द करने के लिए निर्देश देने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है।
बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण क्यों?
24 जून को, चुनाव आयोग (ईसी) ने बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) करने के निर्देश जारी किए, जिसका उद्देश्य अपात्र नामों को हटाना और केवल पात्र नागरिकों को ही शामिल करना है।
ईसी ने कहा कि तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण, लगातार प्रवास, नए पात्र युवा मतदाताओं, मौतों की सूचना न देने और अवैध विदेशी प्रवासियों के नाम शामिल होने जैसे कारकों के कारण यह संशोधन आवश्यक हो गया था। आयोग ने कहा कि इसका उद्देश्य मतदाता सूची की अखंडता और सटीकता बनाए रखना है।
मतदाता सत्यापन के लिए बूथ स्तर के अधिकारी घर-घर जाकर सर्वेक्षण कर रहे हैं। ईसी ने यह भी आश्वासन दिया कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 16 में उल्लिखित संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों का कड़ाई से पालन करेगी।