पहली बार अपराध के दौरान दिखे आरोपी की पहचान करना कमजोर सबूत : न्यायालय
By भाषा | Published: October 23, 2021 03:10 PM2021-10-23T15:10:04+5:302021-10-23T15:10:04+5:30
नयी दिल्ली, 23 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी गवाह द्वारा अदालत में ऐसे आरोपी की पहचान करना, जिसे उसने पहली बार अपराध के दौरान ही देखा हो, कमजोर सबूत है, खासकर उस स्थिति में जब अपराध और बयानों के दर्ज होने की तारीखों में लंबा अंतराल हो।
उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी उन चार लोगों की अपील पर की जिन्हें स्पिरिट की ढुलाई करने पर केरल आबकारी कानून की धारा 55 (ए) के तहत दोषी ठहराया गया था।
अभियोजन पक्ष का आरोप था कि चारों लोगों ने एक ट्रक में प्लास्टिक के 174 डिब्बों में कुल 6,090 लीटर स्पिरिट की बिना अनुमति के ढुलायी की और ट्रक का नंबर प्लेट नकली था।
न्यायालय ने एक गवाह की गवाही को खारिज कर दिया क्योंकि उसने कहा था कि वह ऐसे लोगों की पहचान करने में सक्षम नहीं है जिन्हें उसने 11 साल पहले देखा था। हालांकि, गवाह ने दो आरोपियों की पहचान कर ली थी, जिन्हें उसने घटना की तारीख पर 11 साल से भी अधिक समय पहले पहली बार देखा था।
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने कहा, ‘‘किसी गवाह द्वारा अदालत में ऐसे आरोपी की पहचान करना, जिसे उसने पहली बार अपराध के दौरान ही देखा हो, कमजोर सबूत है, खासकर तब, जब अपराध और बयानों के दर्ज होने की तारीखों में लंबा अंतराल हो।
पीठ ने 22 अक्टूबर को अपने आदेश में कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि शिनाख्त परेड जांच का एक हिस्सा है और यह ठोस सबूत नहीं है। हालांकि, शिनाख्त परेड का नहीं होना किसी गवाह की गवाही को खारिज करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता, जिसने अदालत में आरोपी की पहचान की है।
पीठ ने आरोपियों को बरी करते हुए कहा, "अभियोजन पक्ष ने ट्रक का असली रजिस्ट्रेशन नंबर और उसके असली मालिक के नाम के बारे में सबूत पेश नहीं किया। इसलिए, अभियोजन का पूरा मामला संदिग्ध हो जाता है।
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