हमें अब अपने देश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता का एहसास होना चाहिए: एमपी हाईकोर्ट

By रुस्तम राणा | Updated: July 22, 2024 20:25 IST2024-07-22T20:25:02+5:302024-07-22T20:25:02+5:30

हाईकोर्ट ने कहा, कानून निर्माताओं को यह समझने में कई साल लग गए कि ट्रिपल तलाक असंवैधानिक है और समाज के लिए बुरा है। हमें अब अपने देश में 'समान नागरिक संहिता' की आवश्यकता का एहसास होना चाहिए।' 

We Should Now Realise The Need For Uniform Civil Code In Our Country: Madhya Pradesh High Court | हमें अब अपने देश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता का एहसास होना चाहिए: एमपी हाईकोर्ट

हमें अब अपने देश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता का एहसास होना चाहिए: एमपी हाईकोर्ट

Highlightsएमपी हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने कहा, हमें अब अपने देश में 'समान नागरिक संहिता' की आवश्यकता का एहसास होना चाहिएन्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने ट्रिपल तलाक और दहेज उत्पीड़न मामले से संबंधित एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी कीकोर्ट ने कहा, कानून निर्माताओं को यह समझने में कई साल लग गए कि ट्रिपल तलाक असंवैधानिक है

इंदौर (मध्य प्रदेश): मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को वैवाहिक न्याय और सुरक्षा देने के लिए ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून बनाए जाने पर गौर करते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने कहा, 'हमें अब अपने देश में 'समान नागरिक संहिता' की आवश्यकता का एहसास होना चाहिए।'

न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने ट्रिपल तलाक और दहेज उत्पीड़न मामले से संबंधित एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की, 'मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 को भारतीय संसद ने कानून के रूप में पारित किया, ताकि तत्काल ट्रिपल तलाक को आपराधिक अपराध बनाया जा सके। यह निश्चित रूप से समानता और सामाजिक संशोधन की दिशा में एक बड़ा कदम है। कानून निर्माताओं को यह समझने में कई साल लग गए कि ट्रिपल तलाक असंवैधानिक है और समाज के लिए बुरा है। हमें अब अपने देश में 'समान नागरिक संहिता' की आवश्यकता का एहसास होना चाहिए।' 

न्यायाधीश ने आगे कहा, 'समाज में कई अन्य निंदनीय, कट्टरपंथी, अंधविश्वासी और अति-रूढ़िवादी प्रथाएँ प्रचलित हैं, जिन्हें आस्था और विश्वास के नाम पर छुपाया जाता है। हालाँकि भारत के संविधान में पहले से ही अनुच्छेद 44 में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की वकालत की गई है, फिर भी इसे केवल कागज़ों पर नहीं बल्कि वास्तविकता में बदलने की ज़रूरत है। एक अच्छी तरह से तैयार की गई समान नागरिक संहिता ऐसी अंधविश्वासी और बुरी प्रथाओं पर लगाम लगा सकती है और राष्ट्र की अखंडता को मज़बूत करेगी।' 

न्यायाधीश ने ये टिप्पणियाँ एक महिला और उसकी बेटी द्वारा दायर याचिका पर कीं, जिसमें पुलिस स्टेशन राजपुर, जिला बड़वानी में आईपीसी की धारा 498-ए, 323/34, दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3/4 और मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने की माँग की गई थी।

एफआईआर एक महिला की शिकायत पर दर्ज की गई थी, जिसने दावा किया था कि उसे दहेज के लिए याचिकाकर्ताओं द्वारा परेशान किया गया था और उसके पति ने उसे तीन तलाक दिया था। अदालत ने मुस्लिम महिला अधिनियम-2019 की धारा 4 को रद्द करने के साथ याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया।

कोर्ट ने कहा कि 2019 के अधिनियम की धारा 3 और 4 केवल मुस्लिम पति के खिलाफ लागू होती है। इसलिए, याचिकाकर्ता जो शिकायतकर्ता की सास और ननद हैं, उन पर 2019 के अधिनियम के तहत तीन तलाक देने के अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है, क्योंकि उपरोक्त अपराध केवल मुस्लिम पति द्वारा ही किया जा सकता है।

Web Title: We Should Now Realise The Need For Uniform Civil Code In Our Country: Madhya Pradesh High Court

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