पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि भारत में गजब का विरोधाभास है कि यहां हम जिसे सबसे अधिक पवित्र मानते हैं उसी को सर्वाधिक प्रदूषित करते हैं। जयपुर साहित्य उत्सव (जेएलएल) के दूसरे दिन ‘‘फ्लड और फ्यूरी’’ सत्र के दौरान रमेश ने कहा कि गंगा हमारे लिए सबसे पवित्र है, लेकिन हमने उसे सबसे अधिक प्रदूषित किया। यमुना पवित्र है, उसे हमने सर्वाधिक प्रदूषित किया। हिमालय हमारे लिए पवित्र है और उसे भी सबसे अधिक प्रदूषित किया। दरअसल यह हमारा विरोधाभास है।
उन्होंने कहा कि आप बनारस जाइये और देखिये भारतीयो के लिए सबसे पवित्र शहर और गंगा को किस तरह से हमने प्रदूषित किया है। आप काशी के मंदिर का हाल देखिये, बेहद गंदे है। जबकि यह बेहद पवित्र शहरों में शामिल है। देश के बेहद कम शहर तिरुपति की तरह स्वच्छ है।
रमेश ने उपनिषद का उदाहरण देते हुए कहा कि ‘‘प्रकृति रक्षति रक्षतः’’ यानी प्रकृति केवल उन्हीं की रक्षा करती है जो उसकी रक्षा करते हैं। किसी और संस्कृति में ऐसा नहीं है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि प्रकृति उन्हीं की रक्षा करती है जो उसकी करते हैं। उन्होंने कहा कि 2004 की सुनामी प्रकृति का बदला थी। उत्तराखंड में 2012-13 की बाढ़ प्रकृति का गुस्सा थी। यह हिमालय के प्रति किए गए व्यवहार का परिणाम थी।
उन्होंने कहा कि दुनिया में ऐसी कोई भी संस्कृति नहीं है जो भारतीय संस्कृति की तरह प्रकृति का सम्मान करती हो। हमारे देवी-देवता प्रकृति आधारित है। हम अपनी नदियों की पूजा करते हैं हम अपने पर्वतों की पूजा करते हैं। लेकिन आज क्या हो रहा है जिस तरह से पहाड़ और नदियां प्रदूषित की जा रही हैं। ये विरोधाभास नहीं होने चाहिए। हमे अपने पिछले समय की और लौटना चाहिए।
बाढ़ पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि नदियों के बाढ़ क्षेत्र पर अतिक्रमण की वजह से समस्या बढ़ी है। दिल्ली में यमुना का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यहां यमुना के बाढ़ क्षेत्र में राष्ट्रमंडल खेल गांव है, एक बस टर्मिनल है और अपार्टमेंट बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि चेन्नई में आई बाढ़ या केरल में आई बाढ़ तो चर्चा में आ जाती है, लेकिन उप्र और बिहार में बाढ़ की समस्या बढ़ रही है और यह सुर्खियां नहीं बन रही।
रमेश ने कहा कि भारत में एक और बात है कि जिस समय एक क्षेत्र बाढ़ से जूझ रहा होता है उसी समय दूसरे में सूखा पड़ा होता है। रमेश ने इस दौरान संशोधित नागरिकता कानून को लेकर भी लोगों की चिंता साझा की। उन्होंने कहा कि चेन्नई में बाढ़ के दौरान अपने कागजात गंवाने वाले लोग चिंतित हैं, कि वे कैसे अपने आपको साबित कर पाएंगे।