150 years of Vande Mataram: वंदे मातरम् के 150 वर्ष, डाक टिकट और सिक्का जारी, पीएम मोदी बोले-मां भारती की आराधना, आत्मविश्वास को बढ़ाता, वीडियो
By सतीश कुमार सिंह | Updated: November 7, 2025 11:18 IST2025-11-07T11:13:17+5:302025-11-07T11:18:46+5:30
150 years of Vande Mataram: सारी आवाज़ों में एक लय, एक स्वर, एक भाव, एक जैसा रोमांच, एक जैसा प्रवाह, ऐसा तारतम्य, ऐसी तरंग... इस ऊर्जा ने हृदय को स्पंदित कर दिया है।

150 years of Vande Mataram
नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वंदे मातरम, ये शब्द एक मंत्र है, एक ऊर्जा है, एक स्वप्न है, एक संकल्प है। वंदे मातरम, ये शब्द मां भारती की साधना है, मां भारती की आराधना है। वंदे मातरम, ये शब्द हमें इतिहास में ले जाता है, ये हमारे वर्तमान को नए आत्मविश्वास से भर देता है, और हमारे भविष्य को ये नया हौसला देता है कि ऐसा कोई संकल्प नहीं जिसकी सिद्धि न हो सके, ऐसा कोई लक्ष्य नहीं जिसे हम भारतवासी पा न सकें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के 150 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक साल तक मनाए जाने वाले स्मरणोत्सव की शुक्रवार को शुरुआत की।
LIVE: PM Shri @narendramodi inaugurates year-long commemoration of 150 years of the National Song “Vande Mataram” #VandeMataram150https://t.co/2aHl5RKUQ8
— BJP (@BJP4India) November 7, 2025
मोदी ने इस अवसर पर यहां इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया। यह कार्यक्रम सात नवंबर 2025 से सात नवंबर 2026 तक मनाए जाने वाले एक साल के राष्ट्रव्यापी स्मरणोत्सव की औपचारिक शुरुआत है। इस स्मरणोत्सव में उस कालजयी रचना के 150 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया जाएगा जिसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया।
#WATCH | Delhi | PM Modi participates in the Mass Singing of the full version of 'Vande Mataram' at the Indira Gandhi Indoor Stadium, in an event commemorating 150 years of the National Song 'Vande Mataram'.
— ANI (@ANI) November 7, 2025
The Prime Minister will also release a Commemorative Stamp and Coin on… pic.twitter.com/Ra5vkVp4D3
#WATCH | Delhi | PM Modi participates in the event commemorating 150 years of the National Song 'Vande Mataram' at the Indira Gandhi Indoor Stadium
The Prime Minister will also release a Commemorative Stamp and Coin on the occasion. This programme marks the formal launch of a… pic.twitter.com/UKeTpNtV5L— ANI (@ANI) November 7, 2025
राष्ट्रीय गौरव एवं एकता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई। बंकिम चंद्र चटर्जी ने सात नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के अवसर पर राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ की रचना की थी। ‘वंदे मातरम्’ पहली बार साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में चटर्जी के उपन्यास ‘आनंदमठ’ के एक भाग के रूप में प्रकाशित हुआ था।
इस दिन को इतिहास की तारीख में अंकित करने के लिए आज ‘वंदे मातरम’ पर एक विशेष सिक्का और डाक टिकट भी जारी किए गए हैं। गुलामी के उस कालखंड में 'वंदे मातरम्' इस संकल्प का उद्घोष बन गया था कि भारत की आजादी का, मां भारती के हाथों से गुलामी की बेड़ियां टूटेंगी! उसकी संतानें स्वयं अपने भाग्य की विधाता बनेंगी!
#WATCH | Rajouri, J&K: Road connectivity was made available for the first time in border area villages in Manjakote Block after Independence under the National Bank for Agriculture and Rural Development (NABARD).
— ANI (@ANI) November 7, 2025
Independent MLA and Former judge Manjakote Muzaffar Iqbal Khan… pic.twitter.com/uzlOKIFLEt
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था कि बंकिमचंद्र की 'आनंदमठ’ सिर्फ एक उपन्यास नहीं है, यह स्वाधीन भारत का एक स्वप्न है। ‘आनंदमठ’ में ‘वंदे मातरम’ का प्रसंग, उसकी हर पंक्ति, बंकिम बाबू के हर शब्द और हर भाव, सभी के अपने गहरे निहितार्थ थे, और आज भी हैं। इस गीत की रचना गुलामी के कालखंड में हुई, लेकिन इसके शब्द कभी भी गुलामी के साए में कैद नहीं रहे।
वे गुलामी की स्मृतियों से सदा आजाद रहे। इसी कारण ‘वंदे मातरम’ हर दौर में, हर काल में प्रासंगिक है। इसने अमरता को प्राप्त किया है। 1875 में, जब बंकिम बाबू ने ‘बंग दर्शन’ में ‘वंदे मातरम’ प्रकाशित किया था, तब कुछ लोगों को लगा था कि यह तो बस एक गीत है। लेकिन देखते ही देखते ‘वंदे मातरम’ भारत के स्वतंत्रता संग्राम का स्वर बन गया।
एक ऐसा स्वर, जो हर क्रांतिकारी की ज़ुबान पर था, एक ऐसा स्वर, जो हर भारतीय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा था! वंदे मातरम आजादी के परवानों का तराना होने के साथ ही इस बात की भी प्रेरणा देता है कि हमें इस आजादी की रक्षा कैसे करनी है। राष्ट्र को एक geopolitical entity मानने वालों के लिए राष्ट्र को मां मानने वाला विचार हैरानी भरा हो सकता है।
लेकिन भारत अलग है, भारत में मां जननी भी है और पालनहारिणी भी है। और अगर संतान पर संकट आ जाए तो मां "संहार कारिणी" भी है। हमें इस सदी को भारत की सदी बनाना है। यह सामर्थ्य भारत में है, यह सामर्थ्य 140 करोड़ भारतीयों में है। और इसके लिए हमें खुद पर विश्वास करना होगा।