Waqf Amendment Act 2025: महत्वपूर्ण प्रावधानों पर रोक, दिलचस्प मोड़ पर कानूनी लड़ाई, जानिए 3 अप्रैल से 15 सितंबर घटनाक्रम
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 15, 2025 14:34 IST2025-09-15T14:33:17+5:302025-09-15T14:34:26+5:30
Waqf Amendment Act 2025: पिछले पांच साल से इस्लाम का पालन करने वालों को ही वक्फ बनाने की अनुमति वाले प्रावधान पर रोक भी शामिल है।

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नई दिल्लीः नए वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के पारित होने के बाद कई लोगों ने इसे चुनौती दी और उच्चतम न्यायालय द्वारा इसके कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों पर रोक लगाने के बाद, यह कानूनी लड़ाई एक दिलचस्प मोड़ ले चुकी है। यहां कानून के लागू होने से लेकर उच्चतम न्यायालय के ताजा निर्णय तक की घटनाओं का क्रमवार विवरण दिया गया है, जिसमें केवल पिछले पांच साल से इस्लाम का पालन करने वालों को ही वक्फ बनाने की अनुमति वाले प्रावधान पर रोक भी शामिल है।
*तीन अप्रैल: लोकसभा ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित किया।
*चार अप्रैल: राज्यसभा ने भी उक्त विधेयक पारित किया।
*पांच अप्रैल: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विधेयक को मंजूरी दी। आम आदमी पार्टी के नेता अमानतुल्लाह खान ने विधेयक के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया। कई अन्य लोगों ने भी सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया। असदुद्दीन ओवैसी, मोहम्मद जावेद, एआईएमपीएलबी ने भी शीर्ष अदालत का रुख किया।
*17 अप्रैल: उच्चतम न्यायालय ने याचिकाओं पर सुनवाई की। सरकार द्वारा यह आश्वासन दिए जाने के बाद कि इस बीच ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ या ‘दस्तावेज द्वारा वक्फ’ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा, पीठ ने केंद्र को अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया।
*25 अप्रैल: केंद्र ने याचिकाओं को खारिज करने का अनुरोध किया और कहा कि कानून पर ‘पूर्ण रोक’ नहीं लगाई जा सकती।
*29 अप्रैल: उच्चतम न्यायालय ने कानून के खिलाफ नई याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया।
*5 मई: तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि इस मामले पर उनके उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति बी. आर. गवई 15 मई को सुनवाई करेंगे।
*15 मई: प्रधान न्यायाधीश गवई ने अंतरिम राहत के मुद्दे पर सुनवाई के लिए 20 मई की तारीख तय की।
*20-22 मई: शीर्ष अदालत ने याचिकाओं पर सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रखा।
*15 सितंबर: प्रधान न्यायाधीश गवई की अगुवाई वाली पीठ ने अंतरिम आदेश पारित किया। हालांकि, प्रमुख प्रावधानों पर रोक लगाते हुए शीर्ष अदालत ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और कहा कि इसके पक्ष में संवैधानिकता की ‘पूर्व धारणा’ है।