सुदर्शन रेड्डी के बचाव में उतरे 18 पूर्व न्यायाधीश तो विरोध में खड़े हुए 56 पूर्व जज, आखिर क्या है विवाद
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 26, 2025 21:11 IST2025-08-26T21:09:42+5:302025-08-26T21:11:53+5:30
Vice Presidential election candidate: 2011 में उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ के तहत, छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ पुलिस के साथ लड़ने वाले आदिवासी युवकों के सशस्त्र संगठन सलवा जुडूम को भंग करने का फैसला सुनाया था।

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नई दिल्लीः केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा आलोचना किये जाने पर उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी का बचाव करने वाले 18 पूर्व न्यायाधीशों के बयान की मंगलवार को करीब 56 पूर्व न्यायाधीशों ने निंदा करते हुए कहा कि यह राजनीतिक सुविधा के लिए न्यायिक स्वतंत्रता की ढाल का दुरुपयोग करने के समान है। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के 56 पूर्व न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘ये बयान न्यायिक स्वतंत्रता की भाषा के तहत अपने राजनीतिक पक्षपात को छिपाने के लिए हैं। यह परिपाटी उस संस्था के लिए बहुत बड़ा नुकसान है, जिसमें हमने कभी सेवा की थी, क्योंकि यह न्यायाधीशों को राजनीतिक भूमिका निभाने वालों के रूप में पेश करती है।’’ उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘जिन लोगों ने राजनीति में जाना चुना है, उन्हें उसी क्षेत्र में अपना बचाव करने दें।’’
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को ऐसी उलझनों से अलग और ऊपर रखा जाना चाहिए। वे 18 पूर्व न्यायाधीशों के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे, जिन्होंने सलवा जुडूम को भंग करने को लेकर शाह द्वारा रेड्डी पर किये गए हमले को ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ बताया था। रेड्डी ने 2011 में उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ के तहत, छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ पुलिस के साथ लड़ने वाले आदिवासी युवकों के सशस्त्र संगठन सलवा जुडूम को भंग करने का फैसला सुनाया था। शाह ने रेड्डी पर नक्सलवाद का ‘‘समर्थन’’ करने का आरोप लगाया था।
उन्होंने दावा किया था कि अगर सलवा जुडूम पर फैसला नहीं आता, तो वामपंथी उग्रवाद 2020 तक खत्म हो गया होता। अठारह पूर्व न्यायाधीशों द्वारा हस्ताक्षरित बयान में कहा गया था, ‘‘सलवा जुडूम मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले की सार्वजनिक रूप से गलत व्याख्या करने संबंधी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है।
यह फैसला कहीं से भी, न तो स्पष्ट रूप से और न ही अपने मूल पाठ के निहितार्थों के माध्यम से, नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन करता है।’’ इस पर पलटवार करते हुए 56 पूर्व न्यायाधीशों द्वारा जारी बयान में कहा गया कि वे सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और कार्यकर्ताओं के एक समूह के रुख से अपनी कड़ी असहमति दर्ज कराने के लिए बाध्य हैं।
यह बयान जारी करने वाले 56 पूर्व न्यायाधीशों में पूर्व प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई (मनोनीत राज्यसभा सदस्य), और उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए. के. सीकरी तथा एम. आर. शाह शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यह एक सामान्य चलन बन गया है, क्योंकि हर बड़े राजनीतिक घटनाक्रम पर एक ही तबके से बयान आते हैं।
उन्होंने दावा किया कि ये बयान न्यायिक स्वतंत्रता की भाषा में अपने राजनीतिक पक्षपात को छिपाने के लिए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इससे न्यायिक अधिकारी के पद के लिए अपेक्षित गरिमा और निष्पक्षता नष्ट हो जाती है। एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने अपनी इच्छा से भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
ऐसा करके, उन्होंने विपक्ष द्वारा समर्थित उम्मीदवार के रूप में राजनीतिक क्षेत्र में कदम रखा है। इस राह पर जाने के बाद, उन्हें राजनीतिक चर्चा के क्षेत्र में किसी भी अन्य प्रतिभागी की तरह अपनी उम्मीदवारी का बचाव करना होगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जिन लोगों ने राजनीति में जाना चुना है, उन्हें उसी क्षेत्र में अपना बचाव करना चाहिए।
न्यायपालिका संस्था को ऐसी उलझनों से ऊपर और अलग रखा जाना चाहिए।’’ छप्पन पूर्व न्यायाधीशों में सुरेश कैत, अली मोहम्मद माग्रे, नवनीति प्रसाद सिंह, एस. के. मित्तल और एल. नरसिम्हा रेड्डी शामिल हैं, जो क्रमशः मध्यप्रदेश, जम्मू कश्मीर, केरल, राजस्थान और पटना उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीश हैं।