वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक शम्सुर्रहमान फारुकी का निधन, 85 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

By सतीश कुमार सिंह | Updated: December 25, 2020 14:41 IST2020-12-25T13:26:30+5:302020-12-25T14:41:09+5:30

साहित्यकार शम्सुर्रहमान फारुकी को सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया था। पाकिस्तान ने सितारा-ए-इम्तियाज़ से नवाजा था।

Urdu literature Shamsur Rahman Faruqi passed away indian poet uttar pradesh allahabad | वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक शम्सुर्रहमान फारुकी का निधन, 85 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

शम्सुर्रहमान फारुकी का जन्म उत्तर प्रदेश में 1935 को हुआ था। (file photo)

Highlightsउपन्यास 'कई चांद थे सरे आसमां' ने हिंदुस्तानी साहित्य की दुनिया में लोकप्रियता का एक नया मक़ाम हासिल कर लिया था। 'मीर' के कलाम पर आलोचना लिखी जो 'शेर-शोर-अंगेज़' के नाम से तीन भागों में प्रकाशित हुई।फारुकी ने अंग्रेजी में एमए की डिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1955 में प्राप्त की थी।

इलाहाबादः सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार शम्सुर्रहमान फारुकी का निधन हो गया। 85 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। 2009 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।

शम्सुर्रहमान फारुकी का जन्म उत्तर प्रदेश में 1935 को हुआ था। फारुकी ने अंग्रेजी में एमए की डिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1955 में प्राप्त की थी। इनके द्वारा रचित समालोचना तनकीदी अफकार के लिए 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (उर्दू) से सम्मानित किया गया। 

उर्दू के मशहूर आलोचक और लेखक शम्सुर्रहमान फ़ारुक़ी के उपन्यास 'कई चांद थे सरे आसमां' ने हिंदुस्तानी साहित्य की दुनिया में लोकप्रियता का एक नया मक़ाम हासिल कर लिया था। उनकी रचनाओं में 'शेर, ग़ैर शेर, और नस्र (1973)', 'गंजे-सोख़्ता (कविता संग्रह)', 'सवार और दूसरे अफ़साने (फ़िक्शन)' और 'जदीदियत कल और आज (2007)' शामिल हैं। उन्होंने उर्दू के सुप्रसिद्ध शायर मीर तक़ी 'मीर' के कलाम पर आलोचना लिखी जो 'शेर-शोर-अंगेज़' के नाम से तीन भागों में प्रकाशित हुई।

फारुकी एक भारतीय कवि और उर्दू समीक्षक और सिद्धांतकार थे। उन्होंने साहित्यिक प्रशंसा के नए मॉडल तैयार किए। उन्होंने साहित्यिक आलोचना के पश्चिमी सिद्धांतों को आत्मसात किया और बाद में उन्हें उर्दू साहित्य में लागू किया।

उन्होंने 1960 में लिखना शुरू किया। शुरू में, उन्होंने भारतीय डाक सेवा (1960-1968) के लिए काम किया और फिर 1994 तक एक मुख्य पोस्टमास्टर-जनरल और पोस्टल सर्विसेज बोर्ड, नई दिल्ली के सदस्य के रूप में काम किया। वे अपनी साहित्यिक पत्रिका के संपादक भी थे। शबखून और पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में दक्षिण एशिया क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र में अंशकालिक प्रोफेसर रहे। उन्हें 1996 में सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया था। 

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