Unsung Hero: झुग्गियों में रहने वाला वो 'गोरा', जिसने खुद को भारत के लिए समर्पित कर दिया
By आदित्य द्विवेदी | Published: December 16, 2017 08:41 AM2017-12-16T08:41:00+5:302017-12-16T08:50:53+5:30
अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज का जीवन एक प्रेरणा है
यूपीए सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना थी 'मनरेगा'। 2014 में एनडीए सरकार बनते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनरेगा के बारे में कहा था, 'यह यूपीए सरकार की विफलताओं का स्मारक है इसीलिए वो इसे बंद नहीं करेंगे'। 2016 के आम बजट में अपनी ही बात से हटते हुए पीएम मोदी ने मनरेगा कार्यक्रम की दिल खोलकर तारीफ की।
भारत के ग्रामीण अंचल में मनरेगा ने रोजगार और विकास के नए रास्ते खोले हैं। इस कार्यक्रम का ड्राफ्ट अर्थशास्त्री और एक्टिविस्ट ज्यां द्रेज ने बनाया था। ज्यां द्रेज, एक साधारण जिंदगी जीने वाला शख्स जो सिर्फ अपने काम में भरोसा करता है। उनकी जिंदगी हैरान करती है कि कैसे भारत की आर्थिक नीतियों में इनती अहम भूमिका निभाने वाला शख्स झुग्गियों में रह लेता है, सड़क पर गरीबों के साथ बैठकर खाना खा लेता है। गरीबों के दर्द को महसूस करके उससे निपटने के रास्ते निकालता है।
ज्यां द्रेज बेल्जियम में जन्मे थे। 20 साल की उम्र में भारत रिसर्च के लिए आए और यहीं के होकर रह गए। एक इंटरव्यू में ज्यां बताते हैं कि भारत मंत्रमुग्ध कर देने वाला देश है। बेल्जियम से कहीं ज्यादा रोचक। उनका कहना है कि मुझे भी ठीक-ठीक नहीं पता कि मैंने क्यों अपने काम करने के लिए भारत को चुना। कुछ आंदोलनों से जुड़ा फिर यहीं का होकर रह गया।
साधारण से दिखने वाले और झुग्गियों में रहने वाले ज्यां यूपीए शासनकाल में नेशनल एडवाइजरी कमिटी के मेंबर थे। उन्हें देश-दुनिया के बेहतरीन अर्थशास्त्रियों में गिना जाता है। सरकार की योजनाओं को लेकर वो मुखर रहते हैं भले ही उन्हें आलोचना और कुछ नेताओं के गुस्से का शिकार ही क्यों ना होना पड़े।
ज्यां द्रेज ने एसेक्स यूनिवर्सिटी से मैथमेटिकल इकॉनॉमिक्स में बीए किया और 1979 में रिसर्च करने भारत आ गए। इकॉनॉमिक्स में ही उन्होंने इंडियन स्टैटिकल इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली से पीएचडी की। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स, दिल्ली यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाया। फिलहाल वो रांची यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं।
ज्यां द्रेज भारत में भुखमरी, गरीबी, लैंगिक असमानता, स्वास्थ्य, शिक्षा और मनरेगा जैसे मुद्दों पर लगाकार काम कर रहे हैं। उन्होंने नॉबेल विनर अमर्त्य सेन के साथ मिलकर कई किताबें भी लिखी हैं। अर्थशास्त्र पर ज्यां द्रेज की अब तक 12 किताबें छप चुकी हैं। ज्यां को 2002 में भारत की नागरिकता मिल गई। उन्होंने एक्टिविस्ट और प्रोफेसर बेला भाटिया से शादी की है।
What's in a name? that which we call a rose.
By any other name would smell as sweet.
'रोमियो ऐंड जूलिएट' में विलियन शेक्सपियर की ये सूक्ति नाम के बजाए काम की महत्ता को जरूरी बताती है। असल जिंदगी में कुछ लोग इसे शब्दशः ढाल लेते हैं। एक ऐसे दौर में जब लोग छोटी से छोटी बात का क्रेडिट लेना नहीं भूलते उस दौर में ऐसे भी लोग हैं जो समाज में क्रांतिकारी बदलाव करने के बाजवूद साधारण जिंदगी जीते हैं। उन्हें पर्दे के पीछे रहने में उन्हें कोई ऐतराज नहीं है। ज्यां द्रेज ने इसे पूरी तरह चरितार्थ किया है।