ब्रिटेन में खजाने को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई से अलग होना चाहते हैं हैदराबाद के आठवें निजाम, जानिए पूरा मामला

By भाषा | Updated: July 24, 2020 19:06 IST2020-07-24T19:06:12+5:302020-07-24T19:06:34+5:30

लंदन स्थित उच्च न्यायालय में बुधवार और बृहस्पतिवार को वीडियो कांफ्रेंस के जरिये हुई सुनवाई में न्यायमूर्ति मारकस स्मिथ ने निजाम के विस्तारित परिवार के सदस्यों की वह कोशिश खारिज कर दी, जिसके तहत वे 1947 में भारत के विभाजन के समय से लंदन के एक बैंक में पड़े करीब 3.5 करोड़ पाउंड की कुल रकम पर दावा पेश कर रहे हैं।

UK London eighth Nizam of Hyderabad, Prince Mukarram Jah "clean break" bank account belonging to his ancestors estimated 400,000 pounds  | ब्रिटेन में खजाने को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई से अलग होना चाहते हैं हैदराबाद के आठवें निजाम, जानिए पूरा मामला

हैदराबाद के आठवें निजाम के लगभग पूरे जीवनकाल तक चला। वह इससे अलग होना चाहते हैं। (file photo)

Highlights ब्रिटिश उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद उन्होंने अनुमानित चार लाख पाउंड में अपने हिस्से पर अधिकार छोड़ दिया है। इस खजाने का बड़ा हिस्सा शहजादा जाह, उनके छोटे भाई और भारत के बीच कानूनी रूप से बांटा गया। हैदराबाद के दिवंगत सातवें निजाम को प्राप्त होने वाली रकम का एक हिस्सा करीब 4,00,000 पाउंड होने का अनुमान है।

लंदनःहैदराबाद के आठवें निजाम शहजादा मुकर्रम जाह ने कहा है कि उनके पूर्वजों के ब्रिटेन के एक बैंक में रखे खजाने को लेकर दशकों से चल रही कानूनी लड़ाई से वह अलग होना चाहते हैं।

दरअसल, पिछले साल के एक ब्रिटिश उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद उन्होंने अनुमानित चार लाख पाउंड में अपने हिस्से पर अधिकार छोड़ दिया है। लंदन स्थित उच्च न्यायालय में बुधवार और बृहस्पतिवार को वीडियो कांफ्रेंस के जरिये हुई सुनवाई में न्यायमूर्ति मारकस स्मिथ ने निजाम के विस्तारित परिवार के सदस्यों की वह कोशिश खारिज कर दी, जिसके तहत वे 1947 में भारत के विभाजन के समय से लंदन के एक बैंक में पड़े करीब 3.5 करोड़ पाउंड की कुल रकम पर दावा पेश कर रहे हैं।

इस खजाने का बड़ा हिस्सा शहजादा जाह, उनके छोटे भाई और भारत के बीच कानूनी रूप से बांटा गया। इस खजाने पर पाकिस्तान के दावे को अक्टूबर 2019 में एक अदालती आदेश द्वारा खारिज किये जाने के बाद ऐसा किया गया। हालांकि, हैदराबाद के दिवंगत सातवें निजाम को प्राप्त होने वाली रकम का एक हिस्सा करीब 4,00,000 पाउंड होने का अनुमान है।

हैदराबाद के आठवें निजाम के लगभग पूरे जीवनकाल तक चला

मामले में 2013 में कार्यवाही शुरू होने के बाद से आठवें निजाम का प्रतिनिधित्व कर रहे लॉ फर्म विदर्स एलएलपी के पॉल हेविट ने कहा, ‘‘यह मुकदमा हमारे मुवक्किल, हैदराबाद के आठवें निजाम के लगभग पूरे जीवनकाल तक चला। वह इससे अलग होना चाहते हैं। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, वह प्रस्ताव करते हैं कि चार लाख पाउंड में जो कुछ भी बचा है उसे परिवार के विस्तारित सदस्यों के बीच बांटा जा सकता है, इस धन पर उनके दावे के अधिकार को समाप्त किया जाए तथा ऐसा परंपरागत कानून के तहत किया जाए जो यह कहता है कि सातवें निजाम की रियासत उनके वारिस आठवें निजाम को हस्तांतरित हुई।’’

न्यायाधीश स्मिथ ने इस हफ्ते की शुरुआत में हुई सुनवाई के दौरान निजाम परिवार कल्याण एसोसिएशन के प्रमुख नजफ अली खान और हिमायत अली मिर्ज की उन कोशिशों को खारिज कर दिया, जिसके तहत उन्होंने पाकिस्तान के साथ 70 साल पुराने कानूनी विवाद में भारत और शहजादा मुकर्रम और उनके भाई के पक्ष में दिये अक्टूबर 2019 के उनके आदेश को चुनौती दी थी।

खजाने को पूर्व में बनी सहमति की शर्तों पर उनके बीच बांटा जाए

दोनों शहजादे और भारत ने एक गोपनीय समझौता किया था, जिसका मतलब है कि खजाने को पूर्व में बनी सहमति की शर्तों पर उनके बीच बांटा जाए। उन्होंने अदालत द्वारा सातवें निजाम के ब्रिटिश एस्टेट के लिये नियुक्त प्रशासक क्रिस्टोफर लिनटोट के साथ भी एक गोपनीय समझौता किया, जिसके जरिये एक अतिरिक्त रकम दिवंगत निजाम के एस्टेट को दी गई और जो करीब चार लाख पाउंड बचे जाने का अनुमान है।

इस हफ्ते दो दिन चली सुनवाई के अंत में न्यायमूर्ति स्मिथ ने शेष खजाने नये निजी प्रतिनिधि के रूप में एक न्यास कंपनी को नियुक्त करने की क्रिस्टोफर की अर्जी मंजूर कर ली। नया प्रतिनिधि अब तय करेगा कि कानूनी खर्च के बाद शेष बची रकम पाने के लिये कौन हकदार है। दरअसल, शहजादा मुकर्रम ने कोई दावा नहीं करने को सहमत हुए हैं। यह अब पेन ट्रस्ट के ऊपर निर्भर करता है कि वह छानबीन करे और शेष खजाना आवंटित करे।

वहीं, आठवें निजाम के रिश्तेदारों ने ‘स्काइप’ के जरिये पेश होते हुए भारत और शहजादों के साथ गोपनीय समझौते में प्रवेश करने को लेकर क्रिस्टोफर को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि उन्हें सातवें निजाम के एस्टेट के लिये कहीं अधिक धन लेना चाहिए था। दिवंगत सातवें निजाम के करीब 117 वारिस बताये जाते हैं।

न्यायाधीश ने इस बात का जिक्र किया कि गोपनीय समझौते को उच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश ने भी मंजूरी दी है, जिस कारण क्रिस्टोफर के खिलाफ दावे की गुंजाइश दूर-दूर तक नहीं है। यह ऐतिहासिक विवाद करीब 1,007,940 पाउंड का है, जिसे 1948 में हैदराबाद के निजाम से नवगठित देश पाकिस्तान के ब्रिटेन में उच्चायुक्त को हस्तांतरित किया गया था।

यह रकम लंदन के एक बैंक खाते में तब से बढ़ कर 3.5 करोड़ पाउंड हो गया क्योंकि भारत द्वारा समर्थित निजाम के वंशजों ने इस पर अपना दावा पेश किया, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान ने दावा करते हुए कहा कि इस पर उसका अधिकार बनता है। पिछले साल उच्च न्यायालय के फैसले में पाकिस्तान के दावे को खारिज कर दिया गया। 

Web Title: UK London eighth Nizam of Hyderabad, Prince Mukarram Jah "clean break" bank account belonging to his ancestors estimated 400,000 pounds 

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