कर्नाटक चुनाव में हावी होंगे ये सात प्रमुख मुद्दे, बदल सकते हैं राजनीतिक समीकण

By आदित्य द्विवेदी | Published: April 14, 2018 08:13 AM2018-04-14T08:13:29+5:302018-04-14T08:13:29+5:30

कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में सत्ताधारी कांग्रेस, बीजेपी और जेडी (एस) के लिए एक मौका हैं कि वो असली राजनीतिक मुद्दों को ध्यान दे और उन्हें अपने मैनिफेस्टो में जगह दें।

Top 7 political issues of Karnataka Assembly Elections 2018 | कर्नाटक चुनाव में हावी होंगे ये सात प्रमुख मुद्दे, बदल सकते हैं राजनीतिक समीकण

कर्नाटक चुनाव में हावी होंगे ये सात प्रमुख मुद्दे, बदल सकते हैं राजनीतिक समीकण

कर्नाटक विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। सभी राजनीतिक दलों ने एड़ी-चोटी का जोर लगाना शुरू कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी एकबार फिर बीएस येदियुरप्पा के भरोसे नैया पार लगाना चाहते हैं तो वहीं कांग्रेस ने लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देकर बड़ा राजनीतिक दांव चला है। जनता दल (सेकुलर) ने फिलहाल अपने सभी पत्ते नहीं खोले हैं। कर्नाटक एक ऐसा राज्य है जहां विकास का असमान वितरण हुआ है। एक तरफ बेंगलुरु जैसा शहर है जिसे देश की आईटी राजधानी माना जाता है तो वहीं कई ग्रामीण इलाके हैं जहां किसानों की समस्या हावी है। आगामी विधानसभा चुनाव सत्ताधारी कांग्रेस, बीजेपी और जेडी (एस) के लिए एक मौका हैं कि वो असली राजनीतिक मुद्दों की ओर ध्यान दें और उन्हें अपने मैनिफेस्टो में जगह दें। आगामी विधानसभा चुनाव में प्रदेश में ये सात मुद्दे हावी रहेंगे जो बदल सकते हैं राजनीतिक समीकरण।

1. कन्नड़ झंडा

अलग कन्नड झंडे की मांग 1960 के दशक से उठना शुरू हुई। जब सामाजिक कार्यकर्ता एमए रामामूर्ति ने आंदोलन चलाया। उन्होंने पीला-लाल झंडा बनाया। उसके बाद से इसे कर्नाटक का अनाधिकारिक झंडा माना जाने लगा। कुछ राजनीतिक और सामाजिक दलों ने इसे आधिकारिक मान्यता देने की मांग की है। लेकिन भारतीय संविधान के अनुसार जम्मू कश्मीर को छोड़कर किसी भी राज्य को अलग आधिकारिक झंडे का प्रावधान नहीं है। पिछले कुछ सालों में सिद्धारमैया सरकार ने राज्य के अलग झंडे के मुद्दे को उठाया है। और एक समिति गठित की। समति ने झंडा डिजायन किया। लाल, सफ़ेद और पीले रंग वाले इस आयताकार ध्वज का नाम 'नाद ध्वज' है। इस ध्वज के बीचो-बीच राज्य का प्रतीक दो सिरों वाला पौराणिक पक्षी 'गंधा भेरुण्डा' भी है। सीएम सिद्धारमैया ने इसे केंद्र के पास भेजने का आश्वासन दिया है। उनका कहना है कि कन्नड़ झंडा किसी अलगाव को व्यक्त नहीं करता। ये हमेशा राष्ट्रध्वज के नीचे ही रहेगा।

यह भी पढ़ेंः कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018: 5 सालों में कैसा रहा सिद्धारमैया सरकार का कार्यकाल

2. लिंगायत मुद्दा

12वीं शताब्दी में बासवन्ना नाम के एक समाज सुधारक और दार्शनिक हुए। उस वक्त देश में किंग बिजला द्वितीय का शासन था जो हिंदू ब्राह्मण थे। राज्य के सामाजिक ढांचे में ब्राह्मणवादी मूल्य हावी थे। बासवन्ना जाति प्रथा के खिलाफ थे। वो मनुष्य की स्वतंत्रता, भाईचारे और समानता में विश्वास रखते थे। उन्होंने लिंगायत की स्थापना की। लिंगायत आंदोलन देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे भक्ति आंदोलन का ही हिस्सा था। धीरे-धीरे बासवन्ना की लोकप्रियता बढ़ने लगी और लिंगायत को मानने वालों की भी। लेकिन इस किसी नेता ने अलग धर्म की मान्यता नहीं दी। प्रदेश की सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत और वीरशैव को धार्मिक अल्पसंख्यक की मान्यता देने का फैसला किया है। अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में है। केंद्र की मोदी सरकार ने सिद्धारमैया सरकार पर विभाजनकारी राजनीति का आरोप लगाया है। कई लिंगायत धर्मगुरुओं ने कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया है जबकि कर्नाटक में बीजेपी के सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं। प्रदेश में करीब 17 प्रतिशत लिंगायत वोटर हैं।

यह भी पढ़ेंः कर्नाटकः अमित शाह का आज राज्य में छठवां चुनावी दौरा, कांग्रेस के खिलाफ फूंकेंगे बिगुल

3. महादयी नदी विवाद

महादयी या मानदोवी नदी कर्नाटक और गोवा राज्य के बीच तनातनी का एक प्रमुख कारण है। इस बार के कर्नाटक चुनाव में महादयी नदी एक बड़ा मुद्दा बन सकती है। महादायी नदी उत्तरी कर्नाटक के घाट से निकलती है। महादयी नदी की कुल लंबाई 77 किलोमीटर है जिसमें से 29 किलोमीटर का हिस्सा कर्नाटक और 52 किलोमीटर गोवा से होकर बहता है। कर्नाटक सरकार राज्य की सीमा के अंदर महादयी नदी से 7.56 टीएमसी पानी मलप्रभा डैम में लाना चाहती है। इसके लिए पानी की धारा कलसा और बंडूरी नामक दो नहरों के जरिए मोड़ी जानी है। अगर ऐसा हुआ तो इसके जरिए धारवाड़, गदग और बेलगावी जिले को पीने के पानी की आपूर्ति की जाएगी लेकिन गोवा सरकार इस परियोजना के खिलाफ है।

यह भी पढ़ेंः कर्नाटक में कांग्रेस के खेवनहार सिद्धारमैया, जिन्होंने तय किया चरवाहे से मुख्यमंत्री तक का सफर!

4. किसानों की बदहाली

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां किसान रीढ़ की हड्डी हैं। पिछले कुछ दशकों में कर्नाटक में किसानों की हालत लगातार बदतर होती जा रही है। इसके पीछे की वजह सरकार की नीतियां और  अव्यवस्था दोषी है। पिछले कुछ सालों में कर्ज और सूखे से तंग आकर किसानों की आत्महत्याएं बढ़ी हैं। विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की नीतियों और अकर्मण्यता पर सवाल उठाए हैं। 2013 से 2017 के बीच चार सालों में करीब 3500 किसानों ने आत्महत्या की है। उत्तरी कर्नाटक क्षेत्र सूखा ग्रस्त क्षेत्र है। कर्नाटक की कृषि पर महादायी नदी का मुद्दा भी बुरा प्रभाव डाल रहा है।

यह भी पढ़ेंः बीएस येदियुरप्पा: दक्षिण भारत में पहली बार भगवा लहराने वाले नेता, बीजेपी और कांग्रेस दोनों को दिखा चुके हैं दम

5. भ्रष्टाचार

कर्नाटक के अधिकांश बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं। भ्रष्टाचार राज्य की एक बड़ी समस्या है। मौजूदा सिद्धारमैया सरकार में कई बड़े मंत्रियों के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा को भी भ्रष्टाचार के आरोप में पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उन्हें पार्टी से भी निष्कासित कर दिया गया था। आगामी विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बनकर आएगा। देखना दिलचस्प होगा कि पार्टियां किस तरह से इस मुद्दे को भुनाती हैं।

यह भी पढ़ेंः एचडी कुमारस्वामीः जिन्होंने इत्तेफाक से राजनीति ज्वॉइन की और कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन गए

6. कावेरी जल विवाद

विवाद कावेरी नदी के पानी को लेकर है जिसका उद्गम स्थल कर्नाटक के कोडागु जिले में है। लगभग साढ़े सात सौ किलोमीटर लंबी ये नदी कुशालनगर, मैसूर, श्रीरंगापटना, त्रिरुचिरापल्ली, तंजावुर और मइलादुथुरई जैसे शहरों से गुजरती हुई तमिलनाडु में बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसके बेसिन में कर्नाटक का 32 हजार वर्ग किलोमीटर और तमिलनाडु का 44 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका शामिल है। कर्नाटक और तमिलनाडु, दोनों ही राज्यों का कहना है कि उन्हें सिंचाई के लिए पानी की जरूरत है और इसे लेकर दशकों के उनके बीच लड़ाई जारी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने 16 फरवरी को एक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल विवाद ट्राइब्यूनल (CWDT) के फैसले के मुताबिक तमिलनाडु को जो पानी मिलना था, उसमें कटौती की है तो बेंगलुरु की जरूरतों का ध्यान रखते हुए कर्नाटक को मिलने वाले पानी की मात्रा में 14.75 टीएमसी फीट का इजाफा किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कावेरी के पानी के मामले में उसका फैसला अगले 15 सालों के लिए लागू रहेगा। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने फैसले पर खुशी जताते हुए इसका स्वागत किया है।

7. पर्यावरण प्रदूषण

कर्नाटक राज्य के विकास ने इसकी कीमत भी चुकाई है। एक तरफ तेजी से जंगलों की कटाई हुई है दूसरी तरफ शहरों की जनसंख्या में अत्यधिक बढ़ोतरी हुई है। जल प्रबंधन में गड़बड़ी के चलते बेंगलुरु में पानी का संकट पैदा हो गया है। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक शहर का जल स्तर तेजी से गिर रहा है। शहरों में बढ़ता प्रदूषण और ग्रामीण इलाकों में सूखा झेल रही जनता के लिए पर्यावरण एक बड़ा मुद्दा है। हालांकि अभी तक पर्यावरण के मुद्दे पर वोटर्स नहीं प्रभावित होते थे लेकिन अब पानी गले तक आ पहुंचा है। सभी राजनीतिक दलों को अपने मैनिफेस्टो में पर्यावरण को बचाने के लिए नीतियों को सम्मिलित करना चाहिए।

Web Title: Top 7 political issues of Karnataka Assembly Elections 2018

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे