कमजोर कानून के चलते भारत में जारी है हाथ से मैला सफाई की प्रथा: शोध

By भाषा | Published: November 16, 2019 05:58 PM2019-11-16T17:58:40+5:302019-11-16T17:58:40+5:30

रमेश ने ‘पीटीआई’ को बताया, ‘‘हमें निश्चित रूप से हमे इसे (कुप्रथा को) कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति अपनानी चाहिए।’’ 2013 में संसद में संप्रग सरकार ने जब यह विधेयक पारित किया तब रमेश ग्रामीण विकास मंत्री थे।

The practice of manual scavenging continues in India due to weak law: Research | कमजोर कानून के चलते भारत में जारी है हाथ से मैला सफाई की प्रथा: शोध

कमजोर कानून के चलते भारत में जारी है हाथ से मैला सफाई की प्रथा: शोध

Highlightsइसके अनुसार सेप्टिक टैंकों और सीवर में जहरीली गैस से सफाईकर्मी बेहोश हो सकते हैं या उनकी मौत भी हो सकती है। इसके अनुसार देश में हर पांच दिन में तीन सफाईकर्मियों की मौत होती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) एवं अन्य के एक अध्ययन के अनुसार ‘कमजोर कानूनी संरक्षण और उसे लागू करने में इच्छाशक्ति की कमी’ के कारण भारत में हाथ से मैला सफाई की प्रथा अब भी जारी है जबकि 2013 में एक कानून बनाकर इस प्रथा को प्रतिबंधित किया गया था।

‘‘हेल्थ, सेफ्टी एंड डिग्निटी ऑफ सैनिटेशन वर्कर्स एन इनिशियल एसेसमेंट’’ शीर्षक से अध्ययन में कहा गया है कि भारत में सफाईकर्मियों की आर्थिक स्थिति ‘गंभीर’ है और यह ‘जातिगत व्यवस्था’ से संबंधित रोजगार है। विश्व बैंक, डब्ल्यूएचओ, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (डब्ल्यूएलओ) और एक अंतरराष्ट्रीय विकास संगठन ‘वाटरएड’ द्वारा संयुक्त रूप से किये गये अध्ययन में भारत एवं आठ अन्य देशों में सफाईकर्मियों की स्थिति के साक्ष्य के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया।

यह अध्ययन 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस से पांच दिन पहले बृहस्पतिवार को जारी किया गया। इसमें शामिल अन्य देशों में बांग्लादेश, बुर्किना फासो, हैती, केन्या, सेनेगल, दक्षिण अफ्रीका और युगांडा हैं। अध्ययन में कहा गया है, ‘‘कई देशों में सफाईकर्मियों के हितों की रक्षा करने वाले कानून और नियमों की कमी है या कानून को सही तरीके से लागू नहीं किया गया है या फिर व्यवहारिक रूप से ये प्रभावी नहीं हैं। हाथ से मैला सफाई अक्सर जोखिम भरा सफाई कार्य है।’’

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘भारत में हाथ से मैला सफाई वाले कुछ सफाईकर्मियों को श्रम के एवज में पैसे के बजाय भोजन दिया जाता है।’’ अध्ययन में यह भी कहा गया है कि सफाईकर्मियों को अक्सर सामाजिक भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ता है। इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि 2013 के कानून "हस्त सफाई कर्मियों के रोजगार निषेध एवं उनके पुनर्वास" में किसी भी तरह से हाथ से मैला सफाई पर प्रतिबंध लगाया गया है।

रमेश ने ‘पीटीआई’ को बताया, ‘‘हमें निश्चित रूप से हमे इसे (कुप्रथा को) कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति अपनानी चाहिए।’’ 2013 में संसद में संप्रग सरकार ने जब यह विधेयक पारित किया तब रमेश ग्रामीण विकास मंत्री थे। जुलाई 2019 में संसद से दिये गये जवाब में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने कहा था कि सरकार को देश में 18 राज्यों में 170 जिलों से हाथ से मैला सफाई के 54,130 मामलों का पता चला है।

इसके अनुसार सेप्टिक टैंकों और सीवर में जहरीली गैस से सफाईकर्मी बेहोश हो सकते हैं या उनकी मौत भी हो सकती है। इसके अनुसार देश में हर पांच दिन में तीन सफाईकर्मियों की मौत होती है। वाटरएड इंडिया के नीति प्रमुख रमन वी आर ने कहा कि सफाईकर्मी समाज में सबसे अधिक आवश्यक लोकसेवा करते हैं और अब भी वे ऐसी स्थिति में काम करते हैं जो उनके स्वास्थ्य, जीवन और प्रतिष्ठा को जोखिम में डालता है। 

Web Title: The practice of manual scavenging continues in India due to weak law: Research

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