अदालत ने कोविड की दूसरी लहर में अनाथ हुए सात भाई-बहनों की पीड़ा पर गौर किया

By भाषा | Updated: August 23, 2021 21:41 IST2021-08-23T21:41:37+5:302021-08-23T21:41:37+5:30

The court took note of the suffering of seven brothers and sisters who were orphaned in the second wave of Kovid | अदालत ने कोविड की दूसरी लहर में अनाथ हुए सात भाई-बहनों की पीड़ा पर गौर किया

अदालत ने कोविड की दूसरी लहर में अनाथ हुए सात भाई-बहनों की पीड़ा पर गौर किया

कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान अपने माता-पिता को खो देने के बाद और अब बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए परेशान सात भाई-बहनों की पीड़ा दिल्ली उच्च न्यायालय के संज्ञान में आई। अदालत ने सोमवार को कहा कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए ऐसे बच्चों से दस्तावेज पेश किए जाने की उम्मीद करना अनुचित होगा।इन सात भाई-बहनों में से पांच नाबालिग हैं। उच्च न्यायालय ने कहा कि दिल्ली सरकार ने विशेष रूप से अपने माता-पिता को खो चुके बच्चों को राहत मुहैया कराने के लिए योजनाएं बनाई हैं, ऐसे में अधिकारियों को ऐसे आवेदनों पर सामान्य दिनों के नियमित तरीके से गौर करने के बजाय सक्रिय दृष्टिकोण अपनाना होगा।न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा, ‘‘यह उम्मीद करना अनुचित होगा कि जिन बच्चों ने अपने माता-पिता को खो दिया है, वे उन लाभों का फायदा उठाने के लिए प्रमाण पत्र व दस्तावेज प्राप्त कर सकेंगे, जिनके वे हकदार हैं... जब आपको भोजन नहीं मिलता, तो हर घंटा, हर दिन मायने रखता है।" गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से पेश अधिवक्ता प्रभसहाय कौर ने अदालत को सूचित किया कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान सात भाई-बहनों का एक परिवार अप्रैल और मई में अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद अनाथ हो गया। उन्होंने कहा कि सात भाई-बहनों में से पांच नाबालिग हैं जबकि सबसे बड़ा 23 साल का है और सबसे छोटा बच्चा चार साल का है और उसे स्कूल में भर्ती कराने की जरूरत है। सात बच्चों में से छह लड़कियां हैं और एक लड़का है।उन्होंने इन बच्चों की पीड़ा का जिक्र करते हुए कहा कि हालांकि बाल कल्याण समिति द्वारा बच्चों को बुनियादी राशन और स्कूल की किताबें उपलब्ध कराई गई थीं, फिर भी उन्हें देखभाल और मदद की सख्त जरूरत है तथा दूध, राशन और दवा जैसी दैनिक जरूरतों के लिए समिति से बार-बार संपर्क करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। कौर ने कहा कि भाई-बहनों को 10,000 रुपये की एकमुश्त सहायता दी गई और एक छोटी सी नौकरी की पेशकश की गयी, जिसे उनमें से एक ने अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वीकार कर लिया क्योंकि कोई भी रिश्तेदार उनकी देखभाल नहीं कर रहा और वे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने कहा कि अनुग्रह अनुदान की योजना के कार्यान्वयन में समय लग रहा है क्योंकि दस्तावेजों का सत्यापन आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ये बच्चे अब विभिन्न एजेंसियों के पास आने से ऊब गए हैं। उन्होंने कहा कि रोटरी क्लब इस परिवार की मदद कर रहा है। पीठ ने कहा, ‘‘रोटरी (क्लब) ने बहुत अच्छा काम किया है। लेकिन वे (बच्चे) अपना अधिकार चाहते हैं। यह आपकी नीति है, इसमें इतना समय क्यों लगना चाहिए? " पीठ ने कहा कि उसे उम्मीद है कि दिल्ली के मुख्य सचिव संबंधित विभागों के प्रधान सचिवों सहित सभी पक्षों के साथ बैठक कर इस तरह के मुद्दों को सुलझाएंगे। अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार को ऐसी प्रक्रियाएं विकसित करनी चाहिए जो सरल और आसानी से लागू होने वाली हों। इसके साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अपात्र लोगों द्वारा लाभों का दुरुपयोग नहीं किया जाए।मामले में अगली सुनवाई नौ सितंबर को होगी।

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