झारखंड में कथित तौर पर भूख से मौत के मामले में अदालत ने राज्य सरकार को फटकार लगायी

By भाषा | Updated: September 2, 2021 20:28 IST2021-09-02T20:28:32+5:302021-09-02T20:28:32+5:30

The court reprimanded the state government in the case of alleged starvation death in Jharkhand | झारखंड में कथित तौर पर भूख से मौत के मामले में अदालत ने राज्य सरकार को फटकार लगायी

झारखंड में कथित तौर पर भूख से मौत के मामले में अदालत ने राज्य सरकार को फटकार लगायी

झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य में कथित तौर पर भूख से मौत के मामले की सुनवायी के दौरान बृहस्पतिवार को राज्य सरकार को फटकार लगायी और कहा कि राज्य के सुदूरवर्ती इलाके में आज भी लोग आदिम युग में जी रहे हैं, आज भी एक महिला पेड़ पर दिन गुजार रही है, यह सभ्य समाज के लिए कितनी शर्म की बात है। राज्य में कथित तौर पर भूख से मौत के मामले में सुनवाई करते हुए झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डा. रविरंजन एवं न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने झारखंड विधिक सेवा (झालसा) की रिपोर्ट देखने के बाद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘आज भी राज्य में किसी स्थान पर एक महिला पेड़ पर दिन गुजार रही है, यह कितनी शर्म की बात है। हम उनके साथ मानव नहीं जंगली की तरह बर्ताव कर रहे हैं, जबकि उनका ही जंगल है जहां से खनिज निकाला जा रहा है। खनिज निकालने के बाद हम उन्हें कुछ भी नहीं दे रहे हैं। उनके हाल पर छोड़ दे रहे हैं।’’ अदालत ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा, ‘‘राज्य के सुदूरवर्ती इलाके में आज भी लोग आदिम युग में जी रहे हैं। राशन लेने के लिए उन्हें आठ किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है। इन लोगों को स्वास्थ्य की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। पीने का शुद्ध पानी भी मयस्सर नहीं हो रहा है। सरकार की योजनाएं कागज में ही सीमित हैं। जंगलों में रहने वाले इन लोगों की जमीन से ही सरकार खनिज निकाल रही है और ये लोग आज भी पत्ते और वन के कंद मूल खा कर जीवन यापन कर रहे हैं।’’ मुख्य न्यायाधीश डा. रविरंजन ने कहा, ‘‘सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों को नहीं मिलता इसलिए नक्सलवाद बढ़ता है।’’ अदालत ने सरकार को इस मामले पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही समाज कल्याण सचिव को मामले की सुनवाई की अगली तिथि 16 सितंबर को पीठ के समक्ष स्वयं हाजिर होने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा, ‘‘राशन (पीडीएस) की दूकान इतनी दूर हैं कि गरीब वहां पहुंच ही नहीं पाता है। स्कूल में पीने का शुद्ध पानी नहीं है। गांव में चिकित्सा की सुविधा नहीं है। आठ किलोमीटर की दूरी पर स्कूल हैं। बच्चों के बदन पर कपड़े नहीं हैं। ऐसा लग रहा है हम आदिम युग में जी रहे हैं।’’ पीठ ने कहा कि रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है कि गांव के लोगों को जंगल से सूखी लकड़ी बाजार में बेचकर जीवनयापन करना पड़ रहा है जबकि ऐसे लोगों के लिए केंद्र की कई योजनाएं हैं जिन्हें उन तक पहुंचाना राज्य सरकार का काम है। पीठ ने सवाल करते हुए कहा कि इसके जिम्मेवार सीओ और बीडीओ क्या कर रहे हैं?अदालत ने कहा, ‘‘सरकार के सिर्फ आंख मूंद लेने से कुछ नहीं होगा। आप रटते रहें कि हम कल्याणकारी राज्य हैं जबकि हकीकत यही है कि सरकारी योजनाएं सिर्फ कागज पर चल रही हैं। धरातल पर कोई काम नहीं दिख रहा है। सरकार को इस पर सोचना होगा।’’ दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया, ‘‘भूख से राज्य में किसी की मौत नहीं हुई है। सरकार की ओर से कहा गया कि मौत की वजह बीमारी है और मौत की सूचना आने के बाद प्रशासन की टीम मृतक के घर गयी थी, मृतक के घर में अनाज मिला था। राज्य में भूख से एक भी मौत नहीं हुई है।’’ वास्तव में बोकारो जिले के कसमार प्रखंड के शंकरडीह गांव निवासी भूखल घासी की 2020 में कथित तौर पर भूख से मौत हो गई थी। ग्रामीणों के अनुसार उनकी मौत भूख से हुई थी। इसके छह महीने बाद उनकी बेटी और बेटे की भी मौत हो गई थी। एक ही परिवार के तीन लोगों की भूख से मौत की खबर मीडिया में आने के बाद उच्च न्यायालय ने मामले का स्वतः संज्ञान लिया था। अदालत ने इस मामले में सरकार को जवाब देने और झालसा को सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत पर रिपोर्ट पेश करने को कहा था।

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Web Title: The court reprimanded the state government in the case of alleged starvation death in Jharkhand

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