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'जकिया जाफरी की शिकायत की गहन जांच की गई, इसे आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री नहीं मिली'

By भाषा | Updated: November 10, 2021 21:29 IST

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नयी दिल्ली, 10 नवंबर गुजरात दंगों के कई मामलों की जांच करने वाले विशेष जांच दल (एसआईटी) ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि वर्ष 2002 के गुजरात दंगों में बड़ी साजिश का आरोप लगाने वाली जकिया जाफरी की शिकायत की गहनता से जांच की गई, जिसके बाद यह निष्कर्ष निकला कि इसे आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री नहीं है।

एसआईटी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ से कहा कि जकिया जाफरी की शिकायत की 'गहन' जांच की गई और बयान दर्ज किए गए।

जाफरी दिवंगत कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी हैं जिनकी 28 फरवरी 2002 को सांप्रदायिक हिंसा के दौरान अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में हत्या कर दी गई थी। हिंसा में एहसान जाफरी सहित 68 लोगों की मौत हुयी थी। इस घटना से एक दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी और गुजरात में दंगे हुए थे। जकिया ने दंगों के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 64 लोगों को एसआईटी की क्लीनचिट को चुनौती दी है।

रोहतगी ने पीठ से कहा, ''उनकी (जाकिया) शिकायत की जांच की गई और बयान दर्ज किए गए। शिकायत की गहनता से जांच की गई। एसआईटी इस नतीजे पर पहुंची कि पहले ही दायर आरोपपत्र के अलावा 2006 की उनकी शिकायत को आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री नहीं थी।''

उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने 2011 में कहा था कि उनकी शिकायत के सभी पहलुओं की एसआईटी द्वारा जांच की जानी चाहिए। रोहतगी ने कहा कि दंगों के मामलों में नौ प्रमुख प्राथमिकी दर्ज की गईं और एसआईटी 2008-2009 में गठित हुई जिसने इन मामलों को अपने हाथ में लिया और बाद में आरोपपत्र व पूरक आरोपपत्र दायर किए गए।

जकिया जाफरी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि जाफरी ने 2006 में एक शिकायत की थी जिसमें बड़ी साजिश की बात की गई थी और एसआईटी ने उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर कोई जांच नहीं की थी।

पीठ ने पाया कि शीर्ष अदालत ने 2011 के फैसले में जकिया जाफरी की शिकायत का संज्ञान लिया था। हालांकि, इसे एक अलग मुकदमे या अलग प्राथमिकी के तौर पर दर्ज करने के संबंध में कोई निर्देश नहीं दिए गए थे।

वहीं, रोहतगी ने पीठ को बताया कि जब एसआईटी शिकायत की जांच कर रही थी तो यह एक प्राथमिकी नहीं थी और टीम ने इस मामले में कई लोगों के बयान दर्ज किए।

उन्होंने कहा, ''उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार पूरी गहनता से जांच की गई। प्राथमिकी दर्ज करने का कोई आदेश नहीं था।''

बहस के दौरान सिब्बल ने कहा कि एसआईटी ने लोगों को बुलाया और उन्होंने जो कुछ भी कहा, उनके बयानों को स्वीकार किया।

उच्चतम न्यायालय ने 26 अक्टूबर को कहा था कि वह 64 व्यक्तियों को क्लीन चिट देने वाली विशेष जांच दल (एसआईटी) की मामला बंद करने संबंधी ‘क्लोजर रिपोर्ट’ और मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा दिए गए औचित्य पर गौर करना चाहेगी।

इससे पहले, सिब्बल ने दलील दी कि जाफरी की शिकायत यह थी कि 'एक बड़ी साजिश थी जहां अधिकारियों की निष्क्रियता, पुलिस की संलिप्तता, नफरत फैलाने वाले भाषण के साथ हिंसा को बढ़ावा दिया गया।'

एसआईटी ने आठ फरवरी, 2012 को मोदी (अब प्रधानमंत्री) और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों सहित 63 अन्य लोगों को क्लीन चिट देते हुए मामला बंद करने के लिए ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की थी जिसमें कहा गया था कि उनके खिलाफ 'मुकदमा चलाने योग्य कोई सबूत नहीं' था।

जकिया जाफरी ने 2018 में उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर गुजरात उच्च न्यायालय के पांच अक्टूबर 2017 के आदेश को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने एसआईटी के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी थी।

याचिका में यह भी कहा गया है कि एसआईटी ने निचली अदालत में मामला बंद करने संबंधी क्लोजर रिपोर्ट में क्लीन चिट दिए जाने के बाद, जकिया जाफरी ने विरोध याचिका दायर की थी जिसे मजिस्ट्रेट ने ''ठोस आधारों’’ पर गौर किए बिना खारिज कर दिया।

उच्च न्यायालय ने अपने अक्टूबर 2017 के फैसले में कहा था कि एसआईटी जांच की निगरानी सर्वोच्च अदालत द्वारा की गयी थी। हालांकि, उच्च न्यायालय ने जकिया जाफरी की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया जो मामले में आगे की जांच की मांग से जुड़ा हुआ था। अदालत ने कहा था कि याचिकाकर्ता आगे के अनुरोध के साथ मजिस्ट्रेट की अदालत, उच्च न्यायालय की खंडपीठ या उच्चतम न्यायालय सहित किसी उचित मंच के पास जा सकती हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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