क्या है 'तीन मूर्ति-हाइफा' का भारत-इजराइल कनेक्शन, जानें 5 अहम बातें
By कोमल बड़ोदेकर | Updated: January 14, 2018 15:34 IST2018-01-14T15:24:12+5:302018-01-14T15:34:41+5:30
आखिर क्यूं इसका नाम बदलक तीन मूर्ति हाइफा रखा गया, क्या है इसका इतिहास? पढ़ें इस खबर में।

क्या है 'तीन मूर्ति-हाइफा' का भारत-इजराइल कनेक्शन, जानें 5 अहम बातें
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू आज (14 जनवरी) भारत पहुंचे। वह छह दिनों के भारत दौरे पर हैं। इस दौरान उन्होंने सबसे पहले तीन मूर्ति स्मारक पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हाइफा में शहीद हुए भारतीय सेना के जवानों को श्रद्धांजलि दी। इजरायली कनेक्शन के चलते दिल्ली के तीन मूर्ति स्मारक का नाम बदलक इजरायल के एक शहर हाइफा के नाम पर रखा गया है।
आखिर क्यूं इसका नाम बदलक तीन मूर्ति हाइफा रखा गया, क्या है इसका इतिहास और क्या है इसका भारतीय और इजराइली कनेक्शन कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब हम आपको बता रहे हैं।
दरअसल इजराइल के शहर हाइफा का इतिहास भारतीय दृष्टी में काफी रोचक है। भारतीय सैनिकों के शौर्य की गाथा का एक किस्सा इतिहास के पन्नों में इस शहर में दर्ज है। साल 1918 में पहले विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रजों ने जोधपुर, हैदराबाद, मैसूर रियासत की सेना को हाइफा पर कब्जा करने के आदेश दिए।
पहले विश्व युद्ध में आधुनिक हथियारों से युद्ध लड़ा जा रहा था। एक ओर जहां तुर्की सेना मशीन गन से लैस थी वहीं भारतीय सैनिक तलवार और भाले के दम पर मोर्चा संभाले हुए थे। जंग के दौरान भारतीय सैनिकों ने इजराइल के इस शहर में मोर्चा संभालते हुए तुर्कियों का न सिर्फ डटकर सामना किया बल्कि 23 सितंबर 2018 को जीत का परचम भी लहराया।
जंग में शहीद हुए सैनिकों की याद में ब्रिटिश सेना के कमांडर-इन-चीफ ने फ्लैग-स्टाफ हाउस के नाम से एक स्मारक बनवाया था। इसके चौराहे के मध्य में गोल चक्कर के बीचों बीच एक स्तंभ के किनारे तीन दिशाओं में मुंह किए हुए तीन सैनिकों की मूर्तियां बनाई गई है। यही कारण है कि दिल्ली के तीन मूर्ति का नाम बदलकर तीन मुर्ति हाइफा रखा गया है।
900 से ज्यादा भारतीय सैनिकों की शहादत को याद करते हुए भारत और इजराइल हर साल 23 सितम्बर को हाइफा (हैफा) दिवस के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित कर इन्हें याद करते हैं।
तुर्की की सेना को जर्मनी का समर्थन था, ऐसे में उनका रक्षा कवच तोड़ पाना काफी मुश्किल नजर आ रहा था लेकिन भारतीय घुड़सवार सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए निर्णायक युद्ध लड़ा। 23 तुर्की और 2 जर्मन अफसर समेत 700 सैनिकों को बंधक बना लिया गया। 17 तोपें, 11 मशीनगन और हजारों की संख्या में जिंदा कारतूस भी जब्त किए गए थे।