Teachers Day 2022: शिक्षक दिवस या टीचर्स डे हर साल भारत में 5 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन सहित देश भर के शिक्षकों को समर्पित है। इसी दिन डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। राष्ट्रपति पद तक पहुंचने से पहले वे एक शिक्षक भी रह चुके थे।
शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है?
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की याद में हर साल 5 सितंबर को भारत शिक्षक दिवस मनाया जाता है। उनका जन्म 5 सितंबर 1888 को दक्षिण भारत के तिरूतनी नाम के एक गांव में हुआ था। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. की उपाधि ली थी और सन् 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हो गए थे। वे भारतीय दर्शन शास्त्र परिषद् के अध्यक्ष भी रहे। वे पेरिस में यूनेस्को नामक संस्था की कार्यसमिति के अध्यक्ष भी बनाए गए।
1949 से 1952 तक डॉ. राधाकृष्णन रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए। इस महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने देश का सर्वोच्च पुरस्कार 'भारत रत्न' प्रदान किया।
13 मई, 1962 को डॉ. राधाकृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने और 1967 तक इस पद पर रहे। उन्होंने ही सबसे पहले अपना जन्मदिवस शिक्षकों के लिए समर्पित किया। इसके बाद से 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
शिक्षक दिवस का इतिहास, महत्त्व और क्या है कहानी
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1962 में देश के राष्ट्रपति बने थे। उनके इस पद पर बैठने के बाद उनके कुछ विद्यार्थियों ने 5 सितंबर को देशभर में उनका जन्मदिवस मनाने का निवेदन किया। डॉ राधाकृष्णन ने अपने विद्यार्थियों का निवेदन तो स्वीकार किया। साथ ही उसमें अपने विचार भी रखे।
उन्होंने कहा कि उनके जन्मदिवस को देशभर में 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाना चाहिए। वे एक शिक्षक हैं और उन्हें इस बात की प्रसन्नता होगी अगर उनके जन्मदिन पर सभी शिक्षकों को आदर एवं सम्मान मिले।
शिक्षक दिवस: डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कोट्स
- पुस्तकें वह माध्यम हैं, जिनके जरिये विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण किया जा सकता है।- हमारे लिए तकनीकी ज्ञान के अलावा आत्मा की महानता को प्राप्त करना भी जरूरी है। - ज्ञान के माध्यम से हमें शक्ति मिलती है। प्रेम के जरिये हमें परिपूर्णता मिलती है।- किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है।- शांति राजनीतिक या आर्थिक बदलाव से नहीं आ सकती बल्कि मानवीय स्वभाव में बदलाव से आ सकती है।