लाल किले पर संबोधित करने वाले पहले मुनिश्री थे तरुण सागर, पढ़ें अहम बातें

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: September 1, 2018 15:57 IST2018-09-01T15:23:14+5:302018-09-01T15:57:41+5:30

सिद्धि उम्र की मोहताज नही होती। इस तथ्य को सिद्ध करने वाले दिगंबर जैन मुनिश्री तरुणसागर वर्तमान समय मे सर्वाधिक चर्चित जैन संत है । उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व परिचय का मोहताज नहीं है।

Tarun Sagar was the first person to address the Red Fort | लाल किले पर संबोधित करने वाले पहले मुनिश्री थे तरुण सागर, पढ़ें अहम बातें

लाल किले पर संबोधित करने वाले पहले मुनिश्री थे तरुण सागर, पढ़ें अहम बातें

सिद्धि उम्र की मोहताज नही होती। इस तथ्य को सिद्ध करने वाले दिगंबर जैन मुनिश्री तरुणसागर वर्तमान समय मे सर्वाधिक चर्चित जैन संत है । उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व परिचय का मोहताज नहीं है।देशव्यापी विरोध के बावजूद मात्र 13 वर्ष की अल्पायु मे दीक्षित मुनिश्री तरुणसागर जी ने अपने दीक्षा गुरु पूज्य आचार्यश्री पुष्पदंत सागरजी के आशीर्वाद से अपनी प्रतिभा, प्रज्ञा और प्रभावना के द्वारा श्रमण संस्कृति और जैन धर्म की गरिमा व गौरव की अभूतपूर्व अभिवृद्धि की है।

उन्होंने न केवल भारत के साधारण जनमानस से लेकर जैन जगत के शीर्ष संतो को प्रभावित किया है अपितु भगवान महावीर के संदेश को भी भारत की सीमाओं से बाहर करोड़ों लोगों तक पहुचाया है।  50 साल के जीवन में ही मुनिश्री तरुणसागरजी के साथ कई उपलब्धियां और किंवदंतियाँ जुड़ गई हैं। मुनिश्री ऐसे पहले मुनि है जिन्होंने पहली बार दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले से राष्ट्र को संबोधन और जिनके प्रवचनों में उमड़े जनसैलाब के कारण जयपुर की ऐतिहासिक बड़ी चौपड़ भी छोटी पड़ गई । पहली बार की इस कड़ी मे मुस्लिम बहुल भोपाल शहर मे प्रवेश, वहा चातुर्मास करने, वहा की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के सामने प्रवचनों की एक यादगार श्रृंखला होने, इंदौर के ऐतिहासिक राजवाड़ा पर भव्य समाहरोह आयोजित करने, जी.टी.वी. सहित विभिन टी.वी.चेनलो के माध्यम से भारत सहित 122 देशो मे महावीर वाणी के विश्वव्यापी प्रसारण की शुरुआत करने का प्रथम श्रेय भी मुनिश्री  को ही जाता हैं।

आचार्य कुंदकुंद एवं आचार्य जिनसेन के पश्चात दो हजार वर्ष के जैन इतिहास मे पहली बार मात्र 13 वर्ष की सुकुमार वय में जैन सन्यास लेने का इतिहास भी मुनिश्री के नाम के साथ जुड़ा है। निः संदेह वे आज लोकप्रियता के सिंहासन पर बैठकर हर जाति,हर वर्ग ,  हर सम्प्रदाय के लोगो के दिलो पर राज कर रहे है। वे सच्चे अर्थों में जैन संत से अधिक जन संत है। उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि वे जहाँ जाते है वह स्थान, सोना-सोना हो जाता हैं और जहाँ से जाते हैं वह स्थान सुना-सुना हो जाता है।उनके स्वागत हेतु हजारों, लाखो आँखों मे खुशियों का सागर लहराता है तो विदाई देते समय हजारों - लाखों आँखों से आंसू बहते है। तरुणसागरजी के प्रवचन सुनने के लिए हजारों की भीड़ जुटती है।

आज वे सर्वाधिक सुने और पढ़े जाने वाले जैन मुनि है। मुनिश्री ने राष्ट्रीय, सामाजिक और व्यक्तिगत बुराइयों पर जितनी खुली चोट करते है , उतनी शायद ही कोई जैन संत मुनि करता हो। मुनिश्री तरुणसागरजी ने अपने साहित्य के माध्यम से धार्मिक साहित्य को एक नई परिभाषा दी है।  निः संदेह मुनिश्री तरुणसागरजी जैन साहित्य के क्षेत्र मे आज सर्वोच्च स्थान पर है । मुनिश्री तरुणसागरजी के विचार एकाएक चौकाते है। वे कहते हैं शमशान गांव के बाहर नहीं, अपितु शहर के मध्य होना चाहिये। लोगो को तीर्थ स्थानों पर जाने के स्थान पर वे अलकवीर जैसे कत्लखानो में जाने की सलाह देते हैं। वे भगवान महावीर को मंदिरों से निकालकर  चौराहे पर खड़ा करना चाहते हैं। वे कहते है कि अब संत-मुनियो के प्रवचन साधारण जनता के बीच नही बल्कि लोकसभा और विधानसभाओ में होना चाहिए क्योंकि खतरनाक लोग वही मौजूद है। उनकी खुली चेतावनी है कि या तो आप परिस्थितियों के अनुरूप अपने आप को बदलिए या फिर आत्महत्या के लिए तैयार हो जाइए।

उन्होने माँ बहनों से आवाहन किया है की वे दो बच्चो की जगह तीन बच्चे पैदा करे दो बच्चे अपने लिए तथा तीसरा बच्चा राष्ट्र और धर्म के लिए माँ भारती के चरणों में समर्पित कर दे। क्रांतिकारी संत मुनिश्री तरुणसागरजी के ये वक्तव्य यधपि पारस्परिक जैनियो को चुभते है लेकिन आज के परिपेक्ष्य में मुनिश्री का यह चिंतन सौ फीसदी सटीक है । वे अपने विचारों की व्याख्या इतने तर्कपूर्ण ढंग से करते हैं कि लोग फिर चौकने के बजाय उन पर विचार करते है । जाति, पंथ और संप्रदाय की ऊंची दीवारों से ऊंचा कद उन्हें राष्ट्र संत का दर्जा दिलाता है तो निराले क्रांतिकारी विचार उनकी प्रख्याति क्रांतिकारी संत के रूप मे कराते है।

क्रांतिकारी संत मुनिश्री तरुणसागरजी

पूर्व नाम -   -- श्री पवन कुमार जैन
जन्मस्थान----ग्राम गुहंची (जि. दमोह) म.प्र.
जन्मतिथि ----26 जून 1968
पिताजी  --   श्रेष्ठ श्रावक श्री प्रताप चंद्रजी जैन
माताजी --    महिलारत्न श्रीमती शांतिबाई जैन
लौकिक शिक्षा --  माध्यमिक शाला तक
गृह त्याग --    8मार्च 1981 
क्षुल्क दीक्षा --- 18 जनवरी 1982 अकलतरा              (म.प्र.)    
एलक दीक्षा --- 1 दिसम्बर , गोंदिया महाराष्ट्र
मुनि -दीक्षा - 20 जुलाई 1988 बागीदौरा राजेस्थान
दीक्षा गुरु ---- युगसंत आचार्य पुष्पदंतसागर जी मुनि
बहुचर्चित कृति -- मृत्यु बोध , कड़वे प्रवचन
प्रख्याति --- क्रांतिकारी संत
विशेष गुण-- मन और मस्तिषक को मंथन हेतु प्रेरित करने वाले प्रवचन सम्राट जीव दया और पारस्परिक मैत्री से उद्भूत आत्म आनंद के प्रणेता।

(लेखक-दिनकर राव जाधव)

Web Title: Tarun Sagar was the first person to address the Red Fort

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