Syed Ali Shah Geelani Death: जब कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी की इस इच्छा से पाकिस्तान भी हो गया था परेशान!
By सुरेश एस डुग्गर | Updated: September 2, 2021 13:58 IST2021-09-02T13:56:42+5:302021-09-02T13:58:58+5:30
Syed Ali Shah Geelani Death: कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी (Jammu Kashmir separatist leader Syed Ali Shah Geelani) के बारे में एक रोचक तथ्य यह जरूर था कि उनकी हर इच्छा, बयान और सपना बस 14 अगस्त 1947 वाले एकीकृत जम्मू कश्मीर पर आकर खत्म हो जाता था.

Syed Ali Shah Geelani Death: जब कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी की इस इच्छा से पाकिस्तान भी हो गया था परेशान!
Syed Ali Shah Geelani: कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी (Jammu Kashmir separatist leader Syed Ali Shah Geelani) के बारे में एक रोचक तथ्य यह जरूर था कि उनकी हर इच्छा, बयान और सपना बस 14 अगस्त 1947 वाले एकीकृत जम्मू कश्मीर पर आकर खत्म हो जाता था.
गिलानी इच्छा पूरी होगी या नहीं यह तो भगवान ही जानता है लेकिन इतना जरूर है कि उनकी इसी इच्छा के कारण आज कश्मीर मसले का हल लटका हुआ है, ऐसा कहने में कोई दो राय नहीं है.
32 सालों से जारी आतंकवाद के दौर के दौरान कश्मीर को सुलझाने के किए गए सभी प्रयास इसलिए धराशायी हो गए क्योंकि गिलानी (Syed Ali Shah Geelani) को अपनी इच्छा से कम कुछ मंजूर नहीं था. कहा तो यह भी जाता है कि पाकिस्तान भी गिलानी की इस इच्छा से ‘परेशान’ जरूर हो गया था.
देश विदेश में कश्मीर को सुलझाने की खातिर होने वाली चर्चाओं में भी गिलानी की इच्छा ही कश्मीर मसले की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बन कर उभरी थी. उनकी इच्छा को कोई नजरअंदाज भी नहीं कर सकता था. ऐसा इसलिए भी था क्योंकि कश्मीर घाटी में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर कश्मीरियों का समर्थन गिलानी के साथ रहा था.
इसे हुर्रियत कांफ्रेंस के नर्मपंथी धड़े के नेताओं ने भी स्वीकार किया है कि गिलानी (Jammu Kashmir Leader Syed Ali Shah Geelani) कश्मीरियों के सर्वप्रिय नेता थे. तभी तो जितनी भीड़ उनकी जनसभाओं में या फिर उनके आह्वान पर जुटती आई थी उससे आधी भी कभी मीरवायज उमर फारूक नहीं जुटा पाए थे.
अगर दूसरे शब्दों में कहें तो सईद अली शाह गिलानी का कश्मीर में दबदबा रहा है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. हड़तालों के उनके आह्वान को चाहे कश्मीरी मजबूरी में ही अपनाते आए थे, पर यह सच्चाई थी कि ऐसे किसी आह्वान ने नाकामी का मुंह कभी नहीं देखा था जो गिलानी ने किया हो. यह बात अलग है कि गिलानी को ‘चाचा हड़ताली’ का नाम भी दिया गया था.
इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि गिलानी को पाला बदलने के लिए भारत सरकार के सभी प्रयास नाकाम ही रहे थे. जबकि सुरक्षा एजेंसियां इसे मानती हैं कि अगर कश्मीर मसले को सुलझाना हो तो गिलानी को मनाना जरूरी था. जानकारी के लिए सईद अली शाह गिलानी जिस भारतीय संविधान को मानने से इंकार करते थे वे उसी के तहत शपथ ग्रहण कर तीन बार राज्य विधानसभा के सदस्य रह चुके थे और आज तक वे विधायक के रूप में मिलने वाली पेंशन के अतिरिक्त भारतीय सरकार द्वारा मिलने वाली सुरक्षा को नकार नहीं सके थे.