सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहन की विवादित रिहाई मामले में बिहार सरकार से रिकॉर्ड पेश करने को कहा, 8 अगस्त को अगली सुनवाई

By विनीत कुमार | Published: May 19, 2023 01:40 PM2023-05-19T13:40:27+5:302023-05-19T13:58:10+5:30

गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन को समय से पहले रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई।

Supreme Court Seeks Records From Bihar govt on On Ex MP Anand Mohan Release from jail | सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहन की विवादित रिहाई मामले में बिहार सरकार से रिकॉर्ड पेश करने को कहा, 8 अगस्त को अगली सुनवाई

आनंद मोहन की रिहाई से जुड़े रिकॉर्ड सुप्रीम कोर्ट ने मांगे (फाइल फोटो)

Highlightsसुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहन की जेल से रिहाई के लिए दी गई छूट से जुड़े रिकॉर्ड पेश करने के निर्देश दिए।मारे गए आईएस अधिकारी की पत्नी ने आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को आईएस अधिकारी की हत्या के मामले में पूर्व सांसद आनंद मोहन को दी गई छूट से जुड़े रिकॉर्ड पेश करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही कोर्ट ने आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका को आठ अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और कहा कि मामले में आगे कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा।

1994 में बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन के नेतृत्व में भीड़ द्वारा मारे गए अधिकारी की पत्नी ने रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

तेलंगाना के रहने वाले और गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी कृष्णैया को 1994 में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। यह घटना उस समय हुई जब उनका वाहन मुजफ्फरपुर जिले में गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के जुलूस से आगे निकलने की कोशिश कर रहा था। तब आनंद मोहन विधायक थे और उस शवयात्रा में शामिल थे।

8 मई को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार और केंद्र सरकार को जारी किया था नोटिस

इससे पहले पिछली सुनवाई में 8 मई को सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहन की रिहाई को लेकर केंद्र और बिहार सरकार को नोटिस जारी किया था। आनंद मोहन को बिहार में जेल नियमों में संशोधन के बाद 27 अप्रैल को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया था।

गौरतलब है कि जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने अपनी याचिका में दलील दी है कि गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन को सुनाई गई उम्रकैद की सजा उनके पूरे जीवनकाल के लिए है और इसकी व्याख्या महज 14 वर्ष की कैद की सजा के रूप में नहीं की जा सकती। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा है, 'जब मृत्युदंड की जगह उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है, तब उसका सख्ती से पालन करना होता है, जैसा कि न्यायालय का निर्देश है और इसमें कटौती नहीं की जा सकती।'

किस जेल नियम के बदले जाने पर हुआ था विवाद?

आनंद मोहन का नाम उन 20 से अधिक कैदियों में शामिल है, जिन्हें जेल से रिहा करने के लिए राज्य के कानून विभाग ने हाल में एक अधिसूचना जारी की थी, क्योंकि वे जेल में 14 वर्षों से अधिक समय बिता चुके हैं। बिहार कारागार नियमावली में राज्य की महागठबंधन सरकार द्वारा 10 अप्रैल को संशोधन किये जाने के बाद आनंद मोहन की सजा घटा दी गई। नियमावली में संशोधन के जरिये ड्यूटी पर तैनात लोकसेवक की हत्या में संलिप्त दोषियों की समय पूर्व रिहाई पर पाबंदी हटा दी गई थी। 

राज्य सरकार के इस फैसले के आलोचकों का दावा है, ऐसा मोहन की रिहाई को सुविधाजनक बनाने के लिए किया गया, जो जाति से राजपूत हैं और इससे नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन को भाजपा के खिलाफ उसकी लड़ाई में मदद मिल सकती है।

Web Title: Supreme Court Seeks Records From Bihar govt on On Ex MP Anand Mohan Release from jail

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